इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (आईआरजीसी) की विदेशों में काम करने वाली शाखा- अल कुद्स फोर्स के कमांडर जनरल कासिम सुलेमानी के विशाल जनाजे का तेहरान गत 6 जनवरी की सुबह गवाह बना। इससे पहले मैंने कभी भी अपने देश में इतनी भीड़ कभी नहीं देखी थी। लेकिन मेरे पिता के लिए, यह इस्लामी क्रांति के जनक इमाम खुमैनी के जनाजे की याद थी। उनका निधन 1989 में हुआ था। सुलेमानी का कॅरियर इरान-ईराक युद्ध के वक्त शुरू हुआ जिसमें उन्होंने अपने जन्म स्थान- कारमान क्षेत्र, से 41वें डिवीजन को कमान दी थी। युद्ध के बाद वह डिवीजन के कमांडर बने रहे और उन्होंने ईरान के पूर्वी क्षेत्र में ड्रग माफिया से संघर्ष किया। 1998 में उन्हें अल-कुद्स फोर्स का नेतृत्व करने के लिए नियुक्त किया गया।
यहां यह जानना रोचक है कि उनका पहला मिशन अफगानिस्तान में तालिबान के साथ संघर्ष करने के लिए अमेरिकी सेनाओं के साथ समन्वय बनाना था। जब अमेरिका ने ईरान, इराक और उत्तर कोरिया पर उंगलियां उठाने के लिए बुराइयों की धुरी (एक्सिस ऑफ एविल्स) टर्म का इस्तेमाल किया, तो इससे अफगानिस्तान में अमेरिका और अल-कुद्स फोर्स के बीच सहयोग खत्म हो गया। सुलेमानी ने अपनी सैन्य कुशलताओं को निखारने के साथ यहां महत्वपूर्ण राजनीतिक पाठ सीखे ताकि बाद के अंतरराष्ट्रीय सहयोगों में उन्हें कोई गच्चा न दे पाए।
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अफगानिस्तान से लेकर लेबनान तक फैले सहयोगियों का उनका नेटवर्क क्षेत्र में प्रमुख शिया परिवारों और इस्लामी जगत में औपनिवेशिक विरोधी और साम्राज्यवाद विरोधी तक के विषम मिश्रण पर आधारित था। अरब क्रांति के आगमन और इस्लामिक स्टेट (आईएसआईएस) के उभारने तक क्षेत्र में उनकी गतिविधियों का चरम दिखा जब अल-कुद्स फोर्स ने अमेरिका के तथाकथित ‘नए मध्यपूर्व’ योजना का सक्रिय विरोध शुरू किया। ईरान इस क्षेत्र में गड़बड़ी के पीछे यहूदीवाद का हाथ साफ तौर पर देख रहा था और उसने क्षेत्र की जनता की भलाई के लिए लोकतंत्र और सुधारों काआह्वान कर इलाके में स्थिरता लाने की कोशिश की।
ईरान की रणनीतिक गहराई पिछले दशक में सुलेमानी के अथक प्रयासों का नतीजा है। ईरान और इसरायल के बीच तमाम किस्म के तनावों के बावजूद ईरान की प्रतिरक्षक शक्ति ने उसे सुरक्षित रखा और यह उस नेटवर्क का परिणाम है जो सुलेमानी ने तैयार किया। यह विडंबना ही है कि राष्ट्रीय हितों को पहले न रखने और ईरान, इसरायल और अमेरिका के बीच तनाव बढ़ाने के लिए ईरान की तथाकथित ‘सुधारवादी पार्टी’ के राजनीतिज्ञों ने अल-कुद्स फोर्स पर बराबर आरोप लगाए। इनके बावजूद, अपने कमांडर की शहादत के साथ पूरा देश उठ खड़ा हुआ है और एकपक्षीय अमेरिकी कार्रवाई के खिलाफ एकताबद्ध है।
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राष्ट्रपति पद के लिए हुए पिछले दो चुनावों में इस पद पर चुनाव लड़ने के लिए सुलेमानी पर काफी दबाव रहा। उन्होंने दोनों पक्षों के सभी राजनीतिज्ञों, खासतौर पर जवद जरीफ जो उनके राजनयिक प्रतिद्वंद्वी थे, के साथ अच्छे संबंध रखे, लेकिन वह राजनीति से दूर रहे। एक निजी बातचीत में उन्होंने अपने करीबी दोस्त से कहा था कि राष्ट्रपति पद उनके लिए ‘काफी छोटा’ है।
पिछले साल जब मैं अरबईन में इमाम हुसैन की जियारत करने इराक गया, उस वक्त इराक में भ्रष्टाचार विराधी प्रदर्शन हो रहे थे। अयातुल्ला सिस्तानी ने जियारत के लिए विरोध-प्रदर्शनों को स्थगित करने की अपील की थी। लेकिन तब भी मैं हवा में तनाव को महसूस कर सकता था। रास्ते में जब मैं इराकियों से बातचीत कर रहा था, तब मैंने पहली बार सुलेमानी और अल-कुद्स फोर्स की लोकप्रियता में कमी का अनुभव किया। लोग उन पर भ्रष्टाचारी होने का संदेह भी कर रहे थे।
प्राचीन ईरानी महाकाव्य- शाहनामा, की सबसे रोचक कहानियों में सियावाश की कहानी है। युद्ध की कलाओं में निपुण युवा राजकुमार को अपने पिता ईरान के शाह कैकाऊस के दरबार में प्रवेश की अनुमति मिली। लेकिन उसकी सौतेली मां ईरान की महारानी सुदाबेह उसे बुरी तरह चाहने लगी। उनकी मिन्नतों को नकारते हुए सियावाश उनकी योजनाओं में शामिल नहीं हुआ। इस पर उसने बलात्कार और गर्भपात कराने और सियावाश पर दोहरी आपदा लाने का आरोप लगाया। सियावाश को जलते हुए विशाल पहाड़ पर चढ़करअपने को निर्दोष साबित करना था। वह आग को पार करता है और अपनी मासूमियत सिद्ध करता है। मेरे लिए, सुलोमानी की कहानी लगभग इसी तरह की है। उनके निधन पर इराक और ईरान- दोनों देशों में भारी भीड़ इकट्ठा हुई। ईरान के साथ-साथ इराक में भी राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन हुए।
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ईरान में जनाजे में शामिल होने वालों में विभिन्न राजनीतिक दृष्टिकोणों और सामाजिक पृष्ठभूमियों वाले लोग थे। यह लगभग पूरे देश का एक साथ खड़े होने, इस आतंकी कार्रवाई से गहरा जख्म महसूस करने- जैसी भावना थी। वे गुस्से में थे, अमेरिका और इसरायल के खिलाफ नारे लगा रहे थे, उनकी हत्या का तत्काल और गहरे प्रतिकार की मांग कर रहे थे। पूर्व राष्ट्रपतियों- सैयद अहमद खतामी और महमूद अहमदीनेजाद ने या तो जाकर परिवार के लोगों से मुलाकात की या शोक संदेश भेजे। लगातार सरकार के खिलाफ रहे प्रसिद्ध ईरानी उपन्यासकार महमूद दौलताबादी ने भी सहानुभूति और शोक का संदेश भेजा।
सबसे रोचक प्रसंग अरदेशिर जाहेदी का रहा। वह विदेश मंत्री रहे हैं और ईरान के अंतिम शाह मोहम्मद रेजापहलवी के दामाद हैं। वह 90 साल के हैं और क्रांति के बाद से स्विट्जरलैंड में रह रहे हैं। बीबीसी फारसी के साथ इंटरव्यू में उन्होंने कासिम सुलेमानी के लिए ‘आतंककारी हत्या’ की जगह ‘मारे गए’ टर्म का इस्तेमाल करने के लिए बीबीसी की आलोचना की। निर्वासन में रहने के बावजूद उन्होंने ‘सच्चे राष्ट्रीय वीर’ और ‘राष्ट्र पुत्र’ के तौर पर सुलेमानी की प्रशंसा की और अपने बचपन के हीरो- चार्ल्स दी गौल और ड्विट आइजेनहावर से उनकी तुलना की। उन्होंने यह भी कहा कि अगर उनकी उम्र कम होती तो वह भी वापस ईरान जाकर सुलेमानी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ते।
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इन सबसे ऐसा लगता है कि नवंबर 2019 में सरकार और लोगों के बीच जो तनाव था, वह खत्म हो गया है। सुलेमानी के मामले में जिस तरह देश एकजुट हुआ है, वैसा वर्षों नहीं हुआ। अमेरिकी कार्रवाई पर तत्काल प्रतिक्रिया करते हुए ईरान ने ईरान परमाणु करार से पूरी तरह हटने का ऐलान किया। ईरान के सुप्रीम नेता अयातुल्लाह खुमैनी ने ‘बड़ा बदला’ लेने की घोषणा की। यहां तक कि इराक की संसद ने इराक की धरती से अमेरिकी फौज की तत्काल पूरी तरह वापसी का प्रस्ताव पास किया। डोनाल्ड ट्रंप ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया जताते हुए इराक पर और प्रतिबंध लगाने की धमकी दी।
बहरहाल, कासिम सुलेमानी के जाने के बाद उनका काम इस्माइल गनी ने संभाला है। इस्माइल गनी पिछले तीन दशकों से सुलेमानी के साथ काम करते रहे। इसमें कोई संदेह नहीं कि ईरान ने एक सच्चे राष्ट्रवादी हीरो को खो दिया है। सुलेमानी क्षेत्र में अमेरिकी उपस्थिति खत्म करने की रणनीति पर काम कर रहे थे और अब उनके इस अधूरे काम को इस्माइल गनी आगे बढ़ाएंगे।
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