
बिहार में सत्तारूढ़ एनडीए में शामिल राष्ट्रीय लोक मोर्चा (आरएलएम) में जारी अंतर्कलह अब खुलकर सामने आ गया है। चर्चा है कि चार विधायकों में से एक को छोड़कर शेष सभी ने पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा से दूरी बना ली है और बहुत जल्दी वे उनका साथ छोड़ सकते हैं। दूरी बनाने वाले तीनों विधायकों की बीजेपी से नजदीकियों की चर्चा आम है। इस अंतर्कलह की शुरुआत विधानसभा चुनाव के बाद राज्य विधानमंडल का सदस्य न होने के बावजूद कुशवाहा के पुत्र दीपक प्रकाश को नीतीश मंत्रिमंडल में मंत्री बनाने के बाद हुई है।
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आरएलएम में असंतोष इस सप्ताह की शुरुआत में उस समय खुलकर सामने आया, जब पार्टी प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा द्वारा आयोजित ‘लिट्टी पार्टी’ में उनकी पत्नी और सासाराम से विधायक स्नेहलता को छोड़कर कोई भी विधायक शामिल नहीं हुआ। इसी दिन आरएलएम के विधायक माधव आनंद, आलोक कुमार सिंह और रामेश्वर महतो ने शहर के दौरे पर आए बीजेपी के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष नितिन नवीन से ‘शिष्टाचार मुलाकात’ की।
इस मुलाकात के बाद मीडिया के एक वर्ग में यह अटकलें तेज हो गई हैं कि कुशवाहा की पार्टी में विद्रोह हो सकता है। जब पत्रकारों ने हालिया घटनाक्रम को लेकर कुशवाहा से सवाल किए तो उन्होंने झुंझलाते हुए कहा, “लगता है आपके पास पूछने के लिए कोई ढंग का सवाल नहीं है।” आरएलएम रालोमो के विधानसभा में नेता और पार्टी के प्रधान राष्ट्रीय महासचिव माधव आनंद ने इस बारे में कहा, “फिलहाल हम पूरी तरह पार्टी में हैं। कुछ मुद्दे हैं, जिन्हें सुलझा लिया जाएगा।”
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हालांकि, कुशवाहा के एक करीबी सहयोगी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “हमारे नेता को यह समझना चाहिए कि उन्होंने अपने बेटे को मंत्रिमंडल में भेजकर बड़ी भूल की है, जो अभी राजनीति में नौसिखिया है। इससे पार्टी कार्यकर्ताओं में असंतोष फैल गया है और बीजेपी तथा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) जैसे सहयोगियों के बीच भी गलत संदेश गया है।”
उन्होंने कहा, “हर बार संकट से बच निकलने वाले कुशवाहा एक के बाद एक आत्मघाती फैसले लेने के बावजूद राजनीतिक रूप से जीवित रहे हैं। इस प्रक्रिया में उन्होंने अविश्वसनीय होने की छवि बना ली है। दुर्भाग्यपूर्ण है कि हकीकत स्वीकार करने के बजाय वह खुद को पीड़ित के रूप में पेश करने की कोशिश कर रहे हैं।”
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यह टिप्पणी आरएलएम प्रमुख के सोशल मीडिया पोस्ट और मीडिया बयानों की ओर इशारा करती है, जिनमें उन्होंने अपने बेटे को समर्थन देने के फैसले का बचाव करते हुए कहा था, “अतीत में मैंने जिन लोगों को सांसद और विधायक बनाने में मदद की, उन्हीं ने मुझे धोखा दिया। पार्टी संगठन को मजबूत करने के लिए मुझे जो जरूरी लगा, वह करना पड़ा।”
वहीं, कुशवाहा के एक अन्य सहयोगी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “कुशवाहा जी को लगता है कि वह अपने लोगों को जब तक चाहें, अपने साथ चला सकते हैं। वह पार्टी टूटने से रोकने के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं कर रहे हैं और अपना सारा समय और ऊर्जा इस बात में लगा रहे हैं कि उनका बेटा छह महीने में विधान परिषद का सदस्य बन जाए, अन्यथा उसे मंत्रिमंडल से इस्तीफा देना पड़ सकता है।”
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उन्होंने कहा, “कुशवाहा जी की एक और चिंता राज्यसभा में एक और कार्यकाल को लेकर है, क्योंकि उनका मौजूदा कार्यकाल कुछ महीनों में समाप्त हो रहा है। न तो वह खुद और न ही उनका बेटा बड़े सहयोगियों के समर्थन के बिना निर्वाचित हो सकते हैं। यदि यह साफ हो जाए कि उन्हें अपने ही विधायकों का भरोसा हासिल नहीं है, तो बीजेपी और जेडीयू उनका समर्थन क्यों करेंगी?”
गौरतलब है कि उपेंद्र कुशवाहा पिछले वर्ष लोकसभा चुनाव में काराकाट सीट से एनडीए के उम्मीदवार थे, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। इसके बाद वह बीजेपी के समर्थन से राज्यसभा सदस्य निर्वाचित हुए थे। बीजेपी उन्हें एक बड़े अन्य पिछड़ा वर्ग समूह कोइरी समुदाय में समर्थन बढ़ाने के उद्देश्य से आगे बढ़ाती रही है।
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