चार्ल्स डिकेन्स का मशहूर उपन्यास है- ‘टेल ऑफ टू सिटीज’। इसके शुरू में ही कहा गया है- इट वाज दि बेस्ट ऑफ टाइम्स। इसी तर्ज पर भारत-अमेरिका के रिश्तों को देखा जा सकता है जहां कहानी दो शहरों की नहीं, दो देशों की है जिसमें ‘सबसे अच्छा दौर’ तब था, जब डॉ. मनमोहन सिंह भारत के प्रधानमंत्री थे। इसके बिल्कुल उलट दोनों देशों के रिश्तों का ‘सबसे बुरा दौर’ अब है, जब नरेंद्र मोदी भारतीय शासन के ‘प्रधान सेवक’ हैं।
चाहे अमेरिका के प्रति मोदी का आकर्षण बचपन में जन्मा हो या 1993 में अमेरिकी विदेश विभाग द्वारा प्रायोजित युवा नेताओं के कार्यक्रम में भाग लेने के लिए अमेरिका की यात्रा के बाद, उन पर अमेरिका का जादू ऐसा रहा है कि उन्होंने 2002 के गुजरात नरसंहार में अपनी कथित भूमिका के लिए एक दशक तक अमेरिका में प्रवेश पर प्रतिबंध लगाए जाने के अपमान को भी नजरअंदाज कर दिया।
2014 में केंद्र की सत्ता में आने के कुछ ही महीनों बाद वह दौड़े-दौड़े अमेरिका जा पहुंचे। इसके बाद अमेरिकी राष्ट्रपतियों के साथ उनका शर्मनाक तरीके से गले मिलने का सिलसिला शुरू हो गया, मानो वे सब उनके कब के दोस्त हों! बराक ओबामा विनम्र थे, फिर भी बड़ी शालीनता के साथ संकेतों में बता दिया कि मोदी ने गांधीवादी सिद्धांतों को त्याग दिया है। जो बाइडेन ने संरक्षणवादी रुख रखा।
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डॉनल्ड ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में तो मोदी की इस गलबहियां को बर्दाश्त कर लिया; लेकिन, मई 2020 में जब चीनी सैनिक एलएसी (वास्तविक नियंत्रण रेखा) का उल्लंघन करके भारतीय इलाके में घुस गए, तो उन्होंने भारत के पक्ष में क्वाड को सक्रिय नहीं किया और चीन-भारत के बीच मध्यस्थता की पेशकश की।
स्पष्ट है कि दूसरे कार्यकाल में ट्रंप मोदी के अच्छे दोस्त नहीं रहे। जब ट्रंप मोदी को ‘अच्छा दोस्त’ कहते हैं, तो वह दोहरी बात कर रहे होते हैं। भारत के प्रति ट्रंप का रुख लापरवाही भरा है और इसकी वजह यह है कि वह जानते हैं कि उनके सामने मोदी की घबराई-घबराई-सी मुस्कराहट और बिछा-बिछा-सा व्यवहार आखिर उनकी हां में हां मिलाने में बदल जाने वाला है।
30 जुलाई को ट्रंप ने अपने पसंदीदा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘ट्रुथ सोशल’ पर कहा: ‘भारत हमारा दोस्त है, लेकिन पिछले कई सालों में हमने उसके साथ अपेक्षाकृत कम व्यापार किया क्योंकि उसके टैरिफ बहुत ज्यादा हैं… दुनिया में सबसे ज्यादा हैं, और किसी भी देश की तुलना में वहां सबसे सख्त और आपत्तिजनक गैर-मौद्रिक व्यापार प्रतिबंध हैं। इसके अलावा, उन्होंने हमेशा अपने ज्यादातर सैन्य साज-ओ-सामान रूस से ही खरीदे हैं, और चीन के साथ, वे रूस के सबसे बड़े ऊर्जा खरीदार हैं… वह भी ऐसे समय में जब हर कोई चाहता है कि रूस यूक्रेन में हत्याएं रोके - सब कुछ ठीक नहीं है! इसलिए भारत को पहली अगस्त से 25 फीसद टैरिफ और उपरोक्त के लिए जुर्माना देना होगा। इस मामले पर ध्यान देने के लिए धन्यवाद। मागा!’
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दरअसल, ट्रंप के साथ पेंगें बढ़ाने के लिए मोदी का फरवरी में भागकर वाशिंगटन जाने का कोई फायदा नहीं हुआ। मोदी सरकार के अधिकारी बेशक अपने अमेरिकी समकक्षों से इसपर पुनर्विचार की अपील करेंगे और ट्रंप की पसंद का व्यापार समझौता करने के लिए रियायतें देने की पेशकश करेंगे। अगर ट्रंप की घोषणा छलावा साबित होती है, जो कि हो भी सकती है, तो यह कारगर भी हो सकता है। लेकिन अगर ऐसा नहीं है, तो ट्रंप का यह फैसला भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए करारा झटका साबित होगा।
भारत का रुख क्या रहेगा? अमेरिका के साथ व्यापार घाटे की भरपाई दूसरे देशों के साथ कारोबार बढ़ाकर करने की कितनी गुंजाइश है? 2024 में अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार रहा, उसके बाद चीन, संयुक्त अरब अमीरात, सिंगापुर, सऊदी अरब, रूस, हांगकांग, जर्मनी, इंडोनेशिया और इराक शीर्ष 10 में रहे।
भारत से आयात के मामले में चीन निहायत संरक्षणवादी रहा है। मोदी के ऑपरेशन सिंदूर के दौरान बीजिंग द्वारा पाकिस्तान का खुलकर समर्थन करने के मद्देनजर, चीन से भारतीय निर्यात के लिए अपना बाजार खोलने के लिए कहना अपमानजनक होगा। यह बेहद अफसोसनाक है कि भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर मानसरोवर यात्रा फिर से शुरू करने की गुहार लगा रहे हैं।
जहां तक दूसरे देशों का सवाल है, उनके बाजार इतने बड़े नहीं हैं कि वे भारतीय निर्यात में तेजी से हो रही वृद्धि को झेल सकें। एकमात्र विकल्प 27 देशों वाले यूरोपीय संघ के साथ समझौता करना हो सकता है, जिसकी कुल जनसंख्या 50 करोड़ है और जिसकी प्रति व्यक्ति आय चीन (13,303 डॉलर) से ज्यादा (43,145 डॉलर) है। लेकिन यह एक अलग ही कहानी है।
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अमेरिका-ईयू ट्रेड डील
ट्रंप अपने ननिहाल स्कॉटलैंड में थे। वहां उनका अपना गोल्फ कोर्स है। वैसे तो वह वहां तफरीह के लिए गए थे, लेकिन अपनी यात्रा को व्यापार से भी जोड़ दिया। इसी के तहत उन्होंने यूरोपीय संघ की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन के साथ बैठक भी की। दोनों 15 फीसद के परस्पर व्यापार शुल्क पर सहमत हो गए जो ट्रंप द्वारा दी गई धमकी का आधा था। इस समझौते के तहत यूरोपीय संघ ने ट्रंप के शेष कार्यकाल के दौरान अमेरिका से 750 अरब डॉलर मूल्य के ऊर्जा आयात की प्रतिबद्धता जताई है। इसके साथ ही, यूरोपीय संघ चीन और भारत की उन रिफाइनरियों को यूरोप को तेल बेचने से रोकेगा जो रूसी कच्चे तेल को रिफाइन करके पेट्रोल या डीजल तैयार करती हैं।
गुजरात के वाडिनार में नायरा एनर्जी की 2 करोड़ टन क्षमता वाली रिफाइनरी यूरोपीय संघ के प्रतिबंधों का पहला शिकार बनी। रूसी तेल कंपनी रोसनेफ्ट की इस कंपनी में 49.1 फीसद हिस्सेदारी है। यूरोपीय संघ के इस कदम का उद्देश्य रूस की कमाई पर लगाम लगाना है ताकि यूक्रेन के खिलाफ युद्ध के लिए धन जुटाने की उसकी क्षमता कम हो सके।
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मनमोहन सिंह के बहुपक्षीय गठबंधन की नीति को खूंटी पर टांगकर और अमेरिका की ओर झुककर मोदी ने चीन को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि भारत 1993 की शांति और सद्भाव संधि की मूल भावना से मुकर रहा है। उधर, मास्को ने दिल्ली की बांहें मरोड़नी शुरू कर दीं। वहीं, रूस के साथ भारत की निकटता पश्चिम को खटक रही है। मोदी ने भारत को प्रभावी रूप से एक ओर कुआं और दूसरी ओर खाई की स्थिति में ला दिया है।
एक और दिक्कत यह है कि मोदी ने यूरोपीय संघ को कम महत्व दिया। दोनों के बीच मुक्त व्यापार समझौते पर 15 साल से बातचीत हो रही है। फिर भी, इसमें संदेह नहीं कि भारतीय तेल रिफाइनरियों के खिलाफ यूरोपीय संघ के हालिया कड़े रुख के बावजूद यूरोपीय संघ के साथ व्यापार में अचानक आई तेज वृद्धि ही उस झटके के असर को कम कर सकती है जिसके लिए ट्रंप भारत को धमका रहे हैं।
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ग्राहम फैक्टर
70 वर्षीय लिंडसे ग्राहम दक्षिण कैरोलिना राज्य के एक उग्र रिपब्लिकन सीनेटर हैं। एक बार वह अमेरिकी उत्पादों पर उच्च शुल्क लगाने के मामले में भारत को ‘सबसे बुरा’ देश करार दे चुके हैं। ग्राहम अब रूसी तेल खरीदने वाले देशों पर कड़े प्रतिबंध लगाने के लिए सीनेट में एक विधेयक लाने वाले हैं। अगर वह सफल होते हैं, तो ट्रुथ सोशल पर ट्रंप जो अस्पष्ट-सी धमकी दे रहे हैं, वह पूरी स्पष्टता के साथ सामने आ सकती है। रूसी कच्चे तेल को रिफाइन करना और तैयार ईंधन अंतरराष्ट्रीय बाजार में बेचना भारत के लिए कमाई का बड़ा स्रोत बन गया है और इसी कारण भारत का भुगतान संतुलन भी काफी हद तक इसपर निर्भर हो गया है।
जुलाई में विदेशमंत्री जयशंकर ने मीडिया को बताया, ‘हम सीनेटर ग्राहम के संपर्क में हैं... ऊर्जा, सुरक्षा से जुड़ी हमारी चिंताएं और हमारे हित उन्हें बता दिए गए हैं…’। गौरतलब है कि ग्राहम ने आक्रामक अंदाज में कहा थाः ‘मैं चीन, भारत और ब्राजील से यही कहूंगा: यदि आप इस युद्ध (यूक्रेन) को जारी रखने के लिए सस्ता रूसी तेल खरीदते रहेंगे, तो हम आपको तबाह कर देंगे और आपकी अर्थव्यवस्था का कचूमर बना देंगे, क्योंकि आप जो कर रहे हैं वह ब्लड मनी है।’
बेशक, यूक्रेन के कट्टर समर्थक होने के नाते ग्राहम ट्रंप से सहमत नहीं हैं, जो क्रेमलिन के प्रति अपेक्षाकृत नरम रहे हैं। हालांकि स्कॉटलैंड में अपने प्रवास के दौरान, ट्रंप ने रूस को यूक्रेन के साथ कम-से-कम एक अस्थायी युद्धविराम तक पहुंचने के लिए 10-12 दिन का एक और अनौपचारिक अल्टीमेटम जारी किया था।
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