विचार

विष्णु नागर का व्यंग्यः रिश्वत का गुजरात मॉडल है तो बहुत आकर्षक, मगर यूपी-बिहार में चल नहीं सकता!

हिंदू-मुस्लिम भाईचारा भले ही वहां खत्म कर दिया गया हो मगर रिश्वत के मामले में भाईचारा स्थापित हो गया है। वहां भ्रष्टाचार का झटका सिस्टम है, हलाल प्रथा नहीं। भ्रष्टाचारी अपने शिकार की ईएमआई तय कर देते हैं। आधी अभी दे दो, बाकी बाद में हर महीने देते रहना।

रिश्वत का गुजरात मॉडल है तो बहुत आकर्षक, मगर यूपी-बिहार में चल नहीं सकता
रिश्वत का गुजरात मॉडल है तो बहुत आकर्षक, मगर यूपी-बिहार में चल नहीं सकता फोटोः सोशल मीडिया

बड़ा अच्छा और बड़ा ही आदर्श प्रदेश‌ है गुजरात, जिसने महात्मा गांधी दिये तो नरेन्द्र मोदी देने में भी कंजूसी नहीं की और जो भी दिया, खूब दिया और उसे अपने प्रदेश तक सीमित नहीं रखा, पूरे देश को दिया। यह इस राज्य के लोगों का बड़प्पन है। यहां का नमकीन भी पूरी तरह नमकीन नहीं होता, उसमें अमूमन मीठा मिला होता है! यहां नमक को भी नमक नहीं, मीठू कहते हैं। यहां के भ्रष्ट अधिकारी-कर्मचारी मीठू नहीं, मीठे होते हैं। इतने दयालु, इतने कृपालु, इतने विनयशील, इतने संस्कारी होते हैं कि रिश्वत भी किस्तों में ले लेते हैं।

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रिश्वत देने वाले के प्रति, लेनेवाले में ऐसी सहानुभूति का होना अन्यत्र दुर्लभ है। इसमें करुणा का वैष्णव भाव है। यहां का रिश्वतखोर निर्मम नहीं होता। सारा माल पहले धरवा कर, फिर काम नहीं करता। रिश्वत देनेवाले पर रिश्वत लेनेवाला एकसाथ इतना बोझ नहीं डालता कि एक ही बार में बेचारा टें बोल जाए। और बाद में किसी और मामले में रिश्वत देने के काबिल नहीं रहे! इसमें वह 'दूरदर्शिता' है, जो देश के प्रधानमंत्री में पाई जाती है।

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हिंदू-मुस्लिम भाईचारा भले ही वहां खत्म कर दिया गया हो मगर रिश्वत के मामले में भाईचारा स्थापित हो गया है। वहां भ्रष्टाचार का झटका सिस्टम है, हलाल प्रथा नहीं। भ्रष्टाचारी अपने शिकार की ईएमआई तय कर देते हैं। आधी अभी दे दो, बाकी बाद में हर महीने देते रहना। तुम भी मौज करो, हम भी मौज करते हैं। रिश्वत का यह गुजरात मॉडल है तो बहुत आकर्षक है मगर यूपी-बिहार में यह चल नहीं सकता। इसे पूरे भारत में सफल बनाने का एक ही उपाय सरकार के पास है कि संसद में एक विधेयक लाकर इसे अखिल भारतीय स्वरूप दे! संकल्प से सिद्धि तक पहुंचे!

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यह गुजरात मॉडल आदर्श तो है मगर हर आदर्श समस्याग्रस्त होता है‌‌ तो कुछ समस्याएं इसमें भी हैं। एक बार काम निकाल जाने के बाद काम करवाने वाले कुछ लोगों के मन में 'बेईमानी' पैदा हो जाती है। वे बकाया किस्तें चुकाने की जगह पुलिस थाने में शिकायत कर देते हैं और रिश्वत लेवक ने जिस विश्वास और मैत्री भाव की नींव रखी थी, उसे खोखला कर देते हैं। वैसे इस तरह के मामले सौ में एक-दो ही होते होंगे वरना यह सिस्टम फेल हो जाता! ईएमआई पद्धति का पतन हो जाता!

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इस देश के इस समय में ईमानदार आदमी पर खतरा भ्रष्ट व्यक्ति की अपेक्षा सौ गुना ज्यादा है, जबकि रिश्वत लेना और देना 99 फीसदी तक सुरक्षित है। वरना इतने लोग रोज पकड़े जाते हैं, फिर भी यह धंधा तेजी से पनप रहा है! कोई एक भी प्रमाण बता दे कि यह धंधा संकट में है और बंद होने के कगार पर है। बाबाजी के आशीर्वाद से सब अच्छी तरह चल रहा है।

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अपने देश की एक और बड़ी विशेषता यह है कि यहां भ्रष्टाचार, लूट और धोखाधड़ी के क्षेत्र में बहुत अधिक प्रतिभाएं सक्रिय हैं और बहुत जल्दी सफलता की सीढ़ियों पर सीढ़ियां चढ़ रही हैं। इस क्षेत्र में जितने नित नए-नए अन्वेषण हो रहे हैं, उतने अगर विज्ञान और प्रौद्योगिकी में हुए होते तो भारत, चीन और अमेरिका दोनों से आगे निकल जाता और 2047, 2025 में ही संपन्न हो जाता और मोदी जी बहुत पहले झोला लेकर अहमदाबाद पहुंच चुके होते!

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