राजनीति

लोकतंत्र के पन्ने: 1980 लोकसभा चुनाव, जनता ने इंदिरा गांधी को फिर सौंपी सत्ता की चाबी, जनता पार्टी की करारी शिकस्त

सिर्फ तीन साल के अंदर कांग्रेस एक बार फिर से सत्ता में थी। कांग्रेस के दो मुख्य प्रतिद्वंद्वी पार्टियों का सफाया हो गया था। इस चुनाव में सबसे ज्यादा मुस्लिम सांसद लोकसभा पहुंचे थे। लोकसभा की 49 सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव जीतने में कामयाब रहे थे।

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया 

1977 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार हुई थी। पहली बार कांग्रेस को शिकस्त देने वाली जनता पार्टी ज्यादा दिन तक अपना वजूद कायम न रख सकी। 1979 में आरएसएस और भारतीय जनसंघ ने जनता पार्टी का साथ छोड़ दिया। मोरारजी देसाई की सरकार गिर गई थी।

जनवरी 1980 में लोकसभा चुनाव कराए गए। कांग्रेस ने धमाकेदार जीत के साथ सत्ता में वापसी की। इंदिरा गांधी एक बार फिर से प्रधानमंत्री बनीं। सातवीं लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 353 सीटें जीतीं, जबकि जनता पार्टी को सिर्फ 31 सीटें मिलीं। जनता पार्टी सेक्यूलर 41 सीटें और सीपीआईएम 37 सीटें मिली।

इसी दौर में इंदिरा गांधी की पार्टी का नाम बदलकर कांग्रेस (आई) रखा गया। उस वक्त कांग्रेस का चुनावी नारा था 'काम करने वाली सरकार को चुनिए'। ये नारा इसलिए दिया गया क्योंकि जनता पार्टी की सरकार काम में कम और सत्ता संघर्ष में ज्यादा लिप्त थी।

सिर्फ तीन साल के अंदर कांग्रेस एक बार फिर से सत्ता में थी। कांग्रेस के दो मुख्य प्रतिद्वंद्वी पार्टियों का सफाया हो गया था। इस चुनाव में सबसे ज्यादा मुस्लिम सांसद लोकसभा पहुंचे थे। लोकसभा की 49 सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव जीतने में कामयाब रहे थे।

राष्ट्रीय पार्टी की मान्यता के लिए 54 सीटें भी जनता दल और लोक दल को नसीब नहीं हुईं। जनवरी 1980 में हुए आम चुनाव से पहले एक बड़ी घटना थी भारतीय जनता पार्टी की स्थापना। दरअसल 1977 में पहली बार कांग्रेस को शिकस्त देने वाली जनता पार्टी ज्यादा दिन तक अपना वजूद कायम न रख सकी। 1979 में आरएसएस और भारतीय जनसंघ ने जनता पार्टी से समर्थन खींच लिया। इसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया।

भारतीय जनसंघ से जुड़े नेताओं ने मिलकर एक नई पार्टी का गठन किया जिसका नाम रखा गया भारतीय जनता पार्टी। अटल बिहारी वाजपेयी बीजेपी के पहले अध्यक्ष बनें।

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