विचार

होली व्यंग्यः जब थानेदार की गिरफ्त में फंस गए होली के लेखक!

जैसे ही मैंने दिल्ली पुलिस को फोन कर आजाद भारत के एक जिम्मेदार नागरिक होने की अपनी जिम्मेदारी निभाई, तो मेरी इस त्वरित कार्रवाई पर मालवीय नगर थाने के थानेदार खान साहब स्वयं ही आ धमके और उन्होंने अपनी पूरी टीम के साथ तिकोना पार्क को चारों तरफ से घेर लिया।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

भारत का जागरूक नागरिक होने के नाते मेरी आंखें सदा संदिग्ध वस्तु, वाहन और व्यक्ति को देखने और कान पड़ोसियों के फ्लैट से लेकर बाहर तक की खुसुर-फुसुर सुनने के आदी हो गए थे। मैं दिल्ली पुलिस की आंख और कान बनकर वर्षों से उसको अपना सहयोग देना चाह रहा था। इसलिए मैंने मालवीय नगर स्थित तिकोना पार्क में कुछ व्यक्तियों को एकजुट होकर आपस में कुछ खुसर-फुसर करते हुए ज्यों ही देखा, मैंने सीधे ही दिल्ली पुलिस को फोन करके आजाद भारत के एक जिम्मेदार नागरिक होने की अपनी जिम्मेदारी निभाई, तो मेरी इस त्वरित कार्रवाई पर मालवीय नगर थाने के थानेदार खान साहब स्वयं ही आ धमके तथा उन्होंने अपनी पूरी टीम के साथ हमारे तिकोना पार्क को चारों तरफ से घेर लिया।

पीसीआर में से जोरदार आवाज आई, ‘अबे साले आतंकवादियों, मुझे तुम्हारे कारनामों की पहले से ही खबर है। तुम लोग होली के रंग में भंग करना चाहते हो। तुम लोग घरों में घुसकर रंगों की जगह खून की होली खेलना चाहते हो। अब मैं आ गया हूं, तुम्हारे सारे मंसूबों पर पानी फेर दूंगा। तुम्हें मालूम होना चाहिए कि मेरी स्टेनगन में से रंग नहीं, गोलियां निकलती हैं। इसलिए सालो, यहां से भागने की कोशिश तो बिल्कुल भी मत करना। तुम्हें पकड़ने के बाद कल के सभी राष्ट्रीय अखबारों में तुम्हारे साथ-साथ मेरी फोटो भी छपेगी। तुम लोग जेल में होगे और मुझे राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार प्राप्त होगा। मेरी खाकी वरदी पर स्टार और बैज की बढ़ोतरी होगी तथा बहुत संभव है कि मैं सीधे ही थानेदार से एसपी बन जाऊं। मेरी पदोन्नति हो जाए।’

Published: undefined

उस थानेदार की कड़क आवाज को सुनकर, तिकोना पार्क में खुसर-फुसर कर रहे व्यक्तियों को समझते हुए देर न लगी कि जरूर ही किसी आतंकवादी के यहां घुस आने की सूचना है। इसलिए तुरंत ही उन सभी व्यक्तियों ने सावधानीपूर्वक तिकोना पार्क के दूसरे गेट से चुपचाप खिसक लेना उचित समझा और जैसे ही वे सभी एक साथ तिकोना पार्क के दूसरे गेट की तरफ बढ़े कि सामने से उन्हें कुछ पुलिसवालों ने अपनी बंदूक दिखाकर अपने कब्जे में ले लिया और तभी थानेदार साहब उनसे रूबरू होकर बोले, ‘जाते कहां हो सालो, पहले मुझे बताओ कि इस तिकोना पार्क में बैठकर खुसर-फुसर करके किस जगह आतंकवाद फैलाने या बम छुपाने का प्रोग्राम बनाया जा रहा था? साफ-साफ बताओ, वरना एक-एक को उधेड़कर रख दूंगा। शरीर में बहता लाल खून, एक ही झटके में पीला कर दूंगा।’

थानेदार को लाल-पीला होता हुआ देखकर उन व्यक्तियों में से एक ने विनम्रतापूर्वक कहा, ‘थानेदार साहब, हम आपके क्षेत्र के लेखक हैं। हम आपको यकीन दिलाते हैं कि हम आतंकवादी नहीं हैं।’ थानेदार साहब नहीं माने और बोले, ‘मैंने तो आज तक तुम लोगों में से किसी का भी लेख और लेख के साथ छपा हुआ फोटो अखबार में नहीं देखा, फिर कैसे लेखक हो?’

Published: undefined

उधर से दबे स्वर में आवाज आई, ‘मेरे सरकार, यही तो हमारा दुर्भाग्य है कि हम जो भी लिखते हैं, उसे संपादक महोदय छापते नहीं और वे जो छापना चाहते हैं, वैसा हम लिखते नहीं। हम जो लिखना नहीं चाहते, उसे तुरंत ही संपादक महोदय अपनी कलम से लिखकर संपादकीय कॉलम में छाप देते हैं। उनकी तो रोजाना ही प्रशंसा होती है और हमें निराशा ही हाथ लगती है। कुल मिलाकर एक होली ही बचती है, जिस पर हम कुछ नया लिखकर छप सकते हैं, क्योंकि होली पर प्रिंट मीडिया में लेखन की मंडी सजती है।

इस शानदार मौके पर तुर्रम खां लेखक से लेकर बार-बार अपनी चड्ढी-कच्छा संभालते हुए नए से नए लेखक को भी होली के व्यंग्य लेकर, होली के व्यंजन तक बनाने की विधि लिखकर सिद्धहस्त ‘कलमवीर लेखक’ कहलाने का अधिकार मिल जाता है। लेकिन हमें तो वह भी नहीं मिला। हम सभी ने अपनी-अपनी रचनाएं बुद्धिजीवी संपादक को भेजीं, मगर एक की भी नहीं छपी। बस इसी गम में हम लोग खुसर-फुसर करते हुए आपस में अपना-अपना गम बांटकर एक-दूसरे के गम पी रहे थे कि तब तक आप सामने आ धमके। चलिए हमारे साथ घर चलिए। वहां हम आपको होली के इस अवसर पर गुझियों का मिष्ठान खिलाकर अपना वोटर कार्ड दिखा देंगे और आपकी तसल्ली करवा देंगे कि हम सभी ठीक-ठाक लोग हैं।’

Published: undefined

असलियत जानने पर थानेदार खान साहब ने सोच-समझकर कहा, ‘चलो भाइयो, होली के इस प्रेम भरे मौके पर आप सभी लोग मिलकर मेरी खाकी वरदी पर रंगों से तिरंगा बना दो और मेरे साथ अपनी एक ग्रुप फोटो खिंचवाकर प्रेस के संपादक को ईमेल कर दो। बहुत संभव है कि संपादक महोदय को पसंद आ जाए और कल के अखबार में वह छप जाए। परिणामस्वरूप भाईचारे के त्योहर होली पर हमारी एकता का प्रदर्शन भी हो जाए और आप सभी के छपने के शौक में भी चार चांद लग जाए। मेरी पदोन्नति न सही पर कम से कम हमारे भारतवासी लेखकों के मंसूबे तो पूरे हो जाएं।’

(बुक्सडॉट गूगल डॉट इन से साभार)

Published: undefined

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia

Published: undefined