विचार

खरी-खरी: बीजेपी के ‘भारत तोड़ो’ प्रचार के मुकाबले के लिए कांग्रेस का ‘भारत जोड़ो’ अभियान वक्त की बड़ी जरूरत

इस आंदोलन की सबसे अधिक आवश्यकता है क्योंकि भारतीय युवा एवं मध्यवर्ग बड़ी संख्या में बीजेपी के हिन्दुत्व की ‘भारत तोड़ो’ विचारधारा की ओर मुड़ गया है। उस वर्ग को फिर से भारत की बहुलतावादी सभ्यता से जोड़ने के लिए भारत जोड़ो जैसे बड़े आंदोलन की आवश्यकता है।

Getty Images
Getty Images Deepak Sharma

उदयपुर में गहरे चिंतन एवं मनन के बाद कांग्रेस पार्टी ने अंततः अपने पुनर्निर्माण के लिए कमर कस ली है। देश को स्वतंत्रता और आधुनिकता का मार्ग दिखाने वाली 134 वर्षीय कांग्रेस इस समय अपने इतिहास के सबसे घोर संकट से गुजर रही है। सन 2014 से अब तक लगातार संसद और विभिन्न राज्यों में चुनावी हार ने मानो पार्टी की कमर ही तोड़ दी। कांग्रेस चुनाव पहले भी हारी है। पार्टी ने 1977 में आपातकाल के बाद दिग्गज नेता इंदिरा गांधी के नेतृत्व में लोकसभा चुनाव हार के साथ गहरा संकट झेला। लेकिन केवल तीन वर्षोंके भीतर पार्टी खड़ी हो गई। 1989 में वीपी सिंह के नेतृत्व के समय कांग्रेस फिर केन्द्रीय सत्ता खो बैठी। लेकिन जल्द ही सत्ता में वापस आ गई। फिर अटल बिहारी वाजपेयी ने कांग्रेस को 1998 में पछाड़ा। लेकिन सोनिया गांधी ने 2004 में वाजपेयी जैसे नेता को हराकर देश को आश्चर्यचकित कर दिया। सारांश यह कि कांग्रेस ने कई संकट झेले लेकिन जल्दी ही हर संकट से उबर कर फिर से खड़ी हो गई। 2014 में नरेन्द्र मोदी से चुनाव हारने के बाद तो अब यह आशंका लगने लगी मानो कांग्रेस पार्टी का अस्तित्व ही खतरे में हो।

Published: undefined

इस बार कांग्रेस पार्टी निःसंदेह अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। इसलिए यह केवल एक चुनावी रणनीति खोज लेने का अवसर नहीं है बल्कि पार्टी को पुनर्निर्माण की लड़ाई लड़नी होगी। यह संघर्ष केवल पार्टी में नई जान फूंकने का ही नहीं बल्कि भटके भारतवर्ष को फिर उसके सदियों पुराने मार्ग पर वापस लाने का संघर्ष है। स्वतंत्रता संग्राम के समान यह संघर्ष भी जटिल एवं कठिन है। कारण यह है कि नरेन्द्र मोदी ने भारतवर्ष को इसके बहुलतावादी (प्लूरिस्टिक) मार्ग से हटाकर हिन्दुत्व के रास्ते पर लगा दिया है। यह अब एक वैचारिक संघर्ष (आइडियालॉजिकल बैटल) है। यह केवल चुनाव जीतने का ही नहीं बल्कि देश को पुनः उसके संवैधानिक मार्ग पर वापस लाने का संघर्ष है। इसलिए यह चुनाव के साथ-साथ चिंतन की भी लड़ाई है। देश भर में जनता का वोट ही नहीं, साथ में जनता की सोच भी बदलनी होगी। यह एक भीषण संघर्ष है जिसका देशव्यापी नेतृत्व, राहुल गांधी के अनुसार, कांग्रेस ही कर सकती है।

Published: undefined

यह एक लंबी लड़ाई है जिसके लिए कांग्रेस को हर स्तर पर पुनर्निर्माण की आवश्यकता है। उदयपुर चिंतन शिविर का महत्व यही है कि पार्टी वहां से जिन संकल्पों के साथ उभरी है, उनसे यह प्रतीत हो रहा है कि पार्टी इस संघर्ष के लिए खड़ी हो रही है। वैसे तो पार्टी ने उदयपुर में जितने भी संकल्प किए हैं, वे सब ही इस संघर्ष के लिए अनिवार्य एवं महत्वपूर्ण हैं। लेकिन मेरे विचार में पार्टी के तीन फैसले अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। पहला, संगठनात्मक स्तर पर पार्टी को भारत के स्तर पर जोड़ने के लिए युवा स्वरूप देना चाहती है। इसलिए पंचायत, जिला एवं ऊपर तक पार्टी संगठन की कमान युवाओं को सौंपना चाहती है क्योंकि पार्टी को अब एक संघर्ष का मार्ग अपनाना है। इसलिए इसकी कमान युवाओं के हाथों में होनी चाहिए। पार्टी अब इसके लिए तैयार है। यह पार्टी के पुनर्निर्माण के लिए पहला महत्वपूर्ण कदम होगा। कांग्रेस ने उदयपुर में यह फैसला ले ही लिया है। इसलिए कांग्रेस को पार्टी का राष्ट्रीय अधिवेशन बुलाकर जल्द ही पार्टी की कमान राहुल गांधी को दे देनी चाहिए जो इस फैसले को तुरंत लागू कर सकें।

Published: undefined

उदयपुर में कांग्रेस पार्टी का दूसरा अत्यंत महत्वपूर्ण फैसला यह हुआ है कि उसने सामाजिक न्याय के सिद्धांत को पूर्ण रूप से गले लगा लिया। सच तो यह है कि मंडल कमीशन लागू होने के बाद कांग्रेस ने पहली बार सामाजिक न्याय को पूर्णरूप से अपनाया है। 1990 में वीपी सिंह की पिछड़ों को आरक्षण की घोषणा के बाद उस समय कांग्रेस ने जातीय आधार पर आरक्षण का विरोध किया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने जब पिछड़ों के आरक्षण को मान्यता दे दी, तो नरसिंह राव की सरकार ने आरक्षण स्वीकार कर लिया। लेकिन संगठनात्मक और वैचारिक- दोनों स्तर पर पार्टी में इस परिवर्तन की झलक कहीं नहीं दिखाई पड़ती थी। यदि यह कहा जाए कि कांग्रेस सामाजिक न्याय के मामले में लंबे समय तक अपनी उच्च जातीय लॉबी के दबाव में रही, तो कुछ गलत नहीं होगा। उदयपुर में पार्टी को न केवल अपनी इस गलती का एहसास हुआ बल्कि पार्टी अब संगठनात्मक स्तर पर पिछड़ों, दलितों, आदिवासियों एवं अल्पसंख्यकों को बड़े स्तर पर स्थान देने को तैयार है।

Published: undefined

मेरी अपनी राय में उदयपुर चिंतन शिविर का यह फैसला अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसका एक मुख्य कारण है कि इस समय वैश्विक स्तर पर पहचान की राजनीति की लहर चल रही है। अमेरिका में गोरे नस्लवाद से लेकर भारत में हिन्दुत्व तक इसका जोर है। लगभग सारी दुनिया में राजनीति की धुरी कार्ल मार्क्स के क्लास बिन्दु से हटकर इस समय पहचान की धुरी की ओर मुड़ चुकी है। शायद उसका मुख्य कारण यह है कि आर्थिक स्तर पर ग्लोबलाइजेशन और मार्केट इकॉनामी ने पिछले लगभग तीन दशकों में जो एक बड़ा आकांक्षी वर्ग (एस्परेशनल क्लास) पैदा किया है, वह अब सत्ता पर कब्जा करने की जल्दी में है। लेकिन सारी दुनिया में शासक वर्ग और क्रोनी कैपिटलिस्ट के आपसी गठबंधन ने इस उभरते वर्ग को पहचान की राजनीति में भटकाकर एक प्रति क्रांति (काउंटर रिवोल्यूशन) उत्पन्न कर दिया है और इस प्रकार सत्ता परिवर्तन का मार्ग रोक दिया है।

Published: undefined

हिन्दुत्व भी एक प्रति क्रांतिकारी विचारधारा है जिसके माध्यम से पिछड़ों एवं दलितों को धर्म के मायाजाल में फांसकर इस नए आकांक्षी वर्ग को सत्ता से दूर रखने का माध्यम ढूंढ़ लिया है। यह पहचान की राजनीति एक नकारात्मक राजनीति है। सामाजिक न्याय इसी राजनीति की सकारात्मक काट है जिसको कांग्रेस पार्टी ने उदयपुर में पूर्ण रूप से स्वीकार कर लिया है। इस फैसले से कांग्रेस को सत्तावर्ग के रोष का सामना तो करना पड़ेगा लेकिन यह वैचारिक एवं संगठनात्मक रूप से पार्टी को पिछड़ों, दलितों एवं अल्पसंख्यकों से जोड़ देगी। सच तो यह है कि हिन्दुत्व का वैचारिक विकल्प केवल सामाजिक न्याय ही है। कांग्रेस ने इस सत्य को अपनाकर अपने पुनर्निर्माण का रास्ता ढूंढ लिया है।

Published: undefined

उदयपुर चिंतन शिविर का तीसरा सबसे अहम फैसला देशव्यापी स्तर पर ‘भारत जोड़ो’ आंदोलन छेड़ने का है। इस आंदोलन की कमान स्वयं सोनिया गांधी ने अपने हाथों में रखी है। वह 2 अक्तूबर, अर्थात गांधी जयंती के अवसर पर स्वयं भारत भ्रमण की शुरुआत कर ‘भारत जोड़ो’ आंदोलन शुरू करेंगी। उससे पूर्व पार्टी इकाइयों को इस संघर्षके लिए तैयार करने के लिए कांग्रेस 9 अगस्त से रोज जिला स्तर पर भारत जोड़ो आंदोलन छेड़ेगी। कांग्रेस के अनुसार, यह आंदोलन गांधी जी के भारत छोड़ो आंदोलन के स्वरूप पर होगा। इस आंदोलन की सबसे अधिक आवश्यकता है क्योंकि भारतीय युवा एवं मध्यवर्ग बड़ी संख्या में हिन्दुत्व की ‘भारत तोड़ो’ विचारधारा की ओर मुड़ गया है। उस वर्ग को फिर से भारत की बहुलतावादी सभ्यता से जोड़ने के लिए भारत जोड़ो जैसे बड़े आंदोलन की आवश्यकता है। गांधी जी ने जिस प्रकार भारत छोड़ो आंदोलन के माध्यम से देशभर में आजादी की ललक पैदा कर दी थी, वैसे ही भारत जोड़ो आंदोलन के माध्यम से कांग्रेस को हिन्दुत्व विचारधारा से भटकी जनता को फिर से देश की संवैधानिक धारा से जोड़ना होगा। यह संकल्प भी कठिन है लेकिन इस समय अनिवार्य है और इसी में कांग्रेस एवं देश का हित है।

Published: undefined

इतिहास साक्षी है कि जब-जब कांग्रेस कमजोर हुई, तब-तब भारत कमजोर हुआ है। इस समय फिर वही स्थिति है। कांग्रेस कमजोर है और देश खोखला हो रहा है। तभी तो मोदी राज के केवल सात-आठ वर्षों में देश की अर्थव्यवस्था छिन्न-भिन्न हो चुकी है। बेरोजगारी का सैलाब है। महंगाई आसमान छू रही है। मोदी के नेतृत्व में क्रोनी कैपिटलिस्ट पनप रहा है और जनता का बुरा हाल है। वैचारिक एवं सामाजिक स्तर पर देश नफरत की राजनीति में भसम हो रहा है। इस भीषण संकट से निपटने के लिए कांग्रेस का पुनर्निर्माण ही एकमात्र रास्ता है। उदयपुर में कांग्रेस ने अपने इस पुनर्निर्माण का मार्ग खोज निकाला है। अब पार्टी को एक दिन का भी समय गंवाए बिना इस मार्ग पर चल पड़ना चाहिए। संघर्ष कठिन और भीषण होगा। लेकिन संघर्ष ही एकमात्र रास्ता है जिसमें पार्टी और देश- दोनों की भलाई है।

Published: undefined

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia

Published: undefined