वैसे कोरोना के नाम पर प्रधानमंत्री का अपना प्रचार-प्रसार युद्ध जारी है, संकट को अवसर में बदलना जारी है, मगर इसका टीका जब खुद उन्हें लगाने की बात आई तो वे यह बताते हुए शरमा गए। अब वे यह कैसे कहते कि मितरों, जब 50 से ऊपर के लोगों को टीका लगेगा तो हो सकता है, मैं भी तब टीका लगवा लूं! उन्हें तो यह कहना पड़ता कि डरो मत, सबसे पहले मैं टीका लगवाऊंगा और बाद में हमारे मंत्री, मुख्यमंत्री सब लगवाएंगे। न उन्हें कुछ होगा, न मुझे। यह उन्हें कहना नहीं था, इसलिए यह बात उन्होंने भी नहीं, उनके कार्यालय ने भी नहीं बल्कि उनके कार्यालय के एक सूत्र ने कही!
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अब सूत्र को सूत्र इसीलिए कहा जाता है कि उसका न नाम होता है, न चेहरा! वह होकर भी नहीं होता। नतीजा यह है कि यह खबर अगर कल अफवाह साबित हो जाए तो इसके लिए न मोदी जी जिम्मेदार होंगे, न उनका कार्यालय। सूत्र भी जिम्मेदार नहीं होगा क्योंकि वह तो, अनेक उलझे सूत्रों में बंधे प्रधानमंत्री कार्यालय का केवल एक सूत्र है। हमारे और आपके बीच तना हुआ एक धागा है जो टूट भी सकता है। यानी टीका लगवाने की संभावना में काफी और संभावनाएं भी निहित हैं।संभावना का अर्थ भाइयों-बहनों यह भी होता है कि जितनी संभावना है, उतनी ही असंभावना भी है यानि तब भी मोदी जी टीका लगवा ही लेंगे, यह जरूरी भी नहीं।
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और संभावनाओं का क्षेत्र तो आपको मालूम है, अनंत होता है। अब जैसे सर्दी में अगले दिन बादल छंटने और सूरज निकलने की संभावना मौसम विभाग व्यक्त करता है, मगर मान लो, ऐसा नहीं हुआ तो भी आप न तो आप मौसम का कुछ कर सकते हैं, न मौसम विभाग का, न बादलों का, न सूरज का! जैसे मोदी जी आए थे तो यह संभावना साथ लेकर आए थे कि 'अच्छे दिन' लाएंगे। लाना भूल गए तो भी आपने-हमने मोदी जी का क्या बिगाड़ लिया! उन्होंने नोटबंदी की। संभावना थी कि इससे काला धन खत्म होगा। नहीं हुआ, बल्कि बढ़ गया तो नोटबंदी के फेल होने पर मुझे चौराहे पर फांसी पर लटका देने के उनके प्रस्ताव को हमने माना नहीं, उल्टे हमने उन्हें और बड़ा बहुमत देकर पुरस्कृत कर दिया!
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संभावना तो यह भी थी कि मोदी जी के यह नारा लगाने के बाद 'अगली बार ट्रंप सरकार' अमेरिका में तो ट्रंप सरकार ही बनेगी, मगर बन गई बाइडेन सरकार! संभावना तो यह भी थी कि किसानों को खालिस्तानी, आतंकवादी बताने से, एनआईए का नोटिस भेजने से वे डर जाएंगे, नहीं डरे। तीनों कानूनों को डेढ़ साल तक के लिए स्थगित करने के प्रस्ताव से किसान पिघल जाएंगे, मगर नहीं पिघले। संभावना शब्द विशेष रूप से अगर मोदी जी के साथ जुड़ा हुआ है तो फिर उसके धोखा खाने की संभावना तय है। तो संभावना के इस चतुर खेल पर हम विश्वास नहीं करते। हम तो इतने अधिक अविश्वासी हैं कि वे जब यह कहते हैं कि हमने यह कर दिखाया है, तो उस पर भी विश्वास नहीं करते!
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वैसे मोदी जी के दूसरे चरण में टीका लगवाने की संभावना के रास्ते में काफी बाधाएं आ सकती हैं।वह यह कहने का अधिकार तो खो चुके हैं कि क्या करूं तबियत खराब है, शुगर हाई है, अस्पताल में भरती हूं, बाद में टीका लगवा लूंगा, आप सब आज ही लगवा लो! इस संभावना का द्वार उन्होंने अमित शाह के लिए खोल रखा है, अपने लिए नहीं। वह यह भी नहीं कह सकते कि कल अट्ठारह नहीं, बीस घंटे तक काम किया है, इसलिए आज थका हुआ हूं। फिर किसी दिन लगवा लूंगा। ट्रंप ने बुलाया है, जाना ही पड़ेगा, यह संभावना भी अब नहीं रही। मां गंगा भी उन्हें दो-दो बार बुला चुकी।हां उनकी वास्तविक मां की याद उन्हें टीका लगवाने के ठीक एक दिन पहले सता सकती है और वह अहमदाबाद जा सकते हैं।
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अब इसका दूसरा पहलू भी देखिए। तमाम मंत्री सोचने लगे होंगे कि यार ये चाहेगा तो किसी भी तरह टीका लगवाने से बच लेगा, मगर हमारा क्या होगा रे- कालिये। इसने हमें मंत्री पद दे दिया, सांसद-विधायक बना दिया, इसका यह मतलब तो नहीं कि तुम हमें जबरन टीका ठुंसवा कर हमारी जान भी ले लो! या तुम तो टीके के नाम पर डिस्टिल्ड वाटर का टीका लगवाकर शेर बनते फिरो, मगर हम गरीबों को असली टीका लगवा दो! इसलिए सब मंत्री आदि टीका लगवाने से बचने की योजना अभी से बनाने लगे होंगे। हालांंकि जिस गति से टीकाकरण चल रहा है, उससे तो लगता है अभी यह खतरा कम से कम छह महीने दूर है, पर जिस घर में बिल्ली हो, वहां चूहों की खैर जब तक है, तब तक है!
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