तकरीबन दो सालों से गाजा मानवीय तकलीफ के गहरे गर्त में डूबा हुआ है और दुनिया इतनी उदासीन है कि वैश्विक कूटनीति का दिखावा पूरी तरह नंगा हो चुका है। गाजा में अब तक 65 हजार से ज्यादा फिलिस्तीनी मारे जा चुके हैं, 1.63 लाख से ज्यादा घायल हुए हैं, और पांच लाख लोग अकाल की चपेट में हैं। हालात ऐसे हैं कि 134 बच्चों समेत लगभग 400 लोग कुपोषण से मर चुके हैं। इजराइल ने गाजा को मलबे में बदल दिया है, उसके अस्पताल, घर और स्कूल तबाह कर दिए गए हैं, पत्रकारों को चुप करा दिया गया है, और उसकी आबादी भूख से मर रही है।
आत्मरक्षा के नाम पर इजराइल ने लेबनान, जॉर्डन, सीरिया, यमन, ईरान और हाल ही में कतर पर भी बमबारी कर दी है। फिर भी संयुक्त राष्ट्र हाथ पर हाथ रखे बैठा है। पश्चिमी देश इजराइल के आत्मरक्षा के अधिकार का राग अलापते रहते हैं और तेल अवीव को जवाबदेही से बचाते हैं, जबकि वे ही इजराइल को हथियारबंद भी करते हैं। गाजा में जो कुछ हो रहा है, वह मध्यस्थता की विफलता या वार्ता का पतन नहीं है, बल्कि वैश्विक कूटनीति का नैतिक दिवालियापन है।
Published: undefined
इजराइल की योजना एकदम साफ है: गाजा पर पूरी तरह कब्जा कर लो, वहां रह रहे लोगों को हमेशा के लिए निकाल बाहर करो, और फिलिस्तीनी राष्ट्र का नाम-ओ-निशान मिटा दो। प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू खुलेआम कब्जे की अपनी योजना की बात करते हैं, जबकि उनके धुर-दक्षिणपंथी सहयोगी गाजा में यहूदी बस्तियां बसाने और फिलिस्तीनियों को ‘खुद ही गाजा छोड़कर चले जाने’ के लिए मजबूर करने पर तुले हैं। उन्मादी अभिव्यक्ति सामूहिक निष्कासन, रंगभेद और नरसंहार की वास्तविकता को नहीं ढक पा रही।
स्थिति यह है कि इजराइल का 75 फीसद गाजा पट्टी पर कब्जा हो गया है जिसके ज्यादातर हिस्से को बफर जोन या निषिद्ध क्षेत्र घोषित कर दिया गया है। अब इजराइल जमीनी हमले से पहले गाजा को योजनाबद्ध तरीके से ध्वस्त कर रहा है, और उसने फिलिस्तीनियों को शहर खाली कर देने के लिए कहा है। जमीनी हमले को लेकर मानवतावादी एजेंसियों ने आगाह किया है कि ऐसा करना विनाशकारी होगा।
इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ जेनोसाइड स्कॉलर्स ने घोषणा की है कि इजराइल की यह कार्रवाई 1948 के कन्वेंशन के तहत नरसंहार की कानूनी परिभाषा के दायरे में आती है। अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय ने इजराइल के नेताओं के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी कर रखे हैं, उन पर युद्ध अपराध और भुखमरी को हथियार बनाने का आरोप लगाया है। फिर भी इजराइल की क्रूरता जारी है क्योंकि उसे बचाया जा रहा है, उसे बढ़ावा दिया जा रहा है और यहां तक कि उसे पुरस्कृत किया जा रहा है।
Published: undefined
गौर कीजिए, इस दुःस्वप्न में कूटनीति कैसी दिख रही है? पश्चिम देश इजराइल पर दबाव डालने से परहेज कर रहे हैं, हमास से आत्मसमर्पण की मांग कर रहे हैं और इजराइल के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र के युद्धविराम प्रस्तावों को रोक रहे हैं। अमेरिका बच्चों को भूखा रखने वाले देश पर नहीं, बल्कि उसकी जांच कर रहे अंतरराष्ट्रीय न्यायाधीशों पर प्रतिबंध लगाने की धमकी दे रहा है। यूक्रेन में रूस के अत्याचारों की निंदा करने वाले यूरोपीय देश, अब गाजा की सामूहिक कब्रों के सामने ‘संयम’ और ‘संतुलन’ का राग अलाप रहे हैं।
अब्राहम समझौते के तहत इजराइल के साथ रिश्तों को सामान्य बनाने वाली अरब सरकारें पश्चिमी तट पर ‘लाल रेखाओं’ के बारे में चेतावनियां तो जारी करती हैं, लेकिन गाजा में नरसंहार को रोकने के लिए कुछ नहीं करतीं। उनकी यह नपुंसकता आकस्मिक नहीं; यह हथियारों की बिक्री और रणनीतिक गठबंधनों के सनकी गुणा-भाग का नतीजा है, जो इस बात को नरअंदाज कर देती है कि कितने बेकसूर लोगों की जान जा रही है, कितने लोग गाजा में मलबे के ढेर में दबे हुए हैं और अकाल शिविरों में कितने बच्चे दम तोड़ रहे हैं।
Published: undefined
बच्चे इस भयावहता का पैमाना हैं। आज गाजा में वे स्कूल जाने या खेलने का सपना नहीं देखते; वे अपने अंतिम संस्कार की तैयारी खुद करते हैं। अभिनेता लियाम कनिंघम ने हाल ही में एक छोटी बच्ची फातिमा का एक वीडियो दिखाया, जिसमें वह अपने अंतिम संस्कार की तैयारियों से जुड़े गीत गा रही थी। चार दिन बाद उसकी मौत हो गई। दुनिया भर के नेता जितने भी दावे कर लें कि वे शांति के लिए हरसंभव प्रयास कर रहे हैं, इसका कोई मतलब नहीं, अगर बच्चे अपनी मौत की तैयारी खुद करें!
इजराइल ने योजनाबद्ध तरीके से अनाज गोदामों पर बमबारी की है, बेकरियों को नष्ट किया है और सहायता काफिलों को रोका है। उसने मनावाधिकार ऐक्टिविस्टों और पत्रकारों को निशाना बनाया है। हमले में करीब 270 पत्रकार मारे गए हैं, सभी फिलिस्तीनी थे। इस लिहाज से गाजा प्रेस के लिए यह अब तक का सबसे घातक युद्ध साबित हुआ है। ‘मैडलीन’ और ‘हंडाला’ जैसे सहायता जहाजों को अंतरराष्ट्रीय जलक्षेत्र में रोका गया, उनका माल जब्त किया गया और उनके यात्रियों को हिरासत में ले लिया गया। इजराइली अधिकारी अकाल की खबरों का उपहास करते हुए कहते हैं कि मौतों के आंकड़े बढ़ा-चढ़ाकर बताए गए हैं। कभी भुखमरी को अकल्पनीय युद्ध अपराध के तौर पर देखा जाता था, लेकिन अब यह विजय का ऐसा तरीका बन गया है जिसे दुनिया रोक नहीं सकती।
Published: undefined
नित बर्बरता की नई सीमाओं को लांघे जाने के बीच कुछ और भी हलचल मची हुई है। इजराइली घेराबंदी तोड़ने के लिए संगठित सबसे बड़े समुद्री काफिले ‘सुमुद फ्लोटिला’ को रवाना करने के लिए 31 अगस्त को हजारों लोग बार्सिलोना बंदरगाह पर उमड़े। 44 देशों के ऐक्टिविस्टों, डॉक्टरों, धर्मगुरुओं और पत्रकारों को लेकर 50 से ज्यादा जहाज रवाना हुए जिनमें भोजन, पानी और दवाइयां भरी हुई थीं। उन्हें पता था कि उन्हें रोका जा सकता है, उन पर हमला किया जा सकता है, उन्हें कैद किया जा सकता है। पहले भी फ्लोटिला पर हमले किए गए हैं, उनके डेक पर ड्रोन हमले हुए जिसमें यात्री मारे भी जा चुके हैं। फिर भी वे बढ़ रहे हैं। अरबी शब्द ‘सुमुद’ या दृढ़ता यहां सटीक बैठता है- इन लोगों की यह कोशिश अहिंसक अवज्ञा की उस भावना को दिखाती है जिसे इजराइल के बम भी ठंडा नहीं कर सकते।
यूरोपीय राजधानियों में लोग सड़कों पर उतरकर उनकी अपनी सरकारों के पाखंड के खिलाफ आवाज बुलंद कर रहे हैं क्योंकि ये देश रूस को तो आड़े हाथ ले रहे हैं लेकिन इजराइल को पुचकारते हैं। अमेरिकी कैंपस में पुलिस की लाठियों और कॉलेज से निकालने जाने के खतरे के बाद भी छात्र एकजुट हुए। वैश्विक दक्षिण के बड़े हिस्से में उपनिवेशवाद की कड़वी यादें गाजा के साथ एकजुटता की भावना को और गहरा करती हैं।
हालांकि, अफसोस की बात है कि भारत सरकार संयुक्त राष्ट्र के उन प्रस्तावों से अलग रही है जिनमें इजराइल पर प्रतिबंध लगाने का आग्रह किया गया था। भारत ने फिलिस्तीनियों के साथ एकजुटता का कोई स्पष्ट प्रदर्शन नहीं किया है क्योंकि उसके ‘रणनीतिक’ हित उलझे हुए हैं जिसने उसकी अंतरात्मा को खामोश कर दिया है।
Published: undefined
इस बीच, एक विचित्र कूटनीतिक नाटक चल रहा है। मध्यस्थ काहिरा, दोहा और वाशिंगटन के बीच चक्कर लगाते रहते हैं। एक पक्ष जो एफ- 35 और सटीक बमबारी से लड़ रहा है तो दूसरा सुरंगों से जवाबी हमला करता है; एक पक्ष जो बच्चों को भूखा मारता है और दूसरा जो अनाज के लिए भीख मांगने और बदले में गोली खाने पर मजबूर हो गया है, मध्यस्थ उनके बीच बातचीत कराने की औपचारिकता निभाते हैं। बातचीत इसलिए विफल हो जाती है क्योंकि इजराइल के समर्थकों ने फिलिस्तीनियों की एक आजाद देश की बुनियादी मांग को ही खारिज कर दिया है। इजराइल अब भी गाजा पर कब्जा करने, उसके आस-पड़ोस को ध्वस्त करने और उसके लोगों को खदेड़ने में कामयाब हो सकता है, लेकिन उसने अपनी वैधता खो दी है।
सोचने की बात है कि इतिहास क्या दर्ज करेगा! यही कि दुनिया के सबसे ताकतवर देशों ने गाजा के विनाश की योजना बनाई; कि उपग्रहों की नजरों के सामने अकाल की योजना बनाई गई; कि राजनयिक हाथ मलते रह गए और एक आबादी का सफाया कर दिया गया। लेकिन इतिहास उन लोगों के साहस को भी याद रखेगा जिन्होंने चुप रहने से इनकार कर दिया; उन बच्चों को जिन्होंने अपनी अंतिम विदाई के गीत गाए; उन पत्रकारों को जिन्होंने नरसंहार को दर्ज करते हुए अपनी जान दे दी; उन ऐक्टिविस्ट को जिन्होंने खतरे के सागर में तैरने का फैसला किया; उन प्रदर्शनकारियों को जिन्होंने महाद्वीपों की सड़कों पर उतरने का जज्बा दिखाया... अगर कोई ऐसा भविष्य है जिसमें मानवता खुद को बचा पाएगी, तो वह इन नायकों की वजह से होगा।
Published: undefined