विचार

आकार पटेल का लेख: सीएए के बाद क्या जल्द आने वाला है एनआरसी! सरकार के दोहरे संकेतों ने बढ़ाई चिंता

क्या सीएए के बाद एनआरसी आने वाला है? फिलहाल हमें नहीं पता और यह चिंता की बात है क्योंकि यह एक गंभीर मुद्दा है जिस पर अभी तक तो सरकार के दोहरे संकेत ही मिले हैं।

 फाइल फोटो
फाइल फोटो 

सीएए यानी नागरिकता संशोधन कानून लागू होने के बाद क्या हमें एनपीआर (राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर) और एनआरसी (राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर) भी लागू होंगे? ये इस बात पर निर्भर करेगा कि सरकार किस बात में भरोसा करती है। आइए इसकी क्रोनोलॉजी पर एक नजर डालते हैं।

शाहीन बाग में जब विरोध प्रदर्शन शुरु हुए थे, तो प्रधानमंत्री ने 22 दिसंबर 2019 को दिल्ली में हुई एक रैली में कहा था, ‘मैं देश के 130 करोड़ लोगों से कहना चाहता हूं कि 2014 से जब से मेरी सरकार सत्ता में आई है....तब से अब तक...कहीं भी एनआरसी पर कोई चर्चा नहीं हुई है...हम इसे सिर्फ असम में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन करते हुए लागू करना चाहते हैं।’

मोदी का यह बयान उनके गृहमंत्री के उस बयान के एकदम विपरीत था। 10 दिसबंर को अमित शाह ने संसद में कहा था, ‘इस देश में एनआरसी होकर रहेगा....और मान के चलिए एनआरसी आने वाला है।’ इसके अलावा 3 दिसबंर को झारखंड में उन्होंने इसे लागू करने की डेडलाइन भी बता दी थी कि 2024 में यह लागू होगा। उन्होंने कहा था, ‘प्रत्येक घुसपैठिए की पहचान की जाएगी और अगले चुनाव से पहले उसे बाहर निकाल दिया जाएगा।’ 

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मोदी ने भी खुद 2019 के अपने घोषणापत्र में वादा किया था, ‘देश के कुछ हिस्सों में अवैध घुसपैठ के कारण सांस्कृतिक और भाषाई पहचान में अंतर आ गया है, इसका असर स्थानीय लोगों की आजीविका और रोजगार पर पड़ता है। हम तेजी के साथ राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) को इन प्राथमिकता वाले इलाके में लागू करेंगे। भविष्य में एनआरसी देश के बाकी हिस्सों में भी बारी-बारी से लागू होगा।’

बांग्लादेश और पाकिस्तान के साथ भारत की प्रत्यर्पण संधि नहीं है। अगर यह माना जाए कि एनपीआर और एनआरसी के जरिए ऐसे लोगों की पहचान की जाएगी जो बिना दस्तावेज के रह रहे हैं, तो उन्हें वापस तो कहीं नहीं भेजा जा सकता, सिवाए इसके कि उन्हें डिटेंशन में रखा जाए और असम में ऐसा पहले ही किया जा रहा है।

मोदी के भाषण के दो दिन बाद केंद्र सरकार ने एनआरसी की दिशा में पहला कदम उठाया। केंद्रीय कैबिनेट ने 2021 की जनगणना के लिए 8,754 रुपए मंजूर किए और एनपीआर को अपडेट करने के लिए 3,941 रुपए की अतिरिक्त मंजूर दी गई।

एक प्रेस कांफ्रेंस के दौरान सरकार ने एनपीआर के बारे में बात को टाल दिया। कहा गया कि एनपीआर में सभी लोगों को, जिनमें गैर-नागरिक भी होंगे, उन्हें गिना जाएगा और इसके लिए किसी सबूत, दस्तावेज या बायोमीट्रिक की जरूरत नहीं होगी, क्योंकि सरकार देश की जनता पर भरोसा करती है।

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बताया गया कि एनपीआर की प्रक्रिया अप्रैल 2020 में शुरु होगी और सितंबर तक पूरी कर ली जाएगा (लेकिन कोविड के कारण इस  पर ब्रेक लग गया)। सरकार ने दावा किया कि एनपीआर को एनआरसी के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाएगा। अमित शाह ने साफ तौर पर कहा कि एनपीआर और एनआरसी का आपसमें कोई संबंध नहीं है। उन्होंने कहा, ‘इसका दूर-दूर तक एनआरसी से कुछ भी संबंध नहीं है।’

शाह ने कहा, ‘एनपीआर तो डेटाबेस है जिसके आधार पर नीतियां बनती हैं। एनआरसी एक प्रक्रिया है जिसमें लोगों से नागरिकता साबित करने के लिए कहा जाएगा। इन दोनों के बीच कोई संबंध नहीं है, न ही इन्हें एक दूसरे के सर्वे में इस्तेमाल किया जा सकता है। एनपीआर का डेटा एनआरसी में कभी इस्तेमाल हो ही नहीं सकता है..., भले ही कानून अलग हों...मैं लोगों को आश्वस्त करना चाहता हूं, खासतौर से अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को को कि एनपीआर का इस्तेमाल एनआरसी के लिए नहीं होगा...यह एक अफवाह है...।’

यह कोई अफवाह नहीं थी और जल्द ही हकीकत सामने आ गई। एनपीआर में 22 सूत्रीय डेटा जमा किया जाएगा। मोदी सरकार ने इसमें 8 नए बिंदु भी जोड़े हैं। किसी भी व्यक्ति का आधार, पासपोर्ट, ड्राइविंग लाइसेंस. मोबाइल नंबर, वोटर कार्ड, मातृ भाषा और माता-पिता की जन्मतिथि और जन्म स्थान बताना होगा।

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2003 के नागरिकता नियमों में यह आठ बिंदु शामिल नहीं थे, और इसे विशेष रूप से मोदी सरकार ने आखिर में शामिल किया। क्या यह अंत था? जब पत्रकारों ने इस तरफ तत्कालीन केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावडेकर का ध्यान दिलाया तो उन्होंने कहा कि उन्होंने विशेषज्ञों द्वारा तैयार किए गए फॉर्म को उन्होंने देखा नहीं है।

कानूनों और उपनियमों पर रिसर्च से पता चलता है कि एनपीआर, न केवल एनआरसी से जुड़ा है, बल्कि यह इसकी नींव थी। एनपीआर सूची को स्थानीय अधिकारी अपने विवेक से 'संदिग्ध नागरिकों' को चिह्नित करने के लिए स्कैन करेंगे। फिर इन व्यक्तियों को अपनी नागरिकता साबित करनी होगी। एक बार जब सूची तैयार हो गई और उसे प्रदर्शित कर दिया गया, तो कोई भी व्यक्ति गुमनाम रूप से भी शिकायत कर सकता है या किसी व्यक्ति या परिवार को 'संदिग्ध' बता सकता है।

दिसंबर 2019 में सामने आया कि एनपीआर निश्चित ही एनआरसी का आधार था। सीएए की धारा 14 ओ के तहत सरकार अनिवार्य रूप से हर नागरिक को रजिस्टर करेगी और उसे एक पहचान पत्र जारी करेगी और इसका हिसाब-किताब एनआरसी में रखा जाएगा। एनआरसी को एनपीआर के डेटाबेस से ही निकाला जाएगा।

इसके बाद फिर 2018-19 की गृह मंत्रालय की सालाना रिपोर्ट को खंगाला गया, जिसमें कहा गया था कि, ‘एनपीआर दरअसल एनआरसी बनाने की दिशा में पहला कदम है।’

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उस समय के केंद्रीय गृह राज्यमंत्री किरन रिजिजू ने कहा था, ‘एपीआर को पूरा करने का फैसला लिया गया है और इसे इसके अंजाम तक पहुंचाया जाएगा, जिसका इस्तेमाल हर नागरिक की नागरिकता का प्रमाणन करने के लिए एनआरसी में किया जाएगा।’

रिजिजू ने 26 नवंबर 2014 को राज्यसभा में कहा था, ‘हर देशवासी की नागरिकता को प्रमाणित करने के लिए एनपीआर पहला कदम होगा।’ रिजिजू ने ऐसे ही बयान एनपीआर और एनआरसी के बारे में 15 जुलाई , 23 जुलाई 2014 और फिर 13 मई 2015 और 16 नवंबर 2016 को दिए थे।

अब कोविड जा चुका है। तो फिर एनपीआर और एनआरसी की असली स्थिति क्या है, और क्या सीएए के बाद एनआरसी आने वाला है? फिलहाल हमें नहीं पता और यह चिंता की बात है क्योंकि यह एक गंभीर मुद्दा है जिस पर अभी तक तो सरकार का दोमुंहापन ही सामने आता रहा है।

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