विचार

राम पुनियानी का लेखः क़ुरान, मदरसे और आतंकवाद, नेक नहीं हैं वसीम रिजवी के इरादे

वसीम रिजवी की ‘क़ुरान’ की समझ या समझ का अभाव एक तरफ, पर यह बात साफ है कि वे वर्तमान सत्ताधारी दल का प्रियपात्र बनने की हरचंद कोशिश कर रहे हैं। क्योंकि शिया वक्फ बोर्ड अध्यक्ष के उनके कार्यकाल के दौरान बोर्ड की संपत्तियों की अवैध बिक्री की जांच चल रही है।

फाइल फोटोः सोशल मीडिया
फाइल फोटोः सोशल मीडिया 

उत्तर प्रदेश शिया वक्फ बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष वसीम रिजवी ने उच्चतम न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर कर यह मांग की है कि ‘क़ुरान’ की 26 आयतों को इस पवित्र पुस्तक से हटा दिया जाना चाहिए, क्योंकि वे आतंकवाद को बढ़ावा देती हैं। उन्होंने यह भी कहा है कि मदरसों में आतंकियों को प्रशिक्षित किया जा रहा है और अगर इसे न रोका गया तो भारत में आतंकी हमलों में तेजी से बढ़ोत्तरी होगी। इन्हीं वसीम रिजवी ने कुछ वक्त पहले सुन्नी मुसलमानों की आस्थाओं को अपमानित करने वाली एक फिल्म बनाई थी। उन्होंने यह भी कहा था कि मुसलमान जानवरों की तरह बच्चे पैदा करते हैं।

यह मात्र संयोग नहीं है कि अध्यक्ष के तौर पर उनके कार्यकाल के दौरान, वक्फ बोर्ड की संपत्तियों की बिक्री की जांच चल रही है। उनके ताजा बयान की मुसलमानों के एक तबके में अत्यंत तीव्र प्रतिक्रिया हुई है। यह मांग की जा रही है कि उन्हें सजा दी जाए और उन्हें जान से मारने की धमकियां भी मिल रही हैं। उनके समर्थन में कंगना रनौत और गजेन्द्र चौहान जैसे लोग सामने आए हैं। ये लोग उन्हें सच्चा राष्ट्रवादी बता रहे हैं। आधिकारिक तौर पर बीजेपी ने रिजवी के इस बयान से अपने आप को दूर कर लिया है।

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रिजवी की ‘क़ुरान’ की समझ या समझ का अभाव तो एक तरफ, पर यह बात बहुत साफ है कि वे वर्तमान सत्ताधारी दल का प्रियपात्र बनने की हरचंद कोशिश कर रहे हैं। वर्तमान में पूरी दुनिया में वैसे ही इस्लामोफोबिया (इस्लाम के प्रति डर का भाव) फैला हुआ है और रिजवी जैसे लोग उसे और बढ़ावा दे रहे हैं। वे तोते की तरह वही दुहरा रहे हैं जो साम्प्रदायिक तत्व बरसों से कहते आए हैं। और वह यह कि मुसलमान आतंकी हैं और वे ढ़ेर सारे बच्चे पैदा करते हैं। इस प्रचार ने मुसलमानों के खिलाफ पूरे समाज में नफरत के भाव को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है और यही नफरत का भाव सांप्रदायिक हिंसा का सबब बन रहा है।

जहां तक मुसलमानों के बहुत सारे बच्चे पैदा करने का सवाल है, तो गंभीर अध्येता हमें बताते आए हैं कि गरीबी, अशिक्षा और उनके मोहल्लों तक उन्हें सीमित कर दिया जाना मुसलमानों की आबादी की अपेक्षाकृत उच्च वृद्धि दर के लिए जिम्मेदार हैं। आंकड़े बताते हैं कि मुस्लिम आबादी की दशकीय वृद्धि दर लगातार गिर रही है। 1991 में यह 32.9 प्रतिशत थी, 2001 में 29.5 प्रतिशत और 2011 में 24.6 प्रतिशत। ऐसा बताया जाता है कि सन् 2070 तक मुसलमानों की आबादी की वृद्धि दर 18 प्रतिशत के आसपास स्थिर हो जाएगी।

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अब यह आरोप कि कुरान आतंकवाद को बढ़ावा देती है, दरअसल उसी दुष्प्रचार का हिस्सा है जो 9/11 की घटना के बाद से वैश्विक स्तर पर किया जा रहा है। हम नहीं जानते कि इस्लाम के अध्येता के रूप में रिजवी की कितनी प्रतिष्ठा है, परंतु यह स्पष्ट है कि जो बातें वे कह रहे हैं, वे वही हैं जो ट्विन टावर्स पर हमले के बाद से अमरीकी मीडिया कहता आ रहा है। वे अपने निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए उन्हीं बातों को दुहरा रहे हैं।

इस्लाम के भारतीय अध्येताओं, जिनमें मेरे प्रिय मित्र दिवंगत डॉ असगर अली इंजीनियर और मौलाना वहीद्दुदीन खान जैसे प्रतिष्ठित नाम शामिल हैं, कहते आए हैं कि क़ुरान की आयतों की व्याख्या उनके संदर्भ के आधार पर की जानी चाहिए। क़ुरान के पांचवे अध्याय की 32वीं आयत में कहा गया है कि एक निर्दोष व्यक्ति की हत्या संपूर्ण मानवता की हत्या के बराबर है। क़ुरान यह भी कहती है कि "तुम्हारा दीन तुम्हारे लिए और मेरा दीन मेरे लिए"।

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रिजवी को शायद क़ुरान की ठीक समझ नहीं है। इस सिलसिले में हमें यह याद रखना होगा कि 20वीं सदी के उत्तरार्ध में काफिर और जिहाद जैसे शब्दों के अर्थ को तोड़मरोड़कर अलकायदा और उसके जैसे अन्य गिरोहों ने पाकिस्तान के मदरसों में युवाओं के दिमाग में जहर भरा था। इस शैक्षणिक कार्यक्रम का माड्यूल अमरीका में तैयार किया गया था और अमरीका ने ही इसे लागू करने वाले मदरसों को धन उपलब्ध करवाया था।

परमनेंट ब्लैक द्वारा प्रकाशित महमूद ममदानी की पुस्तक 'गुड मुस्लिम, बैड मुस्लिम' में तथ्यों के साथ बताया है कि अलकायदा को खड़ा करने के लिए सीआईए ने 800 करोड़ डालर खर्च किए थे। अमेरिका, अलकायदा के जरिये अफगानिस्तान में मौजूद सोवियत सेना से मुकाबला करना चाहता था। वह अपनी सेना का उपयोग करना नहीं चाहता था क्योंकि वियतनाम युद्ध में करारी हार के बाद से अमरीकी सेना का मनोबल बहुत गिर चुका था। अमेरिका ने अत्यंत चतुराई से इस्लाम के एक संकीर्ण संस्करण का उपयोग मुस्लिम युवाओं का ब्रेनवाश करने के लिए किया।

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इसका उदाहरण है ‘काफिर’ शब्द जिसका अर्थ होता है ‘सच को छुपाने वाला’ परंतु पाकिस्तान में स्थापित मदरसों में युवाओं को यह समझाया गया कि काफिर वह है जो इस्लाम में आस्था नहीं रखता और यहां तक कि वह जो आपसे असहमत है। उन्हें यह भी बताया गया कि काफिरों को मारना जिहाद है और इस जिहाद में जिनकी जान जाती है उनके लिए जन्नत के दरवाजे खुल जाते हैं। जब ये जिहादी जन्नत में पहुंचते हैं तो 72 हूरें उनका इंतजार कर रही होती हैं। वहीं क़ुरान में जिहाद का अर्थ है "संपूर्ण कोशिश"। यह कोशिश स्वयं की बुराईयों पर विजय प्राप्त करने के लिए (जिहाद-ए-अकबर) हो सकती है या सामाजिक बुराईयों को मिटाने के लिए (जिहाद-ए-असगर)।

इन्हीं गलत व्याख्याओं से प्रेरित और अमेरिका द्वारा उपलब्ध करवाए गए हथियारों से लैस अलकायदा ने अफगानिस्तान में सोवियत सेनाओं के खिलाफ लड़ाई शुरू कर दी। अमेरिका यही चाहता था। परंतु इस रणनीति ने एक भस्मासुर को जन्म दिया। अफगानिस्तान से सोवियत सेनाओं की वापसी के बाद भी अलकायदा के लड़ाके शांत बैठने को तैयार न थे। उनकी डाढ़ में खून लग चुका था। अमेरिका में 9/11 हमले के बाद इन्हीं लड़ाकों को इस्लामिक आतंकवादी बताया जाने लगा। हर मुसलमान आतंकी हो सकता है यह 'एक सोचने लायक' विचार बन गया। इस विचार को अमेरिकी मीडिया ने जन्म दिया और पूरी दुनिया के मीडिया ने उसे पकड़ लिया। इसके बाद मदरसों को आतंकवाद का अड्डा कहा जाने लगा।

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लेकिन भारत में 2006 से 2008 के बीच मालेगांव, मक्का मस्जिद, अजमेर दरगाह और समझौता एक्सप्रेस सहित अनेक आतंकी हमलों के शिकार होने वालों में से अधिकांश मुसलमान थे और इन हमलों के लिए मुसलमानों को ही दोषी ठहराया गया। यह सिलसिला आगे भी जारी रहता, परंतु महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधक दस्ते के तत्कालीन प्रमुख हेमंत करकरे ने वह मोटरसाइकिल ढ़ूंढ़ निकाली, जिसका इस्तेमाल मालेगांव हमले में किया गया था। जांच से यह पता चला कि यह मोटरसाइकिल एबीवीपी नेता साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर की थी। प्रज्ञा इन दिनों भोपाल से लोकसभा सदस्य हैं।

दरअसल समाज की मानसिकता को कई तरीको से गढ़ा जाता है। वसीम रिजवी जो कह रहे हैं वह साम्प्रदायिक ताकतों को सुमधुर संगीत लग रहा होगा। उनके लिए इससे बेहतर क्या हो सकता है कि जो वे कहते हैं, वही एक मुस्लिम नेता स्वयं कह रहा है। इस तरह के प्रचार से मुस्लिम समुदाय के बारे में समाज में पहले से ही व्याप्त गलत धारणाओं और पूर्वाग्रहों को बल मिलता है और मुसलमानों के खिलाफ हिंसा बढ़ती है।

लेकिन याद रखा जाना चाहिए कि वक्फ संपत्ति की गैरकानूनी बिक्री में रिजवी की भूमिका की जांच चल रही है। ऐसे में साफ है कि जो बातें वे कह रहे हैं उसके पीछे इस्लाम या कुरान की उनकी गलत समझ नहीं है, बल्कि उनका असली मंतव्य कुछ और ही है।

(लेख का अंग्रेजी से हिन्दी रूपांतरण अमरीश हरदेनिया द्वारा)

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