रांची जिले के अंतर्गत आने वाली मांडर विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी शिल्पी नेहा तिर्की की जीत के साथ ही झारखंड के सत्ताधारी गठबंधन ने एक और चुनावी अग्निपरीक्षा में खुद को खरा साबित किया है। यह लगाचार चौथा विधानसभा उपचुनाव है, जिसमें सत्ताधारी गठबंधन ने जीत दर्ज की है। झारखंड मुक्ति मोर्चा-कांग्रेस-राजद के गठबंधन ने 29 दिसंबर 2019 को राज्य में सरकार बनायी थी। इसके बाद से राज्य की चार विधानसभा सीटों पर अलग-अलग वजहों से उपचुनाव हो चुके हैं और हर बार राज्य की प्रमुख विपक्षी पार्टी भाजपा को सत्ताधारी गठबंधन के हाथों शिकस्त खानी पड़ी है।
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उपचुनावों के परिणाम यह बताते हैं कि मौजूदा सत्ताधारी गठबंधन ने जहां अपनी पकड़ बरकरार रखी है, वहीं राज्य में 2019 में सत्ता गंवाने वाली भाजपा के लिए वापसी की राह बहुत आसान नहीं है। हालांकि यह भी तथ्य है कि जिन चार सीटों पर गठबंधन की जीत हुई है, वह पहले भी उसी के कब्जे में थीं।
गठबंधन के नेता और राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन कहते हैं कि अब तक हुए चारों उपचुनावों में झारखंड और झारखंडियत की जीत हुई है। झूठ, अहंकार, धनबल और शोषण की राजनीति को जनता ने मुंहतोड़ जवाब दिया है।
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वर्ष 2019 के चुनाव में अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित मांडर विधानसभा क्षेत्र से जीत दर्ज करने वाले बंधु तिर्की को अदालत ने लगभग तीन महीने पहले आय से अधिक संपत्ति मामले में दोषी पाते हुए सजा सुनाई थी। सजायाफ्ता होने के चलते उनकी विधानसभा की सदस्यता खत्म कर दी गयी थी। इस खाली हुई सीट पर बीते 24 जून को उपचुनाव संपन्न हुआ, जिसमें उनकी पुत्री शिल्पी नेहा तिर्की ने बतौर कांग्रेस प्रत्याशी जीत दर्ज की। उन्होंने बीजेपी की प्रत्याशी और इस क्षेत्र से एक बार विधायक रह चुकीं गंगोत्री कुजूर को 23 हजार 517 वोटों से पराजित किया।
शिल्पी को सत्ताधारी गठबंधन के झामुमो और आरजेडी का समर्थन हासिल था। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने खुद मांडर जाकर उनके पक्ष में प्रचार किया था। दूसरी तरफ बीजेपी प्रत्याशी के लिए केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा, केंद्रीय राज्य मंत्री अन्नपूर्णा देवी, बीजेपी विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी, प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष दीपक प्रकाश सहित कई कद्दावर नेताओं ने चुनावी जनसभाएं की थीं।
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उपचुनावों में लगातार चौथी पराजय से बीजेपी के खेमे में निराशा है। प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश कहते हैं, "मांडर विधानसभा क्षेत्र का जनादेश हमें स्वीकार है। हम इस उपचुनाव में हारे जरूर हैं, लेकिन पिछले चुनाव की तुलना में हमारी पार्टी के प्रत्याशी को मिले मतों की संख्या में इजाफा हुआ है। यह इस बात का प्रमाण है कि हमारा जनाधार वहां बढ़ा है, लेकिन हम अपने प्रत्याशी के हार के कारणों की समीक्षा करेंगे।" सनद रहे कि पिछले चुनाव में बीजेपी प्रत्याशी को यहां 69364 वोट मिले थे, जबकि इस बार पार्टी की प्रत्याशी को 71545 वोट हासिल हुए हैं।
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मांडर के पहले राज्य में जिन तीन सीटों पर उपचुनाव हुए हैं, उनमें भी सत्ताधारी गठबंधन ने जीत का परचम लहराया। 2019 के बाद सबसे पहला उपचुनाव वर्ष 2020 में राज्य की दुमका और बेरमो विधानसभा सीटों पर हुआ था। दरअसल 2019 में एक साथ दो सीटों बरहेट और दुमका में जीत दर्ज करने की वजह से मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने दुमका सीट खाली की थी। उपचुनाव में दुमका सीट पर झामुमो ने उनके भाई प्रत्याशी बसंत सोरेन को प्रत्याशी बनाया था, जिन्होंने भाजपा के प्रत्याशी और पूर्व मंत्री लुईस मरांडी को दुमका विधानसभा उप चुनाव में 6842 वोटों से हराया था। इसी तरह बेरमो के कांग्रेस विधायक राजेंद्र सिंह के निधन के बाद वहां हुए उपचुनाव में उनके पुत्र अनूप सिंह को पार्टी ने प्रत्याशी बनाया था। उन्होंने बीजेपी के योगेश्वर महतो 'बाटुल' को 14,225 वोटों से हराया था। तीसरा उपचुनाव वर्ष 2021 में झारखंड सरकार में मंत्री हाजी हुसैन अंसारी के निधन के चलते मधुपुर सीट पर कराया गया। यहां झामुमो ने उनके पुत्र हफीजुल अंसारी को प्रत्याशी बनाया, जिन्होंने भाजपा प्रत्याशी गंगा नारायण सिंह को 5292 वोटों से पराजित किया था।
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दरअसल राज्य में उपचुनावों के मामले में झामुमो और कांग्रेस का रिकॉर्ड हमेशा बेहतर रहा है। झारखंड में 2015 से लेकर अब तक कुल 11 सीटों पर उपचुनाव हुए हैं, जिनमें से इन दोनों पार्टियों ने 10 सीटों पर जीत हासिल की है। सिर्फ एक बार वर्ष 2016 में गोड्डा सीट पर हुए उपचुनाव में बीजेपी के अमित कुमार मंडल ने जीत दर्ज करने में सफलता पाई थी।
आईएएनएस के इनपुट के साथ
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