विचार

विष्णु नागर का व्यंग्य: ‘भक्तियुग’ में पढ़कर पोस्ट लाइक किया तो क्या खाक किया

किसी ने पढ़कर ही हमारी पोस्ट को ‘लाइक’ किया तो फिर क्या खाक ‘लाइक’ किया? पढ़कर ‘लाइक’ करना भी भला क्या लाइक करना हुआ ! यह भक्तिभाव नहीं, शुद्ध बुद्धिभाव है। 

फोटो : सोशल मीडिया
फोटो : सोशल मीडिया 

मेरे जैसे लोग समझ रहे थे कि हम वैज्ञानिक सोच के युग में हैं, तकनालाजी के नित नये आविष्कारों के समय में हैं लेकिन अचानक हमने पाया कि अरे हम सब तो फिर से भक्तियुग में हैं। चारों ओर भक्ति का ऐसा 'पवित्र-सुगंधित' वातावरण है कि बुद्धि बेचारी त्राहिमाम -त्राहिमाम करने लगी है! उस भक्तियुग से इस भक्ति युग का शामियाना जरूर शानदार है, मगर दिल और दिमाग दो कौड़ी का है।

वैसे भगवान की भक्ति तो युगों- युगों से होती आई है और युगों -युगों तक होती भी रहेगी शायद। इसमें क्या खास है? खास तो मोदी- भक्ति में है, जिसका समय लगता है - मई, 2014 से मई, 2019 तक कुल पाँच साल का है। उसके बाद भगवान भी भगवान नहीं रहेंगे और भक्त भी भक्त। भक्त,भगवान को टाटा बाई बाई कर रहे होंगे और भगवान की आँखें नम होंगी और सिर नीचे झुका होगा।

कई बार तो लगता है कि मोदीजी ने फिलहाल ऐसा खतरनाक भक्तिमय वातावरण निर्मित कर दिया है कि भक्त, मोदीजी के ही नहीं, हमारे जैसे फालतू के लोगों के भी पैदा होने लगे हैं। कभी कभी पाता हूँ कि मैंने फेसबुक पर लंबी पोस्ट लिखी है, जिसके बारे में इधर -उधर से पढ़ने, फिर सोचने और फिर लिखने में कोई डेढ़-दो घंटे लगे और जिसे पढ़ने में कम से कम दो से तीन मिनट लगेंगे मगर उस पर पहली-दूसरी-तीसरी 'लाइक' आने में केवल पंद्रह सेकंड लगते हैं !

ऐसा परम भक्तिभाव अगर मुझे खुशी दे सकता है तो आश्चर्य नहीं कि मोदी जी तो परमानेंट परमानंद की स्थिति में रहते होंगे। मेरे प्रति किंचित भक्तिभाव के प्रकटीकरण का मात्र एक स्त्रोत है- फेसबुक और वह भी पूरी तरह नहीं। किसी ने पढ़कर ही हमारी पोस्ट को 'लाइक' किया तो फिर क्या खाक 'लाइक' किया? पढ़कर 'लाइक' करना भी भला क्या लाइक करना हुआ ! यह भक्तिभाव नहीं, शुद्ध बुद्धिभाव है। किसी ने बहुत सुंदर ,बहुत अच्छा, बहुत मार्मिक भी लिखा तो भी पढ़ने का 'अपराध' करके किया तो इसे भक्त होने का लक्षण नहीं मान सकते। फिर गलती से या सोच- समझकर मोदीजी के खिलाफ लिख डालो तो इतनी गालियाँ पड़ती हैं कि तबियत हरी नहीं तो केसरिया तो अवश्य हो जाती है।

उधर हमारे मोदी जी हैं। उनके प्रति भक्तिभाव प्रकट करने के अनंत स्त्रोत हैं। एक तो वह खुद ही अपनी तारीफ कर लिया करते हैं, जो युगानुरूप है। फिर वह हर भाजपाई राज्य के हर विज्ञापन में भी अपनी प्रशंसा करवा लेते हैं। गंगा- यमुना भले ही गंदी हो जाएँ, उनमें नहाने, पीने लायक साफ पानी न रह जाए, बल्कि कई बार ,कई जगह पानी ही न बचे, मगर मोदीजी तक भक्ति भाव की गंगा,यमुना और यहाँ तक सरस्वती की गोपनीय धारा उन तक अविरल पहुँँचती रहती है। नदी से दूर के इलाकों के भक्त हैंडपंपों से मोदी विरोधियों के लिए मटमैला, गंदा,बदबूदार पानी निकलते हैंं और मोदीजी को भक्तिभाव से पवित्र- शुद्ध-निर्मल पेय जल प्राप्त करवाते हैंं।

Published: undefined

उनके भक्तों में पहला स्थान उनके मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों का मानना चाहिए, जो मन से, बेमन से, खट्टे मन से, बुझे मन से दिन-रात-दोपहर-शाम उनकी आरती उतारते रहते हैं और चैनलों-अखबारों को इसका प्रसाद रूपी विज्ञापन वितरित करते रहते हैं। दूसरा स्थान उनके अधिकारियों का है, जो ड्यूटीवश और पद को वश में रखने के वास्ते 'जय मोदी देवा,जय मोदी देवा' करते रहते हैंं। फिर हम कुछेक 'राष्ट्रविरोधियों' को छोड़कर फेसबुक, ट्वीटर, व्हाट्सएप आदि पर 'पेड भक्त' उपलब्ध हैंं। फिर पूँजीपति हैं, मीडिया है। फिर मोदीजी की सभाओं में 'मोदी- मोदी' का जयघोष है।

क्या- क्या, कितने-कितने गिनाऊँ उनके प्रकट-अतिप्रकट, गोपनीय- अतिगोपनीय स्रोत! इसलिए मोदीजी हमेशा तरन्नुम में रहते हैं। उन्हें आभास होता रहता है कि सारा देश उनके पीछे है और सिर्फ वह और केवल वह आगे -आगे हैं। वह आगे हैं तो देश भी नेचुरली आगे है। देश आगे है तो वह इतना ज्यादा आगे है कि 'विश्वगुरू' बनने की राह पर अग्रसर है, हालांकि ऐसी कोई राह है या कभी थी, यह संघ के अलावा किसी को नहीं मालूम। मोदीजी जीपीएस से सर्च करने में लगे हैं, मगर ज्ञान क्या अज्ञान तक उन्हें नहीं मिल रहा है, जिसकी उन्हें सख्त जरूरत है। भाषण देने के काम में ऐसी सामग्री ही सबसे ज्यादा काम आती है।

Published: undefined

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia

Published: undefined