खुशी या मानसिक संतुष्टि के बुनियादी सिद्धांतों पर लगातार प्रश्न उठते रहे हैं। इस विषय पर लगभग सभी अध्ययन अमेरिका या यूरोप के समृद्ध देशों में किए जाते रहे हैं, और वहां के अध्ययन के परिणामों को ही पूरी दुनिया, जिसमें गरीब देश भी शामिल हैं, पर लागू कर दिया जाता है। पर, अब अनेक अध्ययन यह बताते हैं कि गरीबों की खुशी और अमीरों की खुशी में बहुत अंतर है- बल्कि दोनों लगभग एक दूसरे के विपरीत हैं।
अक्टूबर 2024 में साइंस ऐडवानसेज नामक जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार जीवन-पर्यंत खुशी के संदर्भ में विकसित देशों और गरीब देशों में कोई समानता नहीं है। अधिकतर ऐसे शोध और अध्ययन विकसित औद्योगिक देशों में किए गए हैं, जहां सामाजिक सुरक्षा का तंत्र मजबूत है। इन अध्ययनों के अनुसार अधिकतर लोगों की जीवन पर्यंत खुशी को अंग्रेजी के यू अक्षर की तरह परिभाषित किया जा सकता है।
Published: undefined
इसमें बचपन और किशोरावस्था में लोग खुश रहते हैं क्योंकि कोई जिम्मेदारी नहीं रहती, इसके बाद जीवन और रोजगार की परेशानियाँ खुशी छीन लेती हैं, फिर कुछ वर्षों के रोजगार के बाद और मनचाही भौतिक समृद्धि हासिल करने के बाद खुशी वापस लौट आती है जो सेवानिवृत्ति के बाद भी बनी रहती है। इस अध्ययन के अनुसार अब तक इसी सिद्धांत को वैश्विक पटल पर सही माना जाता था, पर अब मनोवैज्ञानिकों को समझ आ गया है कि ऐसा गरीब देशों में नहीं होता, बल्कि अमीर देशों में भी गरीबों के साथ ऐसा नहीं होता।
इस अध्ययन के अनुसार गरीब देशों में जीवन पर्यंत खुशी अमीर देशों के ठीक उल्टा, उल्टे यू के आकार जैसी होती है। इन देशों में बचपन और किशोरावस्था गरीबी, तमाम रोगों और सुविधाओं के अभाव में बीतता है- जाहिर है इस दौरान खुशी आस-पास भी नहीं फटकती। इसके बाद कैसा भी रोजगार यदि मिल जाए तो कुछ खुशी मिलती है पर एक उम्र के बाद परिवार का बोझ उठाते-उठाते फिर से खुशी गायब हो जाती है। अधिकतर गरीब देशों में सामाजिक सुरक्षा का कोई प्रावधान नहीं रहता, इसलिए खुशी छिन जाती है। इस अध्ययन को यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के माइकल गुरवें के नेतृत्व में भारत समेत 23 देशों में किया गया है।
Published: undefined
इतना तो तय है कि हम क्यों खुश रहते हैं, क्यों कुछ लोग जीवन से संतुष्ट रहते हैं- इसका कोई भी सर्वमान्य कारण अभी तक नहीं पता चल पाया है। अमीर देशों की समृद्धि लोगों को खुश रखती है तो गरीब देशों में यह लोगों के मजबूत मानसिक स्वास्थ्य पर निर्भर करता है। खुशी या जीवन की संतुष्टि का रहस्य सुलझाने की और इस पर एक सहमति बनाने की मनोवैज्ञानिक लगातार कोशिश कर रहे हैं। अब एक नए और विस्तृत अध्ययन से यह स्पष्ट हुआ है कि खुशी मनुष्य के मानसिक स्वास्थ्य पर निर्भर है और खुशी के कारण हरेक व्यक्ति के अलग होते हैं और इसका एक कारण खोजना कठिन है। इसीलिए, सरकारें यदि सामाजिक स्तर पर हरेक व्यक्ति को खुशी या संतुष्टि देना चाहती हैं तो कोई भी एक तरीका पूरे समाज पर कारगर असर नहीं डाल सकता है।
अब तक खुशी के दो महत्वपूर्ण और प्रचलित सिद्धांत हैं। पहला और सबसे अधिक माना जाने वाला सिद्धांत, “बाटम अप” है, इसके अनुसार मनुष्य की खुशी का मूल कारण समृद्धि- यानि संतुष्टि वाला रोजगार, स्वास्थ्य, संपत्ति और बेहतर दाम्पत्य या घरेलू माहौल है- इन सभी से ही जीवन में संतुष्टि आती है और लोग खुश रहते हैं। इस सिद्धांत के अनुसार किसी की खुशी के लिए व्यक्ति से अधिक समाज जिम्मेदार रहता है। वर्ल्ड हैप्पीनेस इंडेक्स में इसी सिद्धांत का उपयोग किया जाता है। पर लगातार अपने आसपास ऐसे लोगों को देखते हैं, जो विकट परिस्थितियों में भी खुश रहते हैं और यही इस सिद्धांत की सबसे बड़ी चुनौती है।
Published: undefined
दूसरा सिद्धांत “टॉप डाउन” है, इसके अनुसार खुशी किसी के मानसिक स्वास्थ्य पर निर्भर करती है। इस सिद्धांत के अनुसार मनुष्य की संतुष्टि उसका वैयक्तिक गुण है और सामाजिक परिस्थितियों से परे है। इस वैयक्तिक गुण को मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर कर बढ़ाया भी जा सकता है। हाल में ही नेचर ह्यूमन बिहेवियर नामक जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार मनुष्य की खुशी या संतुष्टि का कारण सामाजिक हो सकता है, वैयक्तिक हो सकता है, दोनों हो सकता है या फिर दोनों में से कोई नहीं हो सकता है। यह एक अन्तराष्ट्रिय अध्ययन है और इसके लिए स्विट्ज़रलैंड, जर्मनी, ब्रिटेन, नीदरलैंड्स और आस्ट्रेलिया में 40000 से अधिक वयस्कों पर गहन अध्ययन किया गया। इसमें से लगभग 49-49 प्रतिशत वयस्कों की खुशी का राज आंतरिक या भौतिक था। शेष में या तो खुशी के दोनों कारण थे, या फिर कोई भी कारण स्पष्ट नहीं था।
इस अध्ययन के अनुसार जो व्यक्ति आंतरिक और मानसिक तौर पर खुश है, उसे बहुत अधिक भौतिक सुविधा के बाद भी बहुत अधिक खुशी नहीं मिलती। इस अध्ययन में कहा गया है कि दुनिया भर की सरकारें अपनी जनता को संतुष्ट और खुश रखने का प्रयास करती हैं, इसके लिए नीतियाँ बनाती हैं- पर इनसे बहुत अंतर नहीं आता। इसका कारण यह है कि अलग-अलग लोगों के खुशी का कारण अलग-अलग रहता है और पूरे समाज के लिए केवल एक नीति से अधिक प्रभाव नहीं पड़ता।
Published: undefined
Google न्यूज़, नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें
प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia
Published: undefined