विचार

अमेरिकी चुनाव: कई मामलों में मजूबत हालत में बिडेन, कोरोना के मोर्चे पर ‘नाकामी’ ट्रंप को पड़ सकती है महंगी

सीएनएन के पोल ऑफ पोल के मुताबिक, डोनाल्ड ट्रंप के मुकाबले जो बिडेन को 10% की बढ़त हासिल है। सीएनएन ने यह नतीजा द न्यूयॉर्क टाइम्स, सरकारी प्रसारक पीबीएस, एनबीसी/वॉल स्ट्रीट जर्नल और एबीसी/वाशिंगटन पोस्ट समेत विभिन्न एजेंसियों के सर्वेक्षणों को ध्यान में रखते हुए निकाला।

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया 

अमेरिका के राष्ट्रपति का चुनाव एक प्रतियोगी के लिए दुनिया का सबसे बड़ा निर्वाचन क्षेत्र है। यह 23 करोड़ मतदाताओं वाला निर्वाचन क्षेत्र है। इसमें 3 नवंबर तक लगभग 15 करोड़ लोगों के वोट देने की उम्मीद है। कोरोनो वायरस महामारी के कारण विशेष मतदान व्यवस्था के तहत लगभग 50% पहले ही अपना मत डाल चुके हैं।

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अमेरिकी चुनावी प्रणाली में देश भर में लोकप्रिय वोट चुनाव का फैसला नहीं करते। बहुमत के आधार पर राज्यों को जीतना निर्णायक कारक बनता है। इस तरह मिली जीत अमेरिका के 50 राज्यों में इलेक्टोरल कॉलेज वोट में तब्दील होती है और फिलहाल राष्ट्रीय स्तर पर यह आंकड़ा 538 का बैठता है। इसलिए, बहुमत का आंकड़ा 270 हो जाता है। कोई उम्मीदवार ज्यादा राज्यों को खोकर भी चुनाव जीत सकता है अगर उसने पर्याप्त संख्या में इलेक्टोरल वोट हासिल कर लिए। इलेक्टोरल वोट अलग राज्यों में अलग हैं। पश्चिमी तट परस्थित कैलिफोर्निया के 55 वोट हैं तो कई ऐसे राज्य हैं जिनके पास महज तीन वोट हैं।

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वर्ष 1789 में जॉर्ज वाशिंगटन को पहला अमेरिकी राष्ट्रपति बनने का गौरव प्राप्त है। वह निर्विरोध चुने गए थे। वह दोबारा भी चुने गए और उस बार भी बिना विरोध के। इसलिए कह सकते हैं कि अमेरिका में राष्ट्रपति पद के लिए सही मायने में मुकाबला पहली बार वर्ष 1796 में जॉन एडम्स और थॉमस जेफरसन के बीच हुआ। इसमें जॉन एडम्स की जीत हुई लेकिन बहुकोणीय संघर्ष में दूसरे नंबर पर रहे थॉमस जेफरसन को उपराष्ट्रपति नियुक्त किया गया। वर्ष1800 में जेफरसन ने एडम्स को शिकस्त दे दी। 1860 में गुलामी प्रथा को खत्म करने के लिए आंदोलन करने वाले रिपब्लिकन अब्राहम लिंकन ने जीत दर्ज की। उन्होंने अमेरिका में गृहयुद्ध के बीच भारी बहुमत से दूसरे कार्यकाल के लिए भी जीत हासिल की। लेकिन 1865 में उनकी हत्या हो गई। 1932 में जब अमेरिका भयानक मंदी की चपेट में था और बेरोजगारी रिकॉर्ड स्तर पर थी, डेमोक्रेट चैलेंजर फ्रैंकलिन रूजवेल्ट 472 कॉलेज वोटों पर कब्जा करने में कामयाब रहे। उस समय के जो आर्थिक हालात थे, उनकी तुलना आज के अमेरिका से की जा सकती है जब कोविड-19 ने अर्थव्यवस्था का पहिया जाम कर दिया है और जिसके कारण भयानक बेरोजगारी हो गई है।

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“न्यूडील” (आर्थिक सुधार पैकेज) को सफलतापूर्वक पूरा करने के नतीजा यह रहा कि लोगों ने रूजवेल्ट को 1936 में 523 कॉलेज वोट देकर दोबारा सत्ता सौंपी। रिपब्लिकन पार्टी की ओर स्पष्ट झुकाव रखने वाले अफ्रीकी-अमेरिकी मतदाताओं ने पाला बदलते हुए उन्हें वोट दिया। रूजवेल्ट के साथ अनोखी बात यह है कि दो से अधिक बार कार्यकाल पाने वाले वह अमेरिका के एकमात्र राष्ट्रपति हैं। वह लगातार चार बार चुनाव जीते। कमर से नीचे लकवाग्रस्त होने और व्हीलचेयर पर सीमित हो जाने के बावजूद उन्होंने यह उपलब्धि हासिल की और 1944 में अपने अंतिम चुनाव जीतने के एक साल बाद उनकी मृत्यु हुई।

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1947 में अमेरिकी संविधान में संशोधन करते हुए यह कानून बनाया गया कि कोई भी व्यक्ति अधिकतम दो बार और कुल आठ साल के लिए ही राष्ट्रपति बन सकता है। 1951 में राज्यों ने इस कानून का अनुमोदन किया। यूरोपीय थियेटर में द्वितीय विश्वयुद्ध के नायक जनरल ड्वाइट आइजन हावर ने 1952 और 1956 में रिपब्लिकन टिकट पर लगातार दो बार चुनाव जीता। उनके बाद डेमोक्रेट जॉन कैनेडी राष्ट्रपति बने और वह अमेरिका के राष्ट्रपति बनने वाले पहले कैथोलिक थे। उनसे पहले के सभी राष्ट्रपति प्रोटेस्टेंट थे। लेकिन अफसोस की बात है कि वह ऐसे चौथे राष्ट्रपति थे जिनकी पद पर रहते हुए हत्या कर दी गई।

1984 में रोनाल्डरीगन ने दोबारा चुनाव जीता और तब पहली बार हुआ जब किसी महिला को टिकट दिया गया हो। तब उनके डेमोक्रेटिक प्रतिद्वंद्वी वाल्टर मोंडेल ने गेराल्डाइन फेरारो को उपराष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार के तौर पर चुना। इसके बाद सोशल मीडिया और प्रौद्योगिकी पर पकड़ की भूमिका अहम होने लगी और पहली बार एक गैर-श्वेत बराक ओबामा राष्ट्रपति बने। उनके पिता केन्याई थे।

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ज्यादातर राज्यों में मतदान का इतिहास आम तौर पर एक सीधा रेखा में रहा है। इसलिए काफी कुछ स्विंग करने वाले राज्यों पर निर्भर करता है। हालांकि अगर न्यूयॉर्क टाइम्स की भविष्यवाणी की बात करें तो 77 वर्षीय डेमोक्रेटिक दावेदार जो बिडेन एकतरफा जीत की ओर बढ़ रहे हैं। सीएनएन के पोल ऑफ पोल के मुताबिक, डोनाल्ड ट्रंप के मुकाबले जो बिडेन को 10% की बढ़त हासिल है। सीएनएन ने यह नतीजा द न्यूयॉर्क टाइम्स, सरकारी प्रसारक पीबीएस, एनबीसी/वॉल स्ट्रीट जर्नल औरएबीसी/ वाशिंगटन पोस्ट समेत विभिन्न एजेंसियों के सर्वेक्षणों को ध्यान में रखते हुए निकाला। फाइनेंशियल टाइम्स के ट्रैकर ने करिश्माई बराक ओबामा के साथ आठ साल तक उपराष्ट्रपति रहने वाले जो बिडेन को 207 इलेक्टोरल कॉलेज वोट दिए और उसका आकलन है कि 72 और वोटों का झुकाव उनकी ओर है। इसने 74 वर्षीय डोनाल्ड ट्रंप को ऐसे 43 वोट दिए जो उनकी ओर जाते दिख रहे हैं।

वास्तव में, 134 वोट ऐसे हैं जो निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं जहां किसी उम्मीदवार की अनुमानित बढ़त 5% या उससे कम है और इस तरह का रुख कम से कम आठ राज्य दर्शा रहे हैं- टेक्सास (38 वोट), फ्लोरिडा (29 वोट), ओहियो (18 वोट), जॉर्जिया (16 वोट), उत्तरी कैरोलिना (15 वोट), एरिजोना (11 वोट), आयोवा (6 वोट)। ये सभी चार साल पहले ट्रंप के पक्ष में गए थे और इस बार भी टेक्सास और ओहियो में वही आगे हैं। अगर ट्रंप इनमें से ज्यादातर को अपने पक्ष में बनाए रखने में कामयाब रहे तो उनकी संख्या 259 तक बढ़ जाएगी जिससे मुकाबला काफी नजदीकी हो जाएगा। दशकों से डेमोक्रेट के पक्ष में जाने वाले दक्षिणी राज्य इस बार रिपब्लिकन के प्रति झुकाव दिखा रहे हैं। फिर भी जॉर्जिया जिसने 1992 से डेमोक्रेट के लिए मतदान नहीं किया, इस बार कुछ हद तक बिडेन की ओर बढ़ रहा है।

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ब्लूमबर्ग के अनुसार, ज्यादातर वैसे प्रगतिवादी जिनका मोहभंग हो चुका है, ट्रंप से निराश उनके समर्थक, अश्वेत (विशेषरूप से ब्लैक लाइव्समैटर आंदोलन के बाद) और हिस्पैनिक और कोरोना वायरस से निपटने के ट्रंप के तरीके से नाराज लोग जो बिडेन के पक्ष में जाते दिख रहे हैं। पिछली बार बड़ी संख्या में वरिष्ठ नागरिकों ने ट्रंप को समर्थन दिया था लेकिन इस बार उनके रुख में बड़ा अंतर आ सकता है। 2016 में ट्रंप को वोट देने की बात स्वीकार करने में जिन लोगों को झिझक महसूस होती थी, वे इस बार भी उन्हीं के पक्ष में जा सकते हैं। इस श्रेणी की ओर 2016 के पोल में ध्यान नहीं दिया जा सका था लेकिन इस बार सर्वेक्षण करने वालों का दावा है कि इस भूल को सुधार लिया गया है। भारतीय मूल के अमेरिकी पूरी तरह डेमोक्रेट के साथ हैं।

56 वर्षीय वाकपटु कमला हैरिस जिनके पिता कैरेबियन थे और मां चेन्नई से, अमेरिका के मध्यवर्ग के लिए कुछ ज्यादा ही उदार हैं। लेकिन उपराष्ट्रपति के तौर पर उनका जो बिडेन का साथ उनके पक्ष में वामपंथी और अल्पसंख्यक वोटरों को एकजुट कर सकता है। इसके अलावा पिछले दो महीनों में उनके डेमोक्रेटिक प्रतिद्वंद्वी की तुलना में दोगुना विज्ञापन बजट मिलने का एक सीधा-सा मतलब है कि चंदा देने वालों ने ट्रंप को छोड़ दिया है। न्यूयॉर्क शहर के पूर्व महापौर माइकल ब्लूमबर्ग ने तो टेक्सास, फ्लोरिडा और ओहियो में बिडेन के मीडिया कैंपेन का भार उठा रखा है। इसके अलावा ओबामा का आकर्षण भी अंतिम चरण में जो बिडेन के अभियान को मजबूत कर गया है।

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पिछली बार वोटिंग से 11 दिन पहले, फेडरल इन्वेस्टिगेशन ब्यूरो (एफबीआईI) ने कांग्रेस (अमेरिकी संसद) को लिखा था कि उन्होंने हिलेरी क्लिंटन जो पहली महिला राष्ट्रपतिपद की उम्मीदवार थीं, ने 2008-2012 के दौरान ओबामा प्रशासन में विदेश मंत्री रहते हुए मेल पाने और भेजने के लिए अपने व्यक्तिगत ईमेल का इस्तेमाल किया था। अगले दिन यह समाचार सुर्खियों में था और हालांकि मतदान से 48 घंटे पहले ही एफबीआई ने यह साफ कर दिया कि हिलेरी ने कोई गलत काम नहीं किया लेकिन तब तक दे रहो चुकी थी औरट्रंप का “क्रूक्डहिलेरी” अभियान अपना काम करचुका था और हिलेरी की महत्वाकांक्षाओं को ध्वस्त करने के लिए यह काफी साबित हुआ।

इस बार ट्रंप ने बिडेन और उनके बेटे पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए उसी रणनीति को दोहराया है। वैसे तो वह अपने आरोपों को सिद्ध करने में विफल रहे हैं लेकिन इस बात का अंदेशा बना हुआ है कि वह न्याय विभाग और अटॉर्नीजनरल का इस्तेमाल बिडेन को किसी मामले में फंसाने के लिए कर सकते हैं। जो बिडेन की संभावानओं को समाप्त करने के लिए उन्हें अंतिम क्षणों में किसी बहुत बड़े खुलासे की दर का रहोगी।

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