विचार

विविधता की मिसाल हैं अंतरिक्ष कार्यक्रम, बाहर से तो धरती बिना सीमाओं और भेदभाव के सिर्फ एक गोला ही है

अंतरिक्ष के क्षेत्र में होने वाली हर प्रगति से हमें उत्साहित होना चाहिए और एक दूसरे को बढ़ावा देना चाहिए कि हमारे ग्रह और हम सबके लिए एक बेहतर भविष्य को लेकर उम्मीदें जिंदा हैं।

फोटो सौजन्य : @ISRO
फोटो सौजन्य : @ISRO 

किसी अंतरिक्ष यात्री ने आखिरी बार 50 साल पहले चांद पर कदम रखे थे। इन दोनों अमेरिकी अंतरिक्ष यात्रियों के आखिरी नाम सर्नन, इवांस और श्मिट थे। लेकिन हम इन नामों को उतना नहीं जानते जितना कि आर्मस्ट्रॉंग के नाम को। असलियत यह है कि 1969 में पहली बार चांद पर मानव के कदम रखने के बाद, अंतरिक्ष यात्राओं को लेकर दौड़ लगभग खत्म हो चुकी थी।

दरअसल अंतरिक्ष कार्यक्रमों को चलाना बहुत महंगा सा है। और, इसमें लोगों की दिलचस्पी खत्म होने केबादअमेरिका और रूस ने 1969 के बाद से हीइस क्षेत्र में अपनी क्षमता और आकांक्षा दोनों में भारी कमी कर दी। आर्मस्ट्रॉंग के चांद पर जाने के फौरन बाद ही मानव को मंगल पर भेजने की योजनाएं बनी थीं, लेकिन इन पर कभी अमल नहीं किया गया। मंगल पर मानव को भेजने की योजना एक नाज़ी रॉकेट वैज्ञानिक वॉन ब्राउन ने बनाई थी जिसे अमेरिका ने पकड़ लिया था और उसे अमेरिका लाकर अपने अंतरिक्ष कार्यक्रमों का प्रमुख बना दिया था, लेकिन उसे एक तरह से बंदी की तरह रखा गया और अंतत: अपोलो मिशन समाप्त हो गया। जिस रॉकेट सैटर्न 5 के जरिए अमेरिकी वहां गए थे, उसे कबाड़ में डाल दिया गया।

Published: undefined

अंतरिक्ष शटल एक बेहद मामूली और आंशिक रूप से ऐसा कि जिसे फिर से इस्तेमाल किया जा सके। यही शटल अंतरिक्ष यात्रियों को पृथ्वी की निचली कक्षा में ले जाता था। यह 1981 से 2011 तक 30 वर्षों तक इसका इस्तेमाल किया गया। लेकिन इसके एक दशक बाद तक, अमेरिका के पास अपने अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन में भेजने की कोई क्षमता नहीं थी। यह स्टेशन पृथ्वी कुछ सौ किलोमीटर पर घूमता रहता है। ऐसा तब तक चला जब तक कि स्पेसएक्स नामक निजी कंपनी ने कोविड के दौरान ऐसी क्षमता हासिल नहीं कर ली। तब तक नासा और यूरोप के अंतरिक्ष यात्री रूसी रॉकेट का इस्तेमाल कर अंतरिक्ष में जाते रहे।

आज की तारीख में दुनिया के सबसे सक्रिय अंतरिक्ष कार्यक्रमों को या तो यह निजी कंपनी चलाती है या फिर चीन। स्पेसएक्स ने 2022 में 61 लॉन्च किए और चीन ने भी लगभग इतनी ही संख्या में अंतरिक्ष लॉन्च किए। इनके मुकाबले भारत, यानी इसरो ने 4 सफल लॉन्च, तीन पीएसएलवी और एक जीएसएलवी लॉन्च किए। जीएसएलवी को अब एलवीएम कहा जाता है। लेकिन संख्या कम होने के बावजूद हमें मायूस नहीं होना चाहिए, क्योंकि हमारा बजट कहीं कम था, हालांकि महत्वाकांक्षा के लिहाज़ से हम विश्व की बराबरी पर हैं।

Published: undefined

भारत के मून मिशन की ऐतिहासिक कामयाबी के बाद, अगला कदम होगा मानव को कक्षा में भेजना। भारत ने यह उपलब्धि 1980 के दशक में हासिल कर ली थी, लेकिन एक रूसी रॉकेट के जरिए ऐसा किया गया था। वह अंतरिक्ष यात्री थे राकेश शर्मा, जो ज भी पृथ्वी की कक्षा में जाने वाले अकेले भारतीय है। वे 40 साल पहले अप्रैल 1980 में अतंरिक्ष में गए थे। अगर सबकुछ ठीक रहा तो भारत अगले दो साल या कुछ अधिक समय में अपने गगनयान नामक अंतरिक्षयान के जरिए भारतीयों को अंतरिक्ष की कक्षा में भेजने में सक्षम होगा।

भारत ने इस क्षेत्र का सबसे मुश्किल पड़ाव पहले ही पार कर लिया है, यानी पृथ्वी की कक्ष में सुरक्षित तरीके से रॉकेट को भेजना और इतना ही नहीं इसने बीते 40 साल में अपने पहले लॉन्च से लेकर अब तक इस काम को कई बार अपनी क्षमता को साबित किया है। हाल ही में हमने देखा कि भारत ने प्रॉपल्सिव लैंडिंग में भी महारत हासिल कर ली है, यानी प्रॉपेल के जरिए किसी यान को अंतरिक्ष में उतारना, या साधारण शब्दों में कहें कि किसी अंतरिक्षयान को कक्षा के वेग या गति को कम कर उसकी अपनी ही शक्ति का इस्तेमाल करते हुए नियंत्रित तरीके से वहां उतारना। और अगर हम मानव को अंतरिक्ष पर उतारने में सफल रहे तो हम दुनिया के पांचवी ऐसी एजेंसी होंगे जो ऐसा कर पाए। इससे पहले अभी तक रूस, अमेरिका, चीन और निजी कंपनी स्पेसएक्स ऐसा कर पाई है। उम्मीद है कि हम वहां पहुंच सकेंगे और फिर उसके बाद और अधिक के लिए कोशिश करेंगे।

Published: undefined

तो वह और अधिक क्या होगा?

अंतरिक्ष कार्यक्रमों का अंतिम लक्ष्य राष्ट्रीय प्रतिष्ठा को स्थापित करना नहीं है, क्योंकि कुछ समय बाद ही किसी काम को सबसे पहले करने की बात पीछे छूट ही जाएगी। और इस दिशा में काफी उपलब्धियां पहले ही हासिल की जा चुकी हैं। कक्षा में सबसे पहला व्यक्ति भेजना, अंतरिक्ष में सबसे पहले चहलकदमी करना, चांद पर उतरना आदि, ये सब 50 साल पहले हो चुका है। ऐसे भी लोग हैं जिन्हें अंतरिक्ष की कक्षा या अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन में एक साल तक गुजारा है। अगर कुछ सर्वप्रथम कार्य बचा है तो वह यह कि आने वाले दशकों में हम मानव को मंगल पर उतार सकें और शायद वहां कोई स्थाई केंद्र स्थापित कर सकें। इसलिए सर्वप्रथम होना ही काफी नहीं है और यह अंतिम लक्ष्य नहीं है, जोकि मानव सभ्यता को बढ़ावा देगा।

अगर और जब भी कोई अंतरिक्षयान हमारे ग्रह यानी पृथ्वी से बाहर निकलता है या सौरमंडल को छोडंकर दूसरे मंडल में जाता है तो वह किसी देश का नहीं बल्कि एक ग्रह से दूसरे ग्रह के लिए संदेश लेकर जाता है। अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन ने इस बात को समझा है और माना है। ये अमेरिका, जापान, रूस, कनाडा और यूरोपीय यूनियन का साझा प्रयास है। अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन में इस समय जो अंतरिक्ष यात्री हैं उनके नाम देखकर ही इसकी विविधता समझी जा सकती है। इनके नाम हैं, रूबियो, प्रोकपिएव, पेतेलिन, बॉवेन, होबर्ग, अलनेयदी और फेदेयेव। इसके लावा 26 अगस्त को ही चार अन्य अंतरिक्ष यात्री जाने वाले हैं, और उनके नाम हैं फुरुकावा, बोरिसोव, मोगबेली और मॉगेंसन।

Published: undefined

यहां यह बात गौर करने की है कि तमाम दिक्कतों के बावजूद जबकि यूरोप और अमेरिका उसे रूस के खिलाफ हथियार मुहैया करा रहा है, संयुक्त अंतरिक्ष कार्यक्रम जारी है। ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि अंतरिक्ष में प्रगति और उपलब्धि देशों से कहीं अधिक है। अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन का चीन सदस्य नहीं है, लेकिन इसने पना अलग स्टेशन बना रखा है और उसे हर साल विस्तार भी देता है।

साधारण बात करें तो विज्ञान और विशेष रूप से अंतरिक्ष हमें पृथ्वी का वासी होने के नाते एक दूसरे के करीब लाता है। कहा जाता है कि जिन भी अंतरिक्ष यात्रियों ने पृथ्वी का चक्कर लगाया है, उनमें आमूल-चूल परिवरत्न हुआ है।  वे बदल चुके हैं। वे हमारे ग्रह को उस नजरिए से देखते हैं जिसे बाकी दुनिया नहीं देख सकती। उनकी आंखें देख सकती हैं कि कितना महीन और नीला है वायुमंडल और कितना जोखिम भरा भी। वे ऊपर से पृथ्वी की भौतिक स्थिति देख चुके हैं, जिसमें न सीमाएं हैं और न ही कोई भेदभाव, है तो बस एक संयुक्त गोला।

और इसीलिए अंतरिक्ष के क्षेत्र में होने वाली हर प्रगति से हमें उत्साहित होना चाहिए और एक दूसरे को बढ़ावा देना चाहिए कि हमारे ग्रह और हम सबके लिए एक बेहतर भविष्य को लेकर उम्मीदें जिंदा हैं।

Published: undefined

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia

Published: undefined