विचार

विष्णु नागर का व्यंग्य: भारत को ‘जगद्गुरु’ बनाने के प्रयासों में मोदी जी को मिली बड़ी सफलता !

हमारे मोदी जी ने इधर यह सपना देखा, उधर वह पूरा भी हो रहा है। मैंने कहा, अच्छा, ऐसा है क्या? वैसे उनका तो एक ही सपना था, प्रधानमंत्री बनना और एक बार नहीं कम से कम  दो बार बनना। हां, बेचनेवाले ‘सपने’ तो उनके पास सैकड़ों हैं।

फोटो: सोशल मीडिया 
फोटो: सोशल मीडिया  पीएम मोदी 

मेरी पत्नी भी कहती है कि तुम मोदी जी की खूब आलोचना करते हो मगर खुदा के बंदे, यह तो सोचो कि पहली बार देश को कोई ऐसा प्रधानमंत्री मिला है, जो भारत को ‘जगद्गुरु’ बनाना चाहता है।नेहरू, शास्त्री, इंदिरा, राजीव इन सबने यह क्यों नहीं किया? ये भी तो कर सकते थे मगर नहीं किया। और तो छोड़ो, अब कहना अच्छा नहीं लग रहा मगर अटल जी ने भी यह सब  उतना कहां किया, जितना उनका कर्तव्य बनता था? उधर देखो, हमारे मोदी जी ने इधर यह सपना देखा, उधर वह पूरा भी हो रहा है। मैंने कहा, अच्छा, ऐसा है क्या? वैसे उनका तो एक ही सपना था, प्रधानमंत्री बनना और एक बार नहीं कम से कम  दो बार बनना। हां, बेचनेवाले ‘सपने’ तो उनके पास सैकड़ों हैं।

ऐसा भी कोई ‘सपना’ पूरा हो गया, तो यह  तो कमाल की बात है? कमाल? अरे कमाल ही तो किया करते  हैं, मोदी जी। नोटबंदी का कमाल किसने किया था? अभी एक और कमाल किया है, उसकी खबर तुम खुद पढ़ लो। लिखा है कि गूगल पर अंग्रेजी में ‘इडियट’ टाइप करो तो अमेरिका के प्रेसिडेंट साहब डोनाल्ड ट्रंप की तस्वीर सामने आ जाती है। यह बात खुद ट्रंप साहब ने बताई है। क्या यह नहीं  है, मोदी जी की भारत को ‘जगद्गुरु’ बनाने के प्रयासों को मिली बड़ी सफलता का कमाल? अरे जिसे अमेरिका में सफलता मिल जाए, समझो उसने दुनिया फतह कर लिया। हिंदी में समझा रही हूं,  समझ में तो आ गया होगा?

मैंने कहा, “यार तुम भी कहीं की ईंट,कहीं का रोड़ा जोड़ लाती हो। वैसे भी यह गूगल और ट्रंप के बीच का आंतरिक मामला है और हमारी नीति है कि हम अमेरिका के आंतरिक मामलों में दखल नहीं देते। वह चाहे, हमारे आंतरिक मामलों में दखल देना चाहे, दे-दे, हम  रोकनेवाले कौन? वैसे इस इडियट वाले मामले का मोदी जी के भारत को जगद्गुरु बनाने के सपने से क्या संबंध?”

‘यह समझने के लिए मिस्टर, अकल चाहिए, अकल। पूरी और शुद्ध अकल, वाटर प्यूरीफायर से निकली अकल। और तुम जो दुनिया के सामने हिंदी के लेखक और पत्रकार बने फिरते हो, तुम्हें इतनी सी बात समझ में नहीं आ रही? आश्चर्य है, इसीलिए तो कहूं कि आजकल हिंदी लेखन और पत्रकारिता का इतना पतन क्यों हो रहा है? मैं तो आज तक अपनी सहेलियों से गर्व से कहा करती थी कि मेरे उनके विचार बड़े ऊंचे हैं। तुमने मेरा सारा गर्व एक ही झटके में मिट्टी में मिला दिया।’ मैंने कहा, “चलो ,नो प्राब्लम। विचारों को आजकल पूछता कौन है, अनलेस कि वे सोकाल्ड अर्बन नक्सलाइट के विचार हों। खैर यह समझाओ कि ये पहेली क्या है?”

Published: 02 Sep 2018, 7:59 AM IST

उसने कहा, “आ जाएगी समझ में तुम्हारी? चलो कोशिश करके देखती हूं। और किसी का नहीं पति महोदय का सवाल है। उनकी इज्जत, मेरी इज्ज़त है। तो समझो इस तरह। भारत में फेकू किसे कहते हैं, इतना तो मालूम होगा न, कि वह भी बताऊं? वैसे और भी उदाहरण दिए जा सकते हैं मगर तुम्हारी अकल पर भरोसा कर रही हूं। चलो फिर भी एक और उदाहरण दे देती हूं। प्रधानमंत्री ने सर्जिकल स्ट्राइक खुद की या करवाई, सच तो वही जानें। कभी तो लगता है उन्होंने खुद जाकर की है, कभी लगता है कि आदेश दिया था, काम सेना का था। वैसे कनफ्यूजन बना हुआ है। तो खैर सर्जिकल स्ट्राइक हुई तो लोग कहने लगे कि यह तो फर्जीकल स्ट्राइक है। तो ये तमाम तरह के नामकरण किसके राज में हुए? मोदी जी के राज में ही न। चलो मोदी जी की तरह उदारता दिखाते हुए इसका श्रेय मैं भी भारत की जनता को दे देती हूं।

हमारे देश से अब जाकर अमेरिकियों ने सीखा कि वे हमारा अनुसरण करें, तो ‘इडियट’ शब्द का वहां भी सही उपयोग किया जा सकता है। इसका श्रेय भारत को जाता है न? तो जगद्गुरु भारत  हुआ कि कोई और? जो देश अमेरिका को ज्ञान दे सके, वह आटोमेटिकली जगद्गुरु होगा। तो  तुम्हें यह बात पहले ही समझ में क्यों नहीं आई? बुद्धू हो क्या? जाओ ऐसी बेअक्ली फिर मत दिखाना वरना मैं तुम्हें तलाक दे सकती हूं। मैंने कहा, “जी मैडम।” और सिर झुकाकर चलकर आ ही रहा था कि उन्होंने कहा, “रुको।अरे  थैंक्यू तो देते जाओ।” थैंक्स दे दिया तो कहा, “जाओ अभयदान दिया।अब तुम्हें कभी तलाक नहीं दूंगी।” मैं मुस्कुराया तो कहा, “मुस्कराओ मत वरना मैं अपना अभयदान वापस ले सकती हूं।” इतना कहकर वह खुद भी मुस्कुरा दी।

Published: 02 Sep 2018, 7:59 AM IST

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Published: 02 Sep 2018, 7:59 AM IST