विचार

CAA-NRC Protests में देश के साथ रंगी मायानगरी मुंबई, छात्रों पर हमले से जागे युवाओं का नारा- हम मायूस नहीं

मुंबई समेत पूरे देश में लड़कियों ने प्रदर्शनों की कमान संभाल ली है। वे फ्रंट पर नेतृत्व कर रही हैं। हिजाब और बुर्के में आई लड़कियां स्कर्ट व स्लीवलेस पहनी लड़कियों के साथ नारे लगाती हैं। ये देख भरोसा होता है कि ‘नाजी हुक्मरान’ किसी सूरत में कामयाब नहीं होंगे।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में हुए नकाबपोश हमले की प्रतिक्रिया और विरोध में पूरे देश में जारी प्रदर्शनों से मुंबई भी अछूता नहीं रहा। छह जनवरी को गेटवे ऑफ इंडिया और कार्टर रोड पर मुंबई के नागरिक एकत्र हुए। ‘आजादी’ की मांग के नारों के साथ लहराते तिरंगे को देखना एक सुकून देता है कि अभी तक यह विरोध आंदोलन किसी राजनीतिक पार्टी के निर्देश से नहीं चल रहा है। यह स्वतःस्फूर्त है जिसमें युवा शामिल हो रहे हैं।

देश के दूसरे शहरों के प्रदर्शनों से थोड़ा अलहदा स्वरूप है मुंबई के प्रदर्शन का। यह शहर समुद्र के किनारे-किनारे लंबाई में बसा है। वेस्टर्न और सेंट्रल रेलवे ट्रैक पर चलती लोकल ट्रेन इस शहर की धड़कन है। सारे प्रदर्शन किसी न किसी लोकल स्टेशन के आसपास सुनिश्चित किए जाते हैं ताकि पूरे शहर के लोग आसानी से वहां आ-जा सकें। स्टेशन से मुख्य सड़कों और गलियों से होकर लोग प्रदर्शन स्थल पर पहुंचते हैं। यही कारण है कि मुंबई में कोई जुलूस नहीं दिखता। एक और खास बात इन प्रदर्शनों में दिखी कि प्रदर्शनकारी छोटे-मोटे समूहों में गोलबंद होकर नारे लगा रहे होते हैं। गीत गा रहे होते हैं। पोस्टर चमका रहे होते हैं। मुंबई के प्रदर्शनकारी प्रदर्शन की भीड़- भाड़ में भी अनुशासन का पालन करते हैं। यह शहर अपनी अफरा-तफरी और हड़बोंग के बीच में कतार में रहने और चलने की तमीज देता है। मुंबई के लोगों की यह शिष्टता और विनम्रता प्रदर्शन के दौरान भी देखने को मिली।

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19 दिसंबर से अभी तक हो चुके छोटे-बड़े बीसियों प्रदर्शनों में किसी प्रकार की बेजा हरकत या हिंसा की खबर नहीं आई है। यहां तक कि व्यस्त सड़कों से गुजरते हुए प्रदर्शनकारियों ने ट्रैफिक को सुचारू रहने दिया। मामूली अवरोधों के साथ शहर अपनी गतिविधियों में मशगूल रहा और स्थानीय निवासियों ने एकत्र भीड़ की हर तरह से मदद की। 6 जनवरी को गेटवे ऑफ इंडिया के पास आयोजित प्रदर्शन के मौके पर अनेक रेस्तरांओं ने अपने टॉयलेट पब्लिक के लिए खोल दिए। पेयजल की अतिरिक्त व्यवस्था की। मुंबई के प्रदर्शनों में कहीं कोई हुड़दंग नहीं दिखा। इनमें कोई घोषित या परिचित नेता नहीं होता। भीड़ में से कोई एक आवाज देता है और सभी उसकी बात मानते हैं।

‘आजादी’ का नारा तो सभी की जुबान पर है। आजादी के आगे-पीछे के शब्द बदलते रहते हैं। इन प्रदर्शनों के दौरान नए नारे और नए पोस्टर बने हैं। युवा ग्राफिक डिजाइनरों ने नागरिकों और छात्रों की मांगों को खूबसूरती से जोड़ा है। नई चेतना और उस चेतना से प्रेरित गूंज से दिशाएं प्रतिध्वनित हो रही हैं। महसूस किया जा रहा है कि मुंबई समेत पूरे देश में लड़कियों ने कमान संभाल ली है। वे फ्रंट पर हैं और नेतृत्व कर रही हैं। इतनी भारी संख्या में लड़कियों की भागीदारी पहले नहीं दिखी। हिजाब और बुर्के में आई लड़कियां स्कर्ट और स्लीवलेस ड्रेस पहनी लड़कियों के साथ नारे लगाती हैं। कोई भेद नहीं है। ऐसी बराबरी देख कर भरोसा होता है कि ‘नाजी हुक्मरान’ किसी भी सूरत में अपनी साजिशों में कामयाब नहीं होंगे।

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पिछले दिनों शिवाजी पार्क के प्रदर्शन में जब एक महिला पुलिसकर्मी ने भाषण दे रही लड़की को जबरदस्ती रोकना चाहा तो भीड़ ने पीछे से ‘जन-गण- मन’ आरंभ कर दिया। अपनी ड्यूटी निभा रही महिला पुलिसकर्मी भी ठहर गई। हंसी की एक लहर सी उठी तो आक्रामक तेवर में आई महिला पुलिसकर्मी के होठों पर भी हंसी तैर गई। 6 जनवरी को गेटवे ऑफ इंडिया पर टाइप राइटर लेकर बैठी एक छात्रा संदेश टाइप कर बांट रही थी। वहीं पास में गोल घेरे में बैठे नौजवान पोस्टर राइटिंग करने में ऐसे तल्लीन दिखे जैसे प्राथमिक कक्षाओं के बच्चों को पहली बार ड्राइंग बुक और रंगीन पेंसिलें मिल गई हों। हर धरने और प्रदर्शन में कुछ नई अभिव्यक्तियां लोगों के संघर्ष को बयान करती हैं।

अब तक के प्रदर्शन में शामिल जनसमूह के प्रोफाइल पर नजर डालें तो मुख्य रूप से युवा पीढ़ी भारी संख्या में नजर आती है। उन्हें किसी आह्वान की जरूरत नहीं है। सोशल मीडिया के जरिए अगले प्रदर्शन की सूचना मिलती है और शहर के कोने-कोने से छोटी-बड़ी जमात प्रदर्शन स्थल पर पहुंच जाती है। माना जाता है कि मुंबई के लोगों को ‘फुर्सत’ नहीं रहती। साथ ही यह धारणा बन चुकी है कि अराजनीतिक स्वभाव के मुंबईकर राष्ट्रीय मुद्दों पर खामोश रहते हैं। उदारीकरण के बाद अमीर बनने की होड़ में युवा पीढ़ी को सचमुच फुर्सत नहीं रही। सामाजिक और पारिवारिक दबाव में वे ‘मनी मशीन’ बन रहे हैं। इस बार के प्रदर्शनों में उनकी भागीदारी देखकर आश्वस्त हुआ जा सकता है कि देश की हलचल से वे नावाकिफ नहीं हैं। उनकी संवेदनाएं मरी नहीं हैं।

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इन प्रदर्शनों में शामिल होने के साथ उन्होंने यह भी प्रदर्शित किया है कि कैसे शांति और धैर्य के साथ विरोध जाहिर किया जा सकता है। प्रदर्शन स्थल के आसपास मौजूद खोमचे वालों तक को भी खतरा नहीं महसूस हुआ कि भीड़ उन्हें लूट सकती है। यह भी नहीं हुआ कि जरूरत देखते हुए उन्होंने भाव बढ़ा दिए हों। ऐसे किस्से मिले कि टैक्सी ड्राइवर, दुकानदार और दर्शक भी प्रेरित होकर प्रदर्शन में शामिल हो गए। निश्चित ही देश की सामाजिक और सामासिक संरचना को भंग करने पर आमदा केंद्र सरकार की नीतियों और फैसलों के खिलाफ जागरूकता फैली है। नागरिकता संशोधन कानून (सीएए), राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) के साथ-साथ एएमयू, जामिया और जेएनयू में हुई हिंसा ने युवा पीढ़ी को चेता दिया है। वे जाग गए हैं।

मुंबई के प्रदर्शनों की शांति में राज्य सरकार का राजनीतिक समीकरण एक बड़ा कारक है। अगर महाराष्ट्र में बीजेपी की सरकार होती तो स्थिति भिन्न हो सकती थी। केंद्र की बीजेपी सरकार के निर्देश पर प्रदर्शनों की रोकथाम और दमन की कोशिशें हो सकती थीं। मुंबई पुलिस का अलहदा मिजाज हमेशा सराहनीय रहा है। मुंबई पुलिस कभी बर्बर और आक्रामक नहीं होती। प्रदर्शनों में ‘थैंक्यू मुंबई पुलिस’ के पोस्टर यूं ही नहीं दिखे। हालिया प्रदर्शन के बाद मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने स्पष्ट कहा कि मुंबई में छात्र सुरक्षित हैं।

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जेएनयू छात्रों और शिक्षकों पर हुए कायराना हमले के बाद अनेक फिल्मी हस्तियां भी मुखर हो गईं। कार्टर रोड के प्रदर्शन में वे भारी तादाद में दिखे। वहां से उनमें से कुछ गेटवे ऑफ इंडिया भी गए। उन्होंने गीत गाए, कविताएं सुनाई और जनसमुदाय को संबोधित किया। फिल्म बिरादरी के पॉपुलर एक्टर भी सोशल मीडिया पर अपनी प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं। हाल ही में, केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने फिल्म बिरादरी को डिनर पर आमंत्रित किया था, ताकि सीएए पर सरकार का पक्ष बता सकें। लेकिन फिल्म बिरादरी का रिस्पॉन्स ठंडा ही रहा। इसके विपरीत सीएए और जेएनयू में हुई हिंसा के विरोध में फिल्म बिरादरी के युवा सदस्यों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। मशहूर फिल्म निर्देशक विशाल भारद्वाज ने अपनी एक कविता के जरिए जेएनयू में हुई हिंसा का विरोध किया। उन्होंने विरोध-प्रदर्शन के दौरान अपनी यह कविता पढ़ी:

है दस्तूर कि सुबह होने से पहले

रातों का गहरा हो जाना लाजिम है

जुल्म बढ़ाओ अभी तुम्हारे जुल्मों का

हद से बाहर भी हो जाना लाजिम है

हम मायूस नहीं हैं, हम हैरान नहीं

जैसा सोचा था तुम वैसे ही निकले

सच भी झूठा-झूठा लगने लगता है

झूठ भी इतनी सच्चाई से बोलते हो

फर्क कहां करते हो तुम बाशिंदों में

बस मजहब के कांटे पर ही तोलते हो

हम मायूस नहीं हैं, हम हैरान नहीं

जैसा सोचा था तुम वैसे ही निकले

रात में सूरज लाने का वादा करके

दिन में रात उगाकर दिखला दी तुमने

पानी-पानी कह के बरसाया तेजाब

और इक आग लगाकर दिखला दी तुमने

हम मायूस नहीं हैं, हम हैरान नहीं...।।

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