विचार

सरकार ने कृषि कानून बनाकर मौत की सजा सुना दी, अब विचार करने को कह रही कि फांसी दें या गोली मारें

2011 में नेशनल कंज्यूमर अफेयर्स ग्रुप नामक एक राष्ट्रीय कमीशन का गठन किया गया था। कंज्यूमर अफेयर्स ग्रुप ऑफ चीफ मिनिस्टर्स एंड ब्यूरोक्रेट्स के चेयरमैन थे नरेंद्र मोदी। इस ग्रुप की रिपोर्ट में खुद मोदी ने लिखा था एमएसपी से नीचे किसान और व्यापारी के बीच किसी तरह का लेनदेन नहीं होने का कानून चाहिए।

फोटो : Getty Images
फोटो : Getty Images 

तीन कृषि कानून बनाकर लोगों को गंभीर संकट में डाल दिया गया है। इनके खिलाफ किसानों के संघर्ष की वजह से फिलहाल देश जानने लगा है कि इस देश में नरेंद्र तोमर नाम के कोई कृषि मंत्री भी हैं। अब से पहले शायद ही कोई जानता रहा होगा कि देश का कोई कृषि मंत्री भी है। हम सब यही समझते थे कि देश को केवल दो ही आदमी चला रहे हैं- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह।

कृषि-संबंधी तीन कानून पास करने से पहले सरकार ने किसानों तो क्या, किसी के साथ किसी तरह का विचार- विमर्श नहीं किया। जब किसानों का आंदोलन शुरू हो गया, तो सरकार कह रही है हम आपकी समस्याओं पर बात करने के लिए तैयार हैं। यह तो उसी तरह की बात हुई कि आपने कानून में मौत की सजा तय कर दी और अब इस पर बात करें कि आपको फांसी दूं या गोली से मारूं। सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब आपने संसद में कानून पास कर दिया, तो अब किस बारे में विचार- विमर्श करेंगे?

Published: undefined

सन 2011 में नेशनल कंज्यूमर अफेयर्स ग्रुप नामक एक राष्ट्रीय कमीशन का गठन किया गया था। इस कमीशन की रिपोर्ट आज भी उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय की वेबसाइट पर है। यह भी ध्यान देने की बात है कि कंज्यूमर अफेयर्स ग्रुप ऑफ चीफ मिनिस्टर्स एंड ब्यूरोक्रेट्स के चेयरमैन थे नरेंद्र मोदी। इस रिपोर्ट में खुद मोदी जी ने प्वाइंट नंबर 3-बी में लिखा है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से नीचे किसान और व्यापारी के बीच कोई भी और किसी भी तरह का लेनदेन नहीं होने का कानून चाहिए। अब वही नरेंद्र मोदी अपनी ही कही बात को भूल गए हैं।

सिर्फ एमएसपी कानून पास करने में ज्यादा बदलाव नहीं आएगा, जब तक पिक अप और सरकारी खरीद की भी गारंटी नहीं होगी। इस सरकार ने किसानों से सब कुछ छीन लिया। इस सबके बाद भी मीडिया में मोदी, शाह और तोमर बोल रहे हैं कि हम पर विश्वास करिए, हम करेंगे; हम जब वादा करते हैं, तो उसे पूरा करते हैं। इसे छलावा नहीं तो क्या कहेंगे?

Published: undefined

बीजेपी के 2014 के घोषणा पत्र में कहा गया था कि सत्ता में आने पर 12 महीने के अंदर स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट को लागू करेंगे। इतना ही नहीं, उसमें सबसे पहले स्वामीनाथन कमेटी की संस्तुतियों को पूरी उत्पादन लागत के साथ लागू करेंगे। सत्ता में आते ही बीजेपी सरकार ने दोनों वादों को किनारे कर दिया।

यह भी कम दिलचस्प नहीं है कि कुछ किया तो नहीं ही, ऊपर से कोर्ट में एफिडेविट दे दिया कि हम यह सब नहीं कर सकते हैं- यह अच्छी चीज नहीं है, इससे पूरा मार्केट खराब हो जाएगा। 2016 में तो सरकार ने इससे भी इनकार कर दिया कि कोई वादा किया गया था। उस समय के कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने तो सार्वजनिक तौर पर पूरी तरह झूठ ही बोल दिया कि हमने ऐसा कोई वादा किया ही नहीं था।

Published: undefined

2017 में सरकार ने साफ कह दिया कि स्वामीनाथन को भूल जाओ। उदाहरण दिया कि देखो, मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान कितना अच्छा काम कर रहे हैं। जब यह बात कही जा रही थी, उसी महीने उन्हीं शिवराज सिंह चौहान की पुलिस ने मंदसौर में पांच किसानों की गोली मारकर जान ले ली। केंद्रीय वित्तमंत्री तो यह कहते हुए सबसे आगे निकल गए कि सरकार ने जो वादा किया था, उसे पूरा भी कर दिया। 2018 में तत्कालीन वित्तमंत्री अरुण जेटली के बजट भाषण के प्वाइंट नंबर 13 और 14 में साफ लिखा है कि हां, वादा किया था और उसे पूरा भी कर दिया गया है। इसमें किया क्या था? उत्पादन लागत तीन-चार तरीके में ले सकते हैं न! स्वामीनाथन ने कहा है कि पूरी उत्पादन लागत। इन्होंने कहा कि सिर्फ जो आप बीज और फर्टिलाइजर पर देते हैं और कुछ बिजली में हम कर देंगे। उन्होंने इसी बारे में यह झूठ बोला कि हमने पूरा कर दिया।

Published: undefined

इस सरकार के एक मंत्री हैं नितिन गडकरी। अगस्त, 2018 में गडकरी ने टीवी पर आकर कहा कि हर राजनीतिक पार्टी चुनाव से पहले वादा करती है, उस पर अब हमसे मत मांगो। जरा सोचिए कि इन लोगों पर कोई कैसे विश्वास कर सकता है? यही नहीं, सरकार ने एक तरफ किसानों से बातचीत शुरू की और दूसरी तरफ, वह विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के साथ, दुनिया में सबसे बड़े कॉरपोरेट जगत के साथ दूसरी बातचीत कर रही है।

यह भी देखने की बात है कि कृषि कानूनों में क्या लिखा है। तीन कानून हैं जिसमें दो एपीएमसी और एक कांट्रैक्ट फार्मिंग पर है। इस सरकार ने सिर्फ किसानों का अधिकार ही नहीं खत्म कर दिया है बल्कि हर नागरिक का कानूनी अधिकार खत्म कर दिया। इनमें लिखा है कि आप किसी के भी खिलाफ कोर्ट में नहीं जा सकते हैं- न केंद्र सरकार के खिलाफ, न राज्य सरकार के खिलाफ, न केंद्र सरकार के किसी भी अफसर के खिलाफ, न राज्य सरकार के किसी भी अफसर के खिलाफ और न किसी अन्य के खिलाफ। ये किसी अन्य कौन है? यह कॉरपोरेट जगत है। उनके खिलाफ भी कोई कोर्ट में नहीं जा सकता। और सिर्फ किसान ही नहीं, कोई पीआईएल भी नहीं डाल सकता है। इसमें मना कर दिया कि कोर्ट का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है।

Published: undefined

अगर किसानों का संघर्ष विफल होगा, तो देश में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) खत्म हो जाएगी और सब कुछ पूरी तौर पर कॉरपोरेट जगत के हाथ में चला जाएगा। किसानों, आम लोगों के कानूनी अधिकार के लिए इन तीनों कानूनों को वापस लेने के अलावा कोई तरीका नहीं है।

(कृषि और ग्रामीण मामलों की विशद रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकार पी साईनाथ का दिल्ली में सिंघु बॉर्डर पर किसानों के बीच दिए भाषण के संपादित अंश )

Published: undefined

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia

Published: undefined