विचार

विष्णु नागर का व्यंग्यः ‘भारतपिता’ के राज में यह खलनायकों के नायक बनने का मौसम है

इन्हें जिताते जाइए, गोडसे को नायक बनाने में, गांधी को मिटाने में इनकी मदद करते जाइए। इंतजार कीजिए, जब गोडसे की 150वीं जयंती धूमधाम से मनाई जाएगी। ये खलनायकों को नायक इसी तरह बनाते हैं। साल 2002 का खलनायक इसी तरह नायक बनकर अब ‘भारतपिता’ की पदवी पा चुका है।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

महात्मा गांधी की 150वीं जयंती है। उनकी बहुत जयजयकार हो रही है। आप भी कर रहे हैं, मैं भी कर रहा हूं। आप भी खुश हैं, मैं भी खुश हूं। हम सब खुश हैं, खुशी मेंं नाच रहे हैं, गा रहे हैं। खुश होने में फिर भी कमी रह गई हो तो आइए आप-हम चार-छह पोस्ट लिख मारें, कोई छापे तो गांधीजी पर लेख लिख दें। मौका भी है, दस्तूर भी है, तो आइए भाषण भी दे लें।

जो आपको-मुझको विद्वान नहीं मानते हैं, उनसे इस तरह चलिए, अपनी विद्वत्ता मनवाने की कोशिश करते हैं। फिर भी वे न मानें तो आइए मैं आपको और आप मुझे विद्वान मान लें। मोदीजी की तरह मियांं मिट्ठू बनने से तो ‘परस्परं प्रशंसंति, अहो रूपम, अहो ध्वनि’ ज्यादा अच्छा है। अभी भी खुशी में कमी रह गई हो तो आइए इस पर भी कुछ देर खुश हो लेते हैं कि देखा, नाथूराम गोडसे के भक्तों को भी आज गांधी-गांधी करना पड़ रहा है।

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और अब दिल कड़ा करके सुन लीजिए महाशय और महाशया कि गांधी-गांधी सब ऊपर-ऊपर से किया जा रहा है। सच यह है कि 2014 ही नहीं, 2019 में हमने जिन्हें चुना है, वे जमाना गांधी का नहीं, गोडसे का लाना चाहते हैं, बल्कि लाते जा रहे हैं। पर्दा गांधी का है, फिल्म गोडसे की चल रही है। ऐन गांधी जयंती के दिन ट्विटर पर गांधी की नहीं, गोडसे की जय-जयकार हो रही थी। और यह भी सुन लीजिए कि एक ओर मोदीजी, गांधीजी की जय-जयकार भी करते हैं, दूसरी तरफ गोडसे के भक्तों को फॉलो भी करते हैं। और एक-दो अपवादों को नहीं, सैकड़ों को। उनको फॉलो करते हैं, जो गोडसे को राम और कृष्ण मानते हैं और गांधीजी को रावण और कंस। जो कहते हैं कि गांधी को फांसी होनी चाहिए थी और गोडसे ने गांधी को मारकर गलत क्या किया?

मोदी जी उनके फॉलोअर हैं, जो कहते हैं, प्रखर राष्ट्रवादी गोडसे, गांधी की मुस्लिमपरस्ती सहन नहीं कर पाया। इसमें उसकी क्या गलती है? जिनको प्रधानमंत्री फालो करते हैं, वे गांधीजी नहीं, 'गोडसेजी' या मोदीजी बनना चाहते हैं। उन्हें गांधी का नाम गाली लगता है और गोडसे ईश्वर समान लगता है। मोदीजी, गोडसे के फॉलोअर के फॉलोअर हैं, इसलिए गांधीजी के फोटो को गोली मारनेवाली उस हिंदू नेत्री का बाल बांका नहीं होता और होगा भी नहीं कभी।

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भोपाल की सांसद प्रज्ञा ठाकुर भी सभी संघियों की तरह पक्की गोडसे भक्त हैंं। उन्होंने तो लोकसभा चुनाव से ऐन पहले ही गोडसे को 'राष्ट्रवादी' बताकर मोदीजी के जमे-जमाये खेल को बिगाड़ दिया था। पब्लिक भड़क न जाए, इसलिए खुद मोदीजी ने इन महोदया को खुलेआम धमकाया था। उनके अनंत कुमार हेगड़े, साक्षी महाराज के खिलाफ बीजेपी की अनुशासन समिति ने तब नोटिस भी जारी किया था कि दस दिन में जवाब दो कि तुम लोगों ने गोडसे को 'राष्ट्रवादी' क्यों कहा? वे दस दिन अभी पूरे नहीं हुए हैं, और कभी होंगे भी नहीं।

इनके रहते गोडसे को अमर कहने वालों का कुछ न होगा। गोडसे का जन्मदिन 'शौर्य दिवस' के रूप में मनाने वालों का कुछ न होगा। खुश रहो कि अभी गांधीजी की जयकार कर सकते हो, वह भी खुलेआम। अभी इतना बुरा वक्त भी नहीं आया है कि अमित शाह, गांधीजी को 'चतुर बनिया' कहें तो हंगामा न हो, मगर यही सब चलता रहा तो वह भी दिन आएगा, जब गांधीजी की जयकार करना संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आएगा। यह कहना अपराध होगा कि देश की आजादी में संघ की कोई भूमिका नहीं है।

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मोदीजी-शाहजी अभी थोड़ा इंतजार कर रहे हैं, करवा भी रहे हैं। अभी माहौल ऐसा बना रहे हैं और बनवा रहे हैं, जब गोडसे 'न्यू इंडिया' का राष्ट्रीय हीरो घोषित होगा। जब गांधी हो या भगत सिंह की बात करना गुनाह माना जाएगा। जब पाठ्यपुस्तकों से इनका रहा-सहा जिक्र भी गोल कर दिया जाएगा। जब राजघाट का हाल भी वही होगा, जो तीन मूर्ति का हो रहा है। अभी गोडसे का नाम कड़वी गोली की तरह लग रहा है, इसे जल्दी ही शुगर कोटेड बनाया जाएगा। इसे बिटर चाकलेट की तरह भी पेश किया जाएगा। लोग इसे शौक से ग्रहण करेंगे। चाय -काफी के शौकीनों को यह शुगर फ्री के रूप में दिया जाएगा।

आप बस इन्हें जिताते जाइए और गोडसे को नायक बनाने में, गांधी को मिटाने में इनकी मदद करते जाइए। उस दिन का इंतजार कीजिए, जब गोडसे की 150वीं जयंती धूमधाम से मनाई जाएगी। ये खलनायकों को नायक इसी तरह बनाते हैं। साल 2002 का खलनायक इसी तरह एक दिन नायक बन गया और अब 'भारतपिता' की पदवी पा चुका है। ये खलनायकों के नायक बनने का ही मौसम है। आइए,आइए इसे भी 'एनज्वाय' कीजिए। लेट्स हैव ए ड्रिंक इन द नेम आफ 'महात्मा गोडसे'!

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