उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले के एक छोटे से गांव में एक युवती के साथ हुई दरिंदगी ने हमारे सामने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या हम एक सभ्य समाज का हिस्सा हैं? क्या हमारी नज़र में एक महिला केवल एक जिस्म है एक भोग की वस्तु है? आज जब दुनिया के हर देश में महिलाएं मर्दों के साथ कंधे से कंधा मिला कर अपने देश और अपने समाज की सेवा कर रही हैं, हम ऐसा माहौल क्यों पैदा कर रहे हैं जहां महिलाएं घर से निकलने में ही खुद को असुरक्षित महसूस करें?
जिस समाज में 90 वर्ष की पोपली बुढ़िया से लेकर 9 साल तक की मासूम बच्ची मर्दों की हवस का शिकार बन जाती हो उसे सभ्य समाज तो कतई नहीं कहा जा सकताI इस मामले में सरकारों, अदालतों और प्रशासन तंत्र की लापरवाही और गैर ज़िम्मेदारी की चाहे जितना निंदा की जाए, उनकी गलतियों और कोताहियों की ओर चाहे जितना ध्यान आकर्षित किया जाए, लेकिन जरूरत है अपने गिरेबान में झांकने की कि आखिर समाज इतना असभ्य हुआ कैसे? कानून, अदालत, प्रशासन मुजरिमों को सजा दिला सकता है, लेकिन समाज की सोच बदले बगैर इस तरह के शर्मनाक कांडों को रोकना बहुत मुश्किल होगाI
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दिल्ली में हुए निर्भया कांड के बाद पूरे देश में जो सजगता, निर्भया के प्रति हमदर्दी और मुजरिमों के प्रति नफरत का उबाल आया था, उससे लगा था कि समाज की सोच में कुछ बदलाव ज़रूर आएगा और बेटियां किसी हद तक महफूज़ हो जायेंगी। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआI निर्भया कांड के बाद जस्टिस वर्मा कमेटी के सुझावों पर तत्कालीन मनमोहन सरकर ने बलात्कार के सिलसिले में नया और सख्त कानून बनाया, फांसी की सजा तक का प्रावधान किया गया, बलात्कार की परिभाषा बदली गई, चार पांच साल के मुक़दमें के बाद निर्भया के मुजरिमों को फांसी पर लटका भी दिया गया, लेकिन समस्या जस की तस बनी हुई है, जिसका नवीनतम उदाहरण हाथरस की शर्मनाक और अफसोसनाक घटना है I
लेकिन, हाथरस की घटना का एक और शर्मनाक और अफसोसनाक पहलू है, और वह है इतना भयावह कांड हो जाने के बाद जिला प्रशासन और प्रदेश सरकार द्वारा उसे वह महत्व न देना जो निर्भया कांड में मनमोहन सरकार ने दिया था। हाथरस कांड में शुरु से ही जिला प्रशासन का रवैया अभियुक्तों को बचाने और इस केस को कमज़ोर करने की कोशिश करने वाला रहा हैI
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पूरा माजरा यह है कि हाथरस की इस युवती के साथ 14 सितंबर को कथित बलात्कार होता है और बुरी तरह मारे पीटे-जाने से उसे गंभीर चोटें आती हैं। पुलिस ने एफआईआर तो लिख ली थी, लेकिन उस में बलात्कार की धारा नहीं लगाई, जबकि युवती खुद कह रही थी कि उसके साथ दुषकर्म हुआ है। लगभग 10 दिन बाद मीडिया और विपक्ष के दबाव में बलात्कार की धारा जोड़ी जाती है लेकिन इतना लंबा समय बीत जाने के बाद उसकी मेडिकल जांच न होने के कारण बलात्कार के सुबूत करीब-करीब समाप्त हो जाते हैं I
फिर उस युवती के इलाज में घोर लापरवाही बरती जाती है। ऐसा लगता था कि जिला प्रशासन खुद चाहता था कि यह युवती मर जाए। उसे पहले जिला अस्पताल भेजा गया, फिर अलीगढ मेडिकल कालेज भेजा गया और वहां से दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां उस ने आखिरी सांस लीI अगर जिला प्रशासन इतनी बुरी तरह ज़ख़्मी और कथित बलात्कार का शिकार युवती को सीधे दिल्ली के एम्स में भर्ती करा देता तो शायद उसकी जान बचाई जा सकती थीI
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आपको याद होगा की निर्भया को पहले आल इंडिया इंस्टिट्यूट में ही भर्ती कराया गया था और जब वहां उसकी हालत नहीं सुधरी तो उसे एयर एम्बुलेंस से सिंगापुर भेजा गया था। निर्भया की जान बचाने की भरपूर कोशिश की गयी थी जबकि हाथरस की युवती की जान लेने में कोई कसर नहीं छोड़ी गयी थी। भले ही प्रशासन की मंशा जान लेने की न रही हो, लेकिन उसके इलाज में जो घोर लापरवाही की गयी उसे नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता और ऐसे हालात में यह इलज़ाम लगाना नाजायज़ भी नहीं होगाI यही नहीं उस युवती के माता-पिता भाइयों और परिवार के अन्य सदस्यों को उसकी अर्थी उठाने तक की इजाज़त नहीं दी गयी और रात के अंधेरे में पेट्रोल डाल कर उसकी लाश ही जला दी गयी। ऐसी क्रूरता की मिसाल मिलना मुश्किल हैI
याद कीजिए कि निर्भया का शव जब जनवरी की कड़कड़ाती सर्द रात में दिल्ली पहुंचा था तो तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और यूपीए की चेयरपर्सन सोनिया गांधी एयरपोर्ट पर मौजूद थे। लेकिन, आज हमारे प्रधानमंत्री को उस युवती से हमदर्दी जताने और पीड़ित परिवार से संतावना के दो बोल बोलने की भी तौफीक नहीं हुई। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यूं तो मृतका के परिवार को 25 लाख की सहायता का ऐलान किया है, लेकिन वहां जा कर पीड़ित परिवार को सांत्वना देने का कष्ट उन्होंने नहीं उठाया। इतना ही नहीं उसके पिता से यह ज़रुरु लिखवा लिया की वह सरकार की कार्रवाई से संतुष्ट हैं। यह तहरीर कैसे ली गयी होगी यह हम आप सब जानते समझते हैं लिखने की आवश्यकता नहीं I
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इस कांड के बाद जब जिला प्रशासन की घोर लापरवाही और सरकार की लीपा पोती सामने आई तो मीडिया और विपक्ष का इस ओर ध्यान जाना स्वाभाविक था। लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार और पुलिस ने हाथरस के उस गांव को छावनी में बदलकर मीडिया और विपक्ष पर पहरे लगा दिए। महिला पत्रकारों को तो गांव पहुंचने के लिए पुलिस और प्रशासनिक अफसरों के अभद्र व्यवहार से दो-चार होना पड़ा। कांग्रेस नेता राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और उनके साथ गए अन्य नेताओं को पहले दिन बलपूर्वक वहां जाने से रोका गया। उन पर बल प्रयोग किया गया। आखिरकार दूसरे दिन राहुल गांधी और प्रियंका गांधी और अन्य कांग्रेसी नेताओं को गांव जाने की इजाजत दी गई। यही सुलूक राष्ट्रीय लोकदल के नेता जयंत चौधरी के साथ किया गया, उन पर और उनके साथियों पर तो ऐसे लाठियां बरसाई गईं कि अगर कार्यकर्त्ता जयंत को अपने घेरे में न ले लेते तो शायद उनकी हत्या ही हो जाती I
बात यहीं नहीं रुकी। अब असल कांड से लोगों का ध्यान हटाने के लिए नित नए प्रकार के प्रपंच रचे जा रहे है I खुद योगी ने विपक्ष के साथ-साथ पीएफआई ( पापुलर फ्रंट आफ इंडिया ) नामी एक संगठन पर मारीशस रूट से मुस्लिम देशों द्वारा एक करोड़ रुपया वसूल कर प्रदेश में सांप्रदायिक और जातीय दंगा कराने की साजिश का आरोप लगाया है। इस दौरान दिल्ली से हाथरस जा रहे चार मुस्लिम व्यक्तियों को गिरफ्तार करने और उनके पास से भारत विरोधी लिटरेचर आदि मिलने की बात कही जा रही है, जबकि गिरफ्तार तीनो व्यक्ति कथित तौर से पत्रकार हैं और एक उनका ड्राईवर है। इनमें से एक सिद्दीक कप्पन हैं जो केरल की एक न्यूज़ पोर्टल के पत्रकार होने के साथ-साथ केरल वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन के महामंत्री भी हैं। उनकी गिरफ्तारी के बाद केरल पत्रकार यूनियन ने मुख्यमंत्री को एक पत्र भी लिखा है और सुप्रीम कोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका (हैबियस कॉर्पस) भी दायर की है। दो अन्य गिरफ्तार लोग भी पत्रकार हैं।
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इन आरोपों में कितना दम है इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि एन्फोर्समेंट डायरेक्टरेट ने जांच के बाद पाया की इन लोगों को कोई पैसा विदेश से नहीं मिला है। ईडी के इस खुलासे के बाद योगी को ठीक उसी प्रकार जनता के बीच आकर कहना चाहिए को उन्होंने गलत इलज़ाम लगाया था,लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को समझना चाहिए कि जब आप इलज़ाम लगाने के लिए मीडिया के माध्यम से जनता के बीच आते हैं तो इलज़ाम गलत साबित होने पर भी जनता के बीच आ कर उसका खंडन करना भी आपकी नैतिक ज़िम्मेदारी है I
इसके अलावा यह बातें भी फैलाई जा रही हैं कि मृतका के पिता और भाई आदि ने ही उसे उन लड़कों के साथ आपत्तिजनक स्थित में देख कर उसकी हत्या कर दी, और यह ऑनर किलिंग का मामला है I योगी सरकार द्वारा इस प्रकार पीड़ित पक्ष को ही निशाना बनाने और कथित बलात्कारियों को बचाने की कोशिश का यह कोई नया मामला नहीं है। इस से पहले पूर्व केंद्रीय मंत्री और बीजेपी के वरिष्ठ नेता स्वामी चिन्मयानंद और उन्नाव के बीजेपी विधायक कुलदीप सेंगर को भी बचाने की कोशिश की गयी थीI क्या यह केवल संयोग है कि स्वामी चिन्मयानन्द कुलदीप सेंगर और हाथरस के चारों अभियुक्त योगी के सजातीय अर्थात ठाकुर हैंI
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अभी भी लगभग एक महीना होने को है। उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा था कि मामले की जांच सीबीआई करेगी, और एसआईटी एक सप्ताह में जांच पूरी कर लेगी। लेकिन एसआईटी का कार्यकाल अब 10 दिन और बढ़ा दिया गया है, वहीं सीबीआई ने अब जाकर मामले को हाथ में लिया है।
सवाल है कि आखिर उत्तर प्रदेश सरकार इस मामले की लीपापोती क्यों कर रही है? लेकिन ध्यान रखना होगा की सत्ता के नशे पीड़ित पक्ष को धर्म-जाति आदि के नाम पर न्याय से महरूम करने का अंजाम बहुत दुखद और कष्टदायक होता है और नाइंसाफी पर खड़े सत्ता के किले के गिरने में ज्यादा समय नहीं लगता। हर कंस के लिए कृष्ण और हर रावण के लिए राम ज़रूर पैदा होते हैं, यही कुदरत का नियम है I
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