बिहार में इस साल के अंत यानी अक्टूबर-नवंबर में विधानसभा चुनाव संभावित है, लेकिन फरवरी से ही चुनावी माहौल बनने लगे हैं। राजनीतिक दल के नेता अपनी बढ़त बनाने के लिए सियासी यात्रा पर निकल गए हैं, तो कई राजनीतिक दल अपना कुनबा बढ़ाने को लेकर कई तरह के अभियान चला रहे हैं। तो कई छोटे राजनीतिक दल अपने हिस्से की सीटों की संख्या बढ़ाने को लेकर लगातार बैठकें कर रहे हैं। बिहार के लोग भी चुनावी जोड़तोड़ पर बातें करने लगे हैं।
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माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव में जबरदस्त सफलता से उत्साहित राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) जहां 2020 के विधानसभा चुनाव में अधिक सीटों को पाने के लिए जोर लगाए हुए हैं वहीं सीपीआई नेता कन्हैया की यात्रा में मिल रहे समर्थन से बेचैन राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के तेजस्वी यादव और लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) के अध्यक्ष चिराग पासवान भी मतदाताओं पर अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए सियासी यात्रा कर रहे हैं।
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बिहार के सूचना जनसंपर्क विभाग के मंत्री नीरज कुमार भी कहते हैं कि चुनावी वर्ष में एनडीए अधिक सीटों पर कामयाबी को लेकर अभियान शुरू कर दी है। उन्होंने बताया कि एनडीए इस चुनाव में विकास के मुद्दे पर चुनावी मैदान में उतर रही है, इस कारण विकास को लेकर किए गए कार्यों को जनता के बीच पहुंचाने में लगी है।
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आरजेडी हालांकि जेडीयू से इत्तेफाक नहीं रखता। आरजेडी के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी कहते हैं कि आज के दौर में किसी भी राजनीतिक दल के अपनी पैठ बनाए रखने के लिए 'माइक्रोलेवल' पर काम करना पड़ता है। ऐसे में चुनाव से काफी पहले तैयारी प्रारंभ करनी पड़ती है।
वे कहते हैं कि इस साल होने वाले बिहार चुनाव पर पूरे देश की नजर है और सभी दल यहां बढ़त बनाने में लगे हुए हैं। यही कारण है कि राजनीतिक दल अभी से ही चुनावी मोड में आ गए हैं। उन्होंने माना कि पहले और आज के चुनाव में अंतर आया है।
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इधर, राजनीतिक विश्लेषक और पटना के वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर इसे नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) से जोड़कर देखते हैं। उन्होंने कहा कि सीएए के कारण बिहार की ही नहीं देश की सियासत करवट ली है। सीएए के कारण दिल्ली चुनाव में मुस्लिम मतदाताओं का ध्रुवीकरण (पोलराइजेशन) देखा गया है। बिहार भी इससे अछूता नहीं है।
उन्होंने कहा कि जेडीयू के मुस्लिम विधायक सीएए के विरोध में स्वर उठा रहे हैं और नए पार्टी की तलाश में हैं। इन विधायकों के नए स्थान की तलाश के कारण बिहार में सियासी पारा बढ़ गया। किशोर कहते हैं कि विपक्षी दलों के महागठबंधन में शमिल दल भी अधिक सीटों पर कब्जा जमाने को लेकर बेचैन हैं, जिस कारण वे भी चुनावी मोड में आकर दबाव की राजनीति शुरू कर दी।
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आरजेडी के तेजस्वी यादव जहां 23 फरवरी से 'बेरोजगारी हटाओ' यात्रा पर निकलने वाले हैं, वहीं एलजेपी के अध्यक्ष चिराग पासवान ने 'बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट' यात्रा की शुक्रवार से शुरुआत कर दी है। सीपीआई नेता और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया अपनी 'जन गण मन' यात्रा के दौरान बिहार की सड़कों पर घूम रहे हैं।
इसके अलावा, जेडीयू के पूर्व उपाध्यक्ष और चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर 'बात बिहार की' अभियान के तहत लोगों को जोड़ने के लिए मैदान में उतरे हैं, तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू भी 'चलो नीतीश के साथ चलें' अभियान की शुरुआत 15 मार्च से करने वाली है।
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उधर, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और प्रवक्ता राजेश राठौड़ कहते हैं, “चुनावी वर्ष के कारण कोई भी राजनीतिक दल उस वर्ष अपनी राजनीतिक गतिविधियां तेज कर देता है। बिहार अहम राज्य रहा है। एनडीए राज्यों के चुनाव हारता जा रहा है, ऐसे में हमलोगों की नजर बिहार से भी राजग को हटाने की है।”
राठौड़ हालांकि यह भी कहते हैं कि पिछले विधानसभा चुनाव से इस चुनाव में परिस्थितियां बदली हैं, इस कारण पार्टियां अपने आकलन में जुटी है। पिछले विधानसभा चुनाव में जेडीयू महागठबंधन में थी इस बार एनडीए में है।
बहरहाल, सभी राजनतिक दल चुनावी मोड में मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने में अभी से ही जुट गए हैं, लेकिन अभी चुनाव में काफी देर है और इस दौरान कई समीकरण बदलने के आसार है। इस कारण अभी और इंतजार करना होगा।
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