शख्सियत

जगदीप छोकरः जिन्होंने देश को दिया लोकतंत्र की रक्षा का सबक

ये जगदीप छोकर ही थे जिनकी सतत कोशिशों से देश का लोकतंत्र इलेक्टोरल बॉन्ड जैसी आपदाओं से मुक्ति पा सका। अभी बिहार में जिस तरह से एसआईआर के नाम पर मतदाता सूचियों में बड़े बदलाव की कोशिश हुई, छोकर उन पहले लोगों में थे जिन्होंने इसे अदालत में चुनौती दी।

जगदीप छोकरः जिन्होंने देश को दिया लोकतंत्र की रक्षा का सबक
जगदीप छोकरः जिन्होंने देश को दिया लोकतंत्र की रक्षा का सबक फोटोः सोशल मीडिया

हमारे लोकतंत्र पर जो खतरे मंडरा रहे हैं वे किसी से छुपे नहीं हैं। कहीं मतदाताओं को बड़ी संख्या में मतदाता सूची में जोड़ जाता है तो कहीं उनके नाम थोक में काट दिए जाते हैं। कहीं खतरा इलेक्टोरल बाॅन्ड के रूप में आता है तो कहीं साठ लाख एनआरआई मतदाताओं को इलेक्ट्राॅनिक वोटिंग का अधिकार देने की बात होने लगती है। साथ ही यह ऐसा दौर भी है जब चुनाव आयोग अपनी पारदर्शीता लगातार कम करता जा रहा है। लेकिन इन खतरों के मध्य हमें यह भी लगता रहा कि जब तक हमारे बीच जगदीप सिंह छोकर हैं तो लोकतंत्र को खत्म करने की कोशिशें इतनी आसानी से सिरे नहीं चढ़ेंगी।

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लंबे समय तक वे भारतीयों के लोकतांत्रिक अधिकारों को बचाने के एक आश्वासन की तरह खड़े रहे। वे इसके मसलों को लेकर अदालतों में गए, इन पर जनजागरण किया, लेख लिखे और इनसे जुड़ी हर बहस में शामिल हुए। ये जगदीप छोकर ही थे जिनकी सतत कोशिशों से देश का लोकतंत्र इलेक्टोरल बॉन्ड जैसी आपदाओं से मुक्ति पा सका। अभी बिहार में जिस तरह से चुनाव आयोग स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन के नाम पर मतदाता सूचियों में बड़े बदलाव करने में जुटा हुआ है, जगदीप छोकर उन पहले लोगों में थे जिन्होंने इसे अदालत में चुनौती दी और यह कोशिश आयोग पर कुछ हद तक लगाम लगाने में भी कामयाब रही।

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हमेशा गर्मजोशी से भरे रहने वाले छोकर के शुरुआती जीवन में हमें इस तरह का राजनीतिक रुझान देखने को नहीं मिलता। 25 नवंबर 1944 में जन्मे जगदीप छोकर ने 1967 में इंजीनियरिंग की डिग्री ली, लेकिन इंजीनियर बनने के बजाए उन्होंने मैनेजमेंट की पढ़ाई शुरू कर दी। न सिर्फ एमबीए किया बल्कि पीएचडी भी कर ली। अरसे तक इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट में प्रोफेसर रहे छोकर के खाते में मैनेजमेंट की बहुत सी किताबें और शोध पत्र हैं। दुनिया के जितने देशों में मैनेजमेंट पढ़ने के लिए वे गए हैं उनकी सूची ही किसी फ्रीक्वेंट फ्लायर के लिए ईर्ष्या का विषय हो सकती है।

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यहीं उनकी मुलाकात त्रिलोचन शास्त्री से हुई। दोनों में लोकतंत्र के लगातार गिरते स्तर की चिंता समान थी और दोनों ही इस सूरत को बदलना चाहते थे। दोनों के लगातार विमर्श ने उनका आगे का रास्ता भी तैयार कर दिया। दोनों ने मिलकर 1999 में एसोसिएशन फाॅर डेमोक्रेटिक रिफार्म नाम की संस्था की स्थापना की। आगे क्या करना है यह अब उन्हें अच्छी तरह पता था। यही वजह थी कि आईआईएम में रहते हुए ही छोकर ने कानून की पढ़ाई की और रिटायर होने से पहले 2005 में उन्होंने एलएलबी की डिग्री भी हासिल कर ली। कानून का उनका यह ज्ञान बाद में उनके ही नहीं देश के भी बहुत काम आया।

पिछले करीब ढाई दशक में लोकतंत्र को बचाने और संवारने की लड़ाई उन्होंने बिना थके लड़ी। यह छोकर की ही लड़ाई थी जिसकी वजह से यह नियम बना कि चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार अपनी संपत्ति और अपने आपराधिक रिकाॅर्ड का ब्योरा सार्वजनिक करेंगे और उसे आयोग की वेबसाइट पर डाला जाएगा। जिनकी वजह से चुनाव आयोग के किस फैसले का क्या असर होगा इसे समझने के लिए राजनीतिज्ञ, पत्रकार और यहां तक कि कई तरह के विशेषज्ञ उन्हीं को फोन करते थे।

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वे अपनी बात खुलकर और बिना किसी डर के रखते थे। इसीलिए जब वन नेशन वन इलेक्शन की बात हुई तो उन्होंने बार-बार और साफ-साफ कहा कि इससे देश के लोकतंत्र के लिए खतरा खड़ा हो जाएगा। उन्होंने यह भी कहा था कि जब इसे लागू करने की कोशिश होगी तो वे इसकी लड़ाई सुप्रीम कोर्ट तक लड़ेंगे।

हो सकता है कि कुछ समय बाद इसकी कोशिश शुरू भी हो जाए। पर अब देश को यह लड़ाई बिना जगदीप सिंह छोकर के ही लड़नी होगी। 12 सितंबर को उन्हें दिल का दौरा पड़ा और उन्होंने अंतिम सांस ली। लेकिन वह एक चीज तो देश को सिखा ही गए कि लोकतंत्र को बचाने के लिए किस तरह के जज्बे और किस तरह से जूझने की जरूरत होती है।

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