विचार

डूब गया चंद्रशेखर का 'तेज़'? भीम आर्मी में फूट, आजाद को 'रावण' सा अहंकारी बताकर अपनों ने छोड़ा साथ

चंद्रशेखर ने अपने नाम के आगे से अहंकार का प्रतीक रावण तो हटा लिया मगर इस समय जब उनके संगठन और पार्टी दोनों में टूट हो गई है तो सबसे दिलचस्प यह है कि उन पर उनके साथी ही अहंकारी होने का आरोप लगाकर अलग हो रहे हैं।

फोटो: Getty Images
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एक दिन भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर ने मीडियाकर्मियों से अपील जारी कि कोई उनके नाम के आगे रावण न लिखे, उन्होंने यहां तक कहा कि अगर कोई ऐसा करेगा तो उसके खिलाफ कार्रवाई करेंगे। चंद्रशेखर का कहना था कि उन्होंने अपने नाम के आगे कभी रावण नहीं लगाया था। युवा साथी उन्हें ऐसे ही कहते थे। चंद्रशेखर ने अपने नाम के आगे से अहंकार का प्रतीक रावण तो हटा लिया मगर इस समय जब उनके संगठन और पार्टी दोनों में टूट हो गई है तो सबसे दिलचस्प यह है कि उन पर उनके साथी ही अहंकारी होने का आरोप लगाकर अलग हो रहे हैं।

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आस मोहम्मद

2015 में जब भीम आर्मी की स्थापना की गई थी तो इसे चार दोस्तों ने बनाया था। इन चारों गहरे मित्रों में एक को अध्यक्ष बनाया गया, दूसरे को राष्ट्रीय महासचिव तीसरे को राष्ट्रीय प्रवक्ता और चौथे थे चंद्रशेखर, जिन्हें भीम आर्मी चीफ की उपाधि दी गई थी। अभी तीन दिन पहले दिल्ली के अंबेडकर भवन में इन्हीं चार में से 2 दोस्त अपने लाव लश्कर के साथ पहुंचे और उन्होंने भीम आर्मी के सैकड़ों कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए पहले दोस्त चीफ यानि चंद्रशेखर और दूसरे दोस्त अध्यक्ष यानि विनय रतन सिंह के विरुद्ध तमाम तरह के आरोपों की बारिश करते हुए बगावत का ऐलान कर दिया।

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आस मोहम्मद

ऐसा करने वाले थे भीम आर्मी के राष्ट्रीय महासचिव कमल सिंह वालिया और राष्ट्रीय प्रवक्ता मंजीत नोटियाल। इसके बाद राष्ट्रीय महासचिव कमल सिंह वालिया ने और भी आगे बढ़कर संगठन के प्रवक्ता मंजीत नोटियाल को अगला राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित कर दिया। इस घोषणा के दौरान कमल सिंह वालिया और मंजीत नोटियाल ने वहां उपस्थित समाज के लोगों के समक्ष ऐसी बहुत सी कमियां गिनाई जिन्हें लेकर वो चंद्रशेखर से नाराज हुए और उन्हें भटका हुआ नेता बताया। मंजीत नोटियाल ने कहा कि चंद्रशेखर अब बहुजन मिशन से भटक गए हैं। उनमें अहंकार पनप गया है। वो भोग-विलासी हो गए हैं। उनमें जरूरी संघर्ष का माद्दा अब नहीं दिख रहा है। बहुजन समाज पर लगातार उत्पीड़न हो रहा है मगर वो अब समाज के हित मे पहले जैसा संघर्ष नहीं कर रहे हैं। समाज में अब उनसे निराशा पनप रही है। बहुजन समाज के लोग अब सहजता से उनसे मिल भी नहीं सकते हैं। वो बड़े नेता बन गए हैं। मंजीत नॉटियाल सहारनपुर के बेहट के रहने वाले हैं और चंद्रशेखर के पुराने मित्रों में है। वो खेल से लेकर जेल तक चंद्रशेखर के साथी रहे हैं।

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भीम आर्मी एकता मिशन की स्थापना उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जनपद में ही 2015 में की गई थी। शुरुआत में भीम आर्मी में इस जनपद के भारी तादाद में दलित युवा शामिल हुए थे। चंद्रशेखर इसी जनपद के छुटमलपुर कस्बे के रहने वाले है। भीम आर्मी समाज में शिक्षा को बढ़ावा देने और बहुजनों में जनजागरण अभियान चलाने के लिए बनाई हुई संस्था है, हालांकि उसे बड़ी चर्चा अप्रैल - मई 2017 को सहारनपुर में हुए ठाकुर बनाम दलित संघर्ष के दौरान मिली जब इस संगठन से जुड़े सैकड़ों युवाओं को जेल भेज दिया गया। खुद चंद्रशेखर रावण को 17 महीने जेल में रखा गया और देश भर में लाखों दलित युवाओं का झुकाव भीम आर्मी की तरफ हो गया। भीम आर्मी की पहचान एक ऐसे संगठन की बन गई जो दलितों के उत्पीड़न पर उसी भाषा मे जवाब देती है।

जेल से बाहर आने के बाद भी भीम आर्मी चंद्रशेखर कई तरह के संघर्षों में अग्रणी रहे। खासकर दलितों और मुस्लिमों के विरुद्ध उत्पीड़न से जुड़े मामलों में उन्होंने काफी सक्रियता दिखाई। साल 2020 में टाइम मैगजीन ने भी उन्हें उभरते हुआ संघर्षशील युवा मानकर सलाम किया। सहारनपुर के संघर्ष से लेकर दिल्ली में सीएए -एनआरसी आंदोलन में सहभागिता और हाथरस की बेटी को इंसाफ दिलाने मुहिम तक चंद्रशेखर सबसे आगे दिखाई दिए। उत्तर प्रदेश चुनाव से ठीक पहले चंद्रशेखर ने आज़ाद समाज पार्टी बनाकर चुनाव लड़ा। इस दौरान पार्टी का प्रदर्शन काफी खराब रहा। अब चंद्रशेखर कहीं नहीं दिख रहे हैं। भीम आर्मी संगठन में उनके विरुद्ध आवाजें उठ रही है बल्कि यूं कहिए भीम आर्मी टूट चुकी है। जो युवा को आदर्श मानते थे उनमें निराशा है। हाल के दिनों में चित्रकूट, फर्रुखाबाद और लखनऊ में दलित समाज मे हुई घटनाओं में उनकी कमी महसूस हुई है।

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भीम आर्मी के संस्थापक सदस्य कमल सिंह वालिया बताते हैं कि जब चंद्रशेखर भाई जेल में भी नही थे तो समाज की तमाम मां उनकी गिरफ्तारी रोकने के लिए संघर्ष कर रही थी। युवाओं ने उनका साथ देने के बदले में मुक़दमे झेले, समाज की औरतें सर्दी में धरने पर बैठी रही। जब उनको जेल भेज दिया गया तो हमारे घरों में चूल्हे नहीं जले। समाज ने बुरे समय में उनका साथ नहीं छोड़ा मगर उनका अच्छा समय आया तो वो बदल गए। जब सफलता मिलती है तो बहुत सारे बदलाव आते है यह भी ऐसा ही एक बदलाव है।

भीम आर्मी की तरह चंद्रशेखर के बनाए हुए राजनीतिक दल आज़ाद समाज पार्टी में भी भारी उथल -पुथल मची हुई है। 2020 में ही बनाई गई आसपा को भविष्य में बसपा का विकल्प कहकर प्रचारित किया जा रहा था मगर यूपी में हुए 2022 के पहले चुनाव के बाद ही उनकी पार्टी के आधे से ज्यादा नेतागणों ने चंद्रशेखर से किनारा कर लिया है। उनकी कोर कमेटी के आधा दर्जन सदस्य उनसे दूर हो चुके हैं। पार्टी की स्थापना में शामिल रहे कई नेतागणों ने दूरी बना ली है। अंबेडकर वादी और दिवंगत कांशीराम के करीबी रहे आज़ाद समाज पार्टी का थिंक टैंक समझे जाने वाले गाजियाबाद के पूर्व एमएलसी एमएल तोमर भी चंद्रशेखर का साथ छोड़ चुके हैं। 68 वर्षीय एमएल तोमर कहते हैं कि चंद्रशेखर समय से पहले बड़े हो गए हैं। मायावती को बड़ा होने में समय लग गया था। वो बहुजन मिशन से वो भटक गए हैं। उनके अंदर भोग विलास पनप गया है। उन्हें बड़े होटल ,बंगले और बड़ी गाड़िया भा रही है। वो भूल गए हैं कि जिस समाज की उन्हें लड़ाई लड़ने के लिए शक्ति दी गई थी उस समाज को दो वक़्त की रोटी के लिए भी मशक्कत करनी पड़ती है।

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आस मोहम्मद

आज़ाद समाज पार्टी के एक और संस्थापक सदस्य और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के प्रभारी कुंवर देवेंद्र सिंह भी उनसे दूर हो चुके हैं। कुंवर देवेंद्र कहते हैं चंद्रशेखर लोकतांत्रिक नहीं है। वो जो कहते हैं वो ही आदेश हैं। उनके स्वभाव में लचक नहीं है। वो तने खड़े रहते हैं। राजनीतिक पार्टियों के नेताओं के लिए यह स्वभाव बेहद नकारात्मक है और यही कारण है कि उनके सभी अपने उनसे दूर हो रहे हैं। कोर कमेटी के एक और सदस्य निजाम चौधरी भी चंद्रशेखर से नाराज़ है, वो कहते हैं आजकल उनकी राजनीति समझ मे नही आ रही है। उनका कार्यकर्ताओं से गैप बहुत बढ़ गया है। वो अपने ही लोगों के बीच रहना चाहते हैं। उनसे जो उम्मीदें थी वो कमजोर पड़ गई है। आज़ाद समाज पार्टी के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के अधिकतर सदस्य या तो पार्टी छोड़ चुके हैं अथवा निष्क्रिय हो गए हैं। पूर्व विधायक वासुदेव, पूर्व विद्यायक मोहम्मद गाजी और पूर्व बसपा कॉर्डिनेटर हाजी सबील जैसे बड़े चेहरे अब चंद्रशेखर के साथ नही है।

दलित युवा नेता गौरव भारती कहते हैं सिर्फ पार्टी नेता ही नहीं बल्कि समाज के नौजवान भी उनसे दूर हो गया हैं। उनके भीम आर्मी संगठन को युवाओं का समर्थन था और चन्द्रशेखर का बहुत अधिक सम्मान भी था मगर उन्होंने पार्टी बनाकर सब खराब कर दिया। समाज की अपनी पार्टी बसपा है। जब तक बहन जी है सभी की भावनाएं बसपा के साथ है। इसका बहुत खराब संदेश गया। उन्हें अभी संगठन के माध्यम से समाज की लड़ाई लड़नी चाहिए थी।

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चंद्रशेखर के घर सहारनपुर में उनके प्रति सबसे ज्यादा नकारात्मकता की बात हो रही है। न केवल उनके समाज में बल्कि मुसलमानों में भी उन्हें लेकर भारी नाराजग़ी है। चंद्रशेखर को सहारनपुर के मुस्लिम समुदाय का हमेशा सहयोग मिलता रहा है। हाल के दिनों में जुमे की नमाज़ के बाद हुए बवाल में बहुत से बेगुनाह मुस्लिम युवाओं के जेल भेजे जाने पर भी चंद्रशेखर की चुप्पी ने उनसे नाराजग़ी का माहौल बना दिया है। इसमें भी सबसे बड़ी बात यह है कि उनकी पार्टी का एक नेता लखनऊ से बेगुनाहों की रिहाई के लिए ज्ञापन देने आया तो पार्टी के अंदरूनी सूत्र बताते हैं कि चंद्रशेखर इस बात से नाराज हो गए। दरअसल अंदर की बात यह है कि चंद्रशेखर ने अब मुसलमानों के किसी भी मुद्दे पर न बोलने का फैसला लिया है। पार्टी में इसे लेकर बात भी हुई है। आज़ाद समाज पार्टी के कोर कमेटी के एक सदस्य ने बताया कि उनसे दिल्ली के जहांगीरपूरी में बुलडोजर अभियान और जुमे की नमाज के बाद हुई पुलिस की ज्यादती के खिलाफ बोलने के लिए आग्रह किया गया तो उन्हें कहा गया कि मुसलमान सारा वोट तो समाजवादी पार्टी को देता है। इनकी लड़ाई वो क्यों लड़े ! चंद्रशेखर का सूरज अब डूब रहा है।

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