मोदी जी आराम करो,देश तुम्हारे साथ है,
इस बारे में तो दो मत नहीं कि मोदी जी ने संघर्ष बहुत किया है, इतना अधिक किया है कि न भूत में किसी ने किया था, न वर्तमान में कोई कर रहा है, न भविष्य में कोई कर पाएगा। विडंबना यह है कि बेचारे प्रधानमंत्री होकर भी आज बार- बार हवाई जहाज में चढ़ने-उतरने का संघर्ष कर रहे हैं।
पिछले गुरुवार को तो उन्हें ममता दी से जबर्दस्त संघर्ष करना पड़ा। वह भी संघर्षशील,ये भी संघर्षशील। अभी चुनाव आचार संहिता के कारण बेचारे बाहरी तौर पर संघर्ष से दूर हैं, मगर अपनी पार्टी के अंंदर और बाहर वह निरंतर संघर्षरत होंगे। उनके जीवन का ब्रह्मवाक्य है - सत्ता के लिए संघर्ष ही जीवन है, चाहे जिस हद तक जाकर, जो अस्त्र-शस्त्र मिलें, उनसे करो। करो मगर मरो मत।
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आप यह मानकर मत बैठ जाइए कि मोदी जी इन दिनोंं आराम फरमा रहे हैं। नहीं जी, जब तक जनता उन्हें आराम करने के लिए विवश नहीं कर दे, उनका संघर्ष जारी रहेगा। उनके लिए तो आराम करना भी एक संघर्ष होगा। अल्लम- गल्लम भाषण देने के अलावा और दिन में चार -पाँच बार ड्रेस बदलने के सिवाय उनके जीवन में सबकुछ संघर्ष की श्रेणी में आता है और वह भी देश की सेवा के लिए संघर्ष की कोटि में, चाहे श्मशान -कब्रिस्तान करना पड़ जाए, चाहे साध्वी कही जाने वाली गोडसे भक्त प्रज्ञा को चुनाव लड़वाना पड़ जाए।
और, संघर्ष ने तो उनका साथ बचपन से नहीं छोड़ा। आप जरा सोचकर देखिए कि बेचारों को एक ऐसे रेलवे स्टेशन पर जो शायद तब था नहीं, ऐसी चाय जिसे बनाने की जरूरत नहीं पड़ी, ऐसे पीने वाले जो कहीं थे नहीं, उन्हें चाय पिलाने का संघर्ष करना पड़ा। फिर 2014 में प्रधानमंत्री बनने के लिए उस चाय बेचने को याद करना पड़ा, जो बेची नहीं, उसकी याद में चर्चा करना और करवाना पड़ा, कितना अधिक संघर्षपूर्ण रहा होगा यह सब, इसकी कल्पना करके ही रूह काँप जाती है।
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फिर उस कस्बे में जहाँ बताते हैं कि आम के पेड़ थे नहीं, ऐसे पेड़ों पर चढ़ना पड़ा, पके हुए भरपेट आम खाने पड़े, फिर नीचे उतरना पड़ा, गुजरात के भावी मुख्यमंत्री और देश के भावी प्रधानमंत्री को पैदल -पैदल घर लौटना पड़ा, यह सब उनके लिए कितना कठिन रहा होगा! इसकी कल्पना करके ही मुझे आँसू आनेवाले थे, मगर मैंने उन्हें रोक लिया। एक तो मैं मोदी जी से मुकाबला करना नहीं चाहता। दूसरे सारे आँसू मोदी जी के लिए बहा देना उचित नहीं है।आदमी को कुछ आँसू अपने और कुछ दूसरों के लिए भी सुरक्षित रखने चाहिए।
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फिर कई और कठिन संघर्ष किए। उन्होंने शादी की,उस पत्नी को जो सात फेरे लेकर इनके साथ घर बसाने आई ,उसे छोड़ा-बिसराया, मुख्यमंत्री रहने तक शादीशुदा होने का जिक्र तक न किया, मोदी जी के लिए तो शायद संघर्षपूर्ण न रहा होगा मगर श्रीमती जसोदाबेन के लिए तो था ही। तो उस संघर्ष को जो मोदी जी ने किया नहीं, उसकी याद करना आपके- हमारे लिए कितना तकलीफदेह है! यह सुनकर अगर आपकी आँखों में आँसू आए हों तो उन्हें पोंछ लीजिए। जेब में रूमाल न हो तो कमीज की कालर से पोंछ लीजिए। अपने ही आँसू हैं और अपनी ही कमीज है, फिर शर्म कैसी !
फिर हिमालय की गोद में रहने का उनका संघर्ष, जिसके बारे में मोदी जी ही जानते हैं। फिर संघ कार्यकर्ता होने से लेकर बीजेपी महासचिव बनने से लेकर गुजरात का मुख्यमंत्री बनने तक का और फिर हर कीमत पर 2014 तक मुख्यमंत्री बने रहने का संघर्ष। 2002 करवाकर कुर्सी पर जमे रहने का, उस नरसंहार लिए अपने को क्लीन चिट लेने का, फिर अपनों को दोषमुक्त करवाने का संघर्ष।मतलब संघर्ष ही संघर्ष!
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ठहरिए और भी संघर्ष हैं। तीस्ता सीतलवाड़ समेत एक- एक विरोधी से बदला लेने में कई बार असफलता मिलने का संघर्ष। फिर अपने गुरु को धता बताकर प्रधानमंत्री बनने के लिए जनता को एक से एक तोहफे देने के लिए असत्य के बहुविध प्रयोग करने का संघर्ष। मोदी जी के जीवन का एक- एक अध्याय इतना संघर्षपूर्ण है कि एक के लिए सिर्फ एक -एक आँसू बहाएँ, तो भी सारे आँसू बह जाएँगे और उस गंगा में बाढ़ आ जाएगी, जिसने उन्हें 2014 में चुनाव लड़ने के लिए वाराणसी बुलाया था। ऐसा भला कैसे हो सकता था कि माँ गंगा बुलाए और बेटा मोदी न जाए ! वह गया। 2019 में गंगा ने नहीं बुलाया बनारस तो भी गया। जरूरी थोड़े है कि माँ बुलाए, तभी बेटा जाए! माँ, माँ होती है, बीवी नहीं होती कि वह बुलाए नहीं, खुद भी आना चाहे तो पति उसे न आने दे!
इसलिए मेरा हृदय स्थल पुकार रहा है कि मोदी जी आपने अपने लिए बहुत संघर्ष किया है, अब आप मजे से आराम करो, पूरा देश आपके साथ है।
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