शख्सियत

दिलीप कुमारः यूं ही नहीं कहा जाता दुनिया का महान अभिनेता

आज 11 दिसंबर को दिलीप कुमार 98 साल के हो गए। लंबे अरसे से वे अभिनय की दुनिया से दूर हैं। उनके अभिनय की आखिरी फिल्म ‘किला’ साल 1998 में आई थी, लेकिन पिछले 22 सालों में दो पीढ़ियों के जवान हो जाने के बावजूद दिलीप कुमार का अभिनय भुलाया नहीं जा सका है।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

ऐसा अभिनय किसने किया होगा कि एक ही तरह के रोल करते-करते वह किरदारों में इतना डूब जाए कि मानसिक रूप से बीमार हो जाए और जब फिर पर्दे पर वापसी करे तो एक नयी छवि गढ़ ले। लेकिन दिलीप कुमार ने ये कर दिखाया। उन्हें यूं ही दुनिया का महान अभिनेता नहीं कहा जाता। भारतीय सिनेमा के इतिहास में सुपर स्टारों, शानादार अभिनेताओं और महानायकों के अभिनय में इतने अलग-अलग रूप, रंग और लहजे नहीं ढूंढे जा सकते, जितने दिलीप कुमार के अभिनय में शामिल हैं।

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आज 11 दिसंबर को दिलीप कुमार 98 साल के हो गए। लंबे अरसे से वे अभिनय की दुनिया से दूर हो चुके हैं। उनके अभिनय की आखिरी फिल्म ‘किला’ साल 1998 में आयी थी, लेकिन पिछले 22 सालों में दो पीढ़ियों के जवान हो जाने के बावजूद दिलीप कुमार का अभिनय भुलाया नहीं जा सका है।

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अंदाज़, दीदार, दाग, जोगन में दुखद भूमिकाओं की एक श्रृंखला कर वे ड्रेजडी किंग के नाम से प्रसिद्ध हो चुके थे। लेकिन ट्रेजिक किरदारों में डूब कर उन्हें पर्दे पर साकार करने वाले दिलीप कुमार को एहसास नहीं हुआ कि अभिनय के प्रति उनकी बेमिसाल लगन और जुनून ने उनके दिमाग पर गहरा असर डालना शुरू कर दिया है।

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और जब वे  देवदास में अभिनय कर रहे थे तब तक स्क्रीन पर उनके द्वारा निभाए जा रहे दुखद चरित्रों ने उनके दिमाग पर इतना गहरा असर डाल दिया था कि दिलीप कुमार डिप्रेशन में चले गए। उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर उन्हें क्या हो गया। उदासी और निराशा में डूब चुके दिलीप कुमार को उनके घरवालों और कुछ परिचितों ने राय दी कि वे डाक्टर से मश्वरा करें। तब तक डिप्रेशन को एक बीमारी के रूप में स्वीकर नहीं किया जाता था।

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दिलाप कुमार ने इंगलैंड जाकर विश्व विख्यात मनोविज्ञानी डीडी निकोल से बात की। उन्होंने दिलाप कुमार को बताया कि वे एक गंभीर व्यक्तित्व समस्या यानी पर्सनाल्टी डिसआर्डर का शिकार हैं। इसके बाद मुंबई में मनोचिकित्सक डॉ. रमनलाल पटेल के अधीन दिलीप कुमार का इलाज चला। डा. पटेल ने ही राय दी कि अब दिलीप कुमार को कॉमिक रोल निभाने चाहिए ताकि उनका डिप्रेशन स्वाभाविक रूप से दूर हो। फिर ट्रेजडी किंग ने इस चैलेंज को स्वीकार किया और दर्शकों को फिल्म ‘आज़ाद’ और ‘कोहिनूर’ जैसी लाजवाब फिल्में देखने को मिलीं।

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ट्रेजडी किंग ऐसी कॉमेडी भी कर सकता है, इसका एहसास शायद ही किसी को होगा। ‘गोपी’ और ‘सगीना’ में भी दिलीप कुमार का यही अंदाज दिखा। ‘राम और श्याम’ के साथ ही ‘बैराग’ इसी कड़ी की ऐसी फिल्में हैं, जिनमें दिलीप कुमार ने गंभीर किरदार के साथ-साथ कॉमेडी भी की। उम्र बढ़ने के साथ दिलीप कुमार ने फिर अभिनय का अंदाज बदला। वे ‘मशाल’, ‘विधाता’ और ‘शक्ति’ जैसी फिल्मों में एंग्री ओल्ड मैन के रूप में दिखाई दिए।

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लेकिन आज भी उनकी सर्वश्रेष्ठ अदाकारी ट्रेजडी के रोल के लिए ही मानी जाती है। ऐसा नहीं है कि दिलीप कुमार ने जितनी फिल्में कीं ,वे सब हिट रही हों। हां ये जरूर है कि उनका अभिनय कभी फ्लॉप नहीं हुआ। वे ट्रेजडी किंग, सर्वश्रेष्ठ अभिनेता ही नहीं अभिनय के स्कूल के रूप में भी याद किये जाते हैं। अभिनय से दूर हुए दिलीप कुमार को दो दशक से अधिक समय बीत चुका है। 98 साल की उम्र में उनसे अब और अधिक की उम्मीद रखना उनके साथ ज्यादती होगा, लेकिन वे अभी भी सिनेमा प्रेमियों के बीच हैं, यही एहसास ही बहुत सुखद है।

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