पिता केंद्रीय मंत्री, पुत्र जेल में! जी हां, आप समझ ही गए होंगे कि यह इन दिनों चर्चित लखीमपुर खीरी के मिश्रा परिवार का जिक्र है। बात भी सत्य है कि पिता अजय मिश्र टेनी केंद्रीय गृह मंत्रालय में बीजेपी के नंबर दो के नेता अमित शाह के जूनियर मंत्री हैं जबकि लखीमपुर खीरी में चार किसानों की हत्या की घटना के बाद विपक्ष उनके त्यागपत्र की मांग कर रहा है। उधर, उनके पुत्र आशीष मिश्र इस आरोप में पुलिस की हिरासत में हैं कि उन्होंने किसानों पर मंत्री जी की एसयूवी चढ़ाकर चार किसानों को कुचल डाला जिनकी मौत हो गई। परंतु आश्चर्यजनक बात यह है कि केंद्र और उत्तर प्रदेश जहां यह घटना घटित हुई- दोनों ही जगहों पर बीजेपी का शासन है। दोनों ही स्थानों पर बीजेपी के ‘दबंग’ नेता राज कर रहे हैं। लेकिन केंद्र में मोदी और शाह मंत्री अजय मिश्र को पूरा संरक्षण दे रहे हैं जबकि उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी महाराज मिश्रा परिवार को ठीक से मजा चखा रहे हैं। आखिर, केंद्र और राज्य सरकार के बीच लखीमपुर खीरी की घटना पर यह तनातनी क्यों!
बात यह है कि केंद्र और उत्तर प्रदेश–दोनों ही स्थानोंपर बीजेपी के ‘दबंग’ नेता शासन में हैं। उससे भी अहम बात यह है कि मोदी एवं योगी के बीच काफी समय से तनातनी चल रही है। सत्य तो यह है कि यह झगड़ा कि ‘मैं बड़ा या तू’ दोनों के बीच काफी समय से चला आ रहा है। इंडियन एक्सप्रेस की इस हेडलाइन– पिता केंद्रीय मंत्री, बेटा जेल में!, ने इस रस्साकशी को मीडिया तक पहुंचा दिया। लखीमपुर खीरी घटनाक्रम में केंद्र एवं उत्तर प्रदेश शासन का जो अलग- अलग व्यवहार है, उससे मोदी और योगी के बीच विवाद अब खुलकर सामने आ चुका है। इस मामले में केंद्र सरकार नरम, तो उत्तर प्रदेश सरकार गरम है। केंद्र अजय मिश्र टेनी को संपूर्ण संरक्षण दे रहा है जबकि उत्तर प्रदेश सरकार उनके पुत्र आशीष मिश्र को रगड़ रही है। योगी जी ने राकेश टिकैत को इस मामले में तोड़कर तुरंत लखीमपुर खीरी में किसानों का आंदोलन निपटा दिया। दो-चार दिनों के भीतर ही अजय मिश्र के पुत्र को हवालात की हवा भी खिला दी। जबकि केंद्र सरकार इस लेख के लिखे जाने तक अजय मिश्र टेनी को केन्द्रीय मंत्री के रूप में बरकरार रखे हुए थी।
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कहते हैं कि केंद्र मिश्रा परिवार को संरक्षण देकर उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण वोटों को बीजेपी के पक्ष में पक्का कर रहा है। यह भी सत्य है कि योगी आदित्यनाथ के खुले ‘ठाकुरवादी’ शासन से उत्तर प्रदेश के ब्राह्मण प्रसन्न नहीं हैं। परंतु हैरत की बात यह है कि वह खुले तौर पर नरेंद्र मोदी-जैसे बीजेपी के शीर्ष नेता का विरोध करने की हिम्मत कैसे कर रहे हैं। संघ से लेकर एक मामूली नेता तक, सब मोदी जी का लोहा मानते हैं। जिसने उनको सर्वेसर्वा नहीं समझा, उसका हश्र अभी हालत क कर्नाटक के मुख्यमंत्री रहे येदियुरप्पा जैसा होता है जिनको सत्ता से बाहर जाना पड़ा। लेकिन योगी जी में ऐसे क्या सुर्खाब के पर लगे हैं कि वह मोदी जी के विरोध के बाद भी मुख्यमंत्री बनकर अभी तक खुलकर उत्तर प्रदेश में प्रधानमंत्री मोदी की मर्जी नहीं चलने दे रहे हैं।
आखिर इसका कोई रहस्य तो होगा! इस रहस्य का उत्तर इसी बात में है कि पूरे संघ परिवार में मोदी जी से बड़ा कोई और है जिसका सहयोग स्वयं मोदी जी को भी चुनाव जीतने के लिए चाहिए होता है। तो वह स्वयं संघ है जिसके सहयोग के बिना मोदी जी के लिए चुनाव जीत पाना कठिन हो जाता है। तो क्या योगी जी को संघ का संरक्षण है! यह बात संघ की राजनीति समझने वाले सभी समझते हैं कि यदि ऐसा न होता तो योगी अब तक कब के दरकिनार हो गए होते। लेकिन संघ आखिर योगी महाराज के माध्यम से नरेंद्र मोदी-जैसे हिंदुत्व के अब तक के शीर्षतम नेता को राजनीतिक बिसात पर ‘शह’ देता रहता है।
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इसके कई कारण हैं। सर्वप्रथम तो यह कि संघ का यह चलन है कि वह बीजेपी के बड़े-से-बड़े नेता को यह याद दिलाता रहता है कि मत भूलो कि संघ परिवार में कोई भी स्वयं संघ से बड़े कद का नहीं है। और यह बात बताने के लिए संघ बीजेपी में एक नंबर दो का नेता रखता है जिसके माध्यम से हर शीर्ष नेता को वह अपने सर्वोच्च होने का सबक देता रहता है। दीन दयाल उपाध्याय के लिए यह कार्य संघ अटल बिहारी वाजपेयी से लेता था। जब स्वयं अटल बिहारी वाजपेयी नंबर एक नेता हो गए तो लालकृष्ण आडवाणी को बीजेपी में नंबर दो बनाकर स्वयं वाजपेयी जी की लगाम कसने का काम आडवाणी को सौंप दिया। फिर जब आडवाणी जी अपने को संघ से भी बड़ा समझने लगे तो ‘जिन्ना सेकुलर थे’ जैसे एक बयान पर संघ ने उनका अध्यक्ष पद छीन लिया। अंततः उनके ही शिष्य नरेंद्र मोदी के द्वारा आडवाणी जी की छुट्टी कर दी। अब जबकि मोदी जी का कद जनता के बीच संघ से भी बड़ा दिख रहा है तो आरएसएस ने यह कार्य योगी आदित्यनाथ को सौंप रखा है। वरना भला योगी की क्या मजाल कि वह खुले आम मोदी जी को अनदेखा करें और फिर भी उत्तर प्रदेश-जैसे सूबे के मुख्यमंत्री बने रहें।
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पहले दहशत (आतंक) और अब वहशत (घबराहट/ खौफ)। कश्मीर घाटी का पिछले दो दशकों से भी अधिक समय से कुछ ऐसा दुर्भाग्य रहा है कि कश्मीरियों को एक के बाद एक समस्या झेलनी पड़ती है। पाकिस्तान की यह रणनीति है कि भारतीय सेना को घाटी में फंसाए रखो ताकि उसको पाकिस्तान से युद्धकरने का समय ही न मिले। इसी कारण पहले पाकिस्तानी आतंकी घाटी में आतंक उत्पन्न करने का एक नया उपाय निकालते रहते हैं। पिछले कुछ समय से कश्मीर घाटी में आतंक पर कुछ लगाम लगी थी, तो अब कश्मीरी पंडितों और अन्य अल्पसंख्यकों को निशाना बनाकर उन्होंने घाटी में फिर अनिश्चितता का माहौल पैदा कर दिया। परंतु अबकी आतंकियों की इस हरकत से घाटी में केवल दहशत ही नहीं बल्कि वहशत, अर्थात खौफ का भी माहौल है।
कश्मीरी समझ रहे हैं कि सन 1990 के समान यदि बड़ी संख्या में पंडितोंका पलायन आरंभ हुआ तो फिर मोदी सरकार कश्मीरियों को ठीक से मजा चखा देगी। यही कारण है कि पूरी घाटी में इस बार वहां की मुस्लिम बहुसंख्यक आबादी में खौफ का माहौल है। सरकार ने कश्मीर में अल्पसंख्यकों (हिंदुओं) की हत्या के मामले में लगभग पांच सौ से भी अधिक कश्मीरियों को पूछताछ के लिए हिरासत में लेकर यह संकेत दे दिया है कि वह घाटी में क्या कर सकती है। अतः घाटी में इस बार दहशत के साथ-साथ वहशत का भी माहौल है।
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अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने पिछले सप्ताह यह संकेत दिया कि अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था एक बार फिर से मंदी का शिकार हो सकती है। यह अत्यंत चिंताजनक बात है। कोविड-19 की शिकार अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पहले से ही लड़खड़ा रही थी, यदि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की भविष्यवाणी सत्य हो गई तो क्या होगा, अभी समझना मुश्किल है। भगवान एक और अंतरराष्ट्रीय आर्थिक मंदी से बचाए।
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