
जहां विश्व में बढ़ते आर्थिक अनिश्चय के बीच सोने की मांग बढ़ रही है, वहां सोने की इस बढ़ती चमक का एक स्याह पक्ष भी है वह यह है कि सोने के खनन को इस तरह के वैध-अवैध ढंग से बढ़ाया जा रहा है जिससे हजारों निर्दोष लोग मारे जा रहे हैं या बुरी तरह संकटग्रस्त हो रहे हैं।
सूडान के गृह युद्ध में बहुत क्रूर हिंसा होने के समाचार लगातार मिल रहे हैं। जो पैरा-मिलटरी विद्रोही तत्त्व मान्यता प्राप्त सरकार की सेना से लड़ रहे हैं, वे बहुत खतरनाक हथियार खरीदने में सफल हैं और इनके बल पर क्रूर हिंसा कर रहे हैं। इन्हें इन हथियारों के लिए अपार धन कहां से मिलता है?
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दरअसल सूडान में जहां सोने के बड़े भंडार हैं ऐसे अनेक क्षेत्रों में विद्रोहियों का आधिपत्य है। वे यहां के लोगों से खतरनाक स्थितियों में सोने का खनन करवाते हैं जिससे इनके जीवन और स्वास्थ्य के लिए अनेक खतरे हैं। इतना ही नहीं, यह खनिक सरकारी सेना के लड़ाकू विमानों के निशाने पर भी आ जाते हैं। वे इस तरह के दोतरफा संकट को झेल रहे हैं जिससे अनेक लोग मारे जाते हैं।
इसके बाद जिन व्यक्तियों को इस खनिज सोने को ढुलाई कर आसपास की रिफाईनरी में भेजने का कार्य किया जाता है, वे भी बहुत खतरों से गुजरते हुए ही यह तस्करी कर रहे हैं।
इस सोने के व्यापार से जिन तत्त्वों को बड़ी आय होती है, वे आगे इन विद्रोहियों को विध्वंसक हथियार उपलब्ध करवाते हैं या इसके लिए धन देते हैं। इस तरह जिस सोने से सूडान के अति निर्धन, विस्थापित और भुखमरी झेल रहे लोगों की मूल जरूरतें पूरी होनी चाहिए थी, उस राष्ट्रीय धन का उपयोग उन्हें मारने वाले हथियारों की खरीद के लिए हो रहा है।
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उधर गृह युद्ध के दूसरी ओर खड़ी सरकारी सेना भी सोने के खनन से प्राप्त धनराशि के बड़े हिस्से का उपयोग बेहद विध्वंसक हथियार खरीदने के लिए ही कर रही है।
आईए अब अफ्रीका के दो अन्य देशों डेमोक्रेटिक रिपब्लिक आफ कांगो (डीआरसी) व रवांडा की स्थिति को देखें। डीआरसी में सोने के बड़े भंडार हैं। रवांडा में भी सोना है पर अपेक्षाकृत कहीं कम। कुछ वर्षों में यह प्रवृत्ति बहुत संदेह की परिधि में आई है कि रवांडा में जितना सोने के खनिज का अपना आधार है, उससे अपेक्षाकृत कहीं अधिक निर्यात वह करता है। यह कैसे संभव है? आरोप लगे हैं कि डीआरसी के कुछ विद्रोही लड़ाकुओं की सहायता से रवांडा डीआरसी का बहुत सा सोना अपने यहां मंगवा लेता है व फिर इसे अपना सोना बता कर निर्यात कर देता है।
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ऐसा सबसे बड़ा विद्रोही दल एम 23 कहलाता है। इसके रवांडा से नजदीकी संबंध तो सर्वविदित है। इसका आधिपत्य डीआरसी के उन क्षेत्रों में हो चुका है जहां सोना व कुछ अन्य मूल्यवान खनिज अधिक मात्रा में पाए जाते हैं।
जरूरी बात है कि जब अवैध और चोरी-छिपे खनन होगा तो उससे खनिकों को अधिक खतरे उठाने पड़ेंगे। पहले विद्रोही उनसे जबरदस्ती खनन करवाएंगे और यदि इसके विरुद्ध कोई बड़ी सरकारी स्तर की कार्यवाही हुई तो वे ही पहले निशाने पर आएंगे।
पर सोने से जुड़ी हिंसा का वहां इससे भी बड़ा कारण यह है कि चूंकि सोने के अवैध खनन व तस्करों से विद्रोहियों व रवांडा के कुछ सत्ताधारियों को अपार धन मिल रहा है व इस धन से अधिक विध्वंसक हथियार खरीदे जा रहे हैं, अतः सोने की तस्करी ही विद्रोहियों की हिंसा को जारी रखने का एक बड़ा कारण बन गया है।
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यह मात्र दो-तीन देशों की ही स्थिति नहीं है, अनेक स्थानों पर सोने के खनन व तस्करी से बहुत सी हिंसा जुड़ गई है। यह जरूरी है कि राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ऐसी कार्यवाही ठीक से की जाए जिससे इस बहुमूल्य खनिज से प्राप्त राशि का उपयोग हिंसा के स्थान पर स्थानीय लोगों की भलाई के लिए किया जाए। आखिर ऐसा क्यों है कि सूडान व डीआरसी में इतना सोना है, पर यहां के लोग धोर निर्धनता व भुखमरी से पीड़ित हैं? इस क्रूर विडंबना को समाप्त करना है तो यहां उपलब्ध सोने व अन्य बहुमूल्य खनिजों का न्यायोचित उपयोग होना चाहिए।
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