राजनीति

अमित शाह के बेटे पर आरोपों के बाद अंदर-अंदर खुश हैं बहुत से भाजपाई और संघी

मोदी सरकार बनने के बाद बेटे जय शाह की संपति में हुई बढ़ोतरी का हाल ही में पर्दाफाश होने के बाद अमित शाह की असहजता को लेकर बीजेपी में चौतरफा खुशी है, हालांकि, खुले तौर पर, सब उनके बचाव में लगे हैं।

फोटो: Getty Images
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अपनी मृत्यु के कुछ महीने पहले ‘विदर्भ के शेर’ स्वर्गीय जंबुवंतराव धोते ने एक चर्चित मराठी अखबार को दिए साक्षात्कार में कहा था, “नरेन्द्र मोदी का पतन निश्चित है। लेकिन विपक्ष इसमें तेजी लाने के लिए कुछ नहीं कर सकता। उनके लोग ही उन्हें हराएंगे।”

अक्टूबर 2016 में ही धोते को लगने लगा था कि बीजेपी के भीतर नरेन्द्र मोदी के खिलाफ बगावत शुरू हो गई है। उनका यह आकलन आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत से उनकी नजदीकी के कारण था, जिनके बारे में उनका दावा था कि पशु चिकित्सक के रूप में सरकारी नौकरी के दौरान पदोन्नति और तैनाती में उन्होंने उनकी काफी मदद की है। धोते को बहुत पहले इंदिरा गांधी के करीबी के तौर पर जाना जाता था, लेकिन पृथक विदर्भ के उनके संघर्ष ने उन्हें आरएसएस और बीजेपी के नजदीक ला दिया था। फरवरी में हुई उनकी मृत्यु के कुछ महीने बाद और उनके उस दावे के लगभग एक साल बाद कि मोदी और आरएसएस के बीच एक-दूसरे को नीचा दिखाने के लिए टकराव चल रहा है, उनके शब्द सच्चे साबित हो रहे हैं। उनका कहना था कि इस लड़ाई में आखिरकार आरएसएस की जीत होगी।

2014 में मोदी सरकार बनने के बाद बेटे जय शाह की संपति में हुई बढ़ोतरी का हाल ही में पर्दाफाश होने के बाद पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की असहजता को लेकर बीजेपी में चौतरफा खुशी है, हालांकि, खुले तौर पर, सब उनके बचाव में लगे हैं। लेकिन यह साफ है कि बीजेपी के कुछ समूह इस मसले को आसानी से खत्म होने नहीं देंगे। पार्टी के पूर्व अध्यक्ष नितिन गडकरी के लोकसभा क्षेत्र और आरएसएस मुख्यालय नागपुर में अभी से ही कानाफूसी शुरू हो गई है। मोदी सहित पार्टी के बड़े नेताओं ने 2013 में गडकरी को उस समय हटा दिया था जब उनके पूर्ति कंपनी समूह में कथित संदेहास्पद लेन-देन का मामला सामने आया था। हालांकि उस लेन-देन के बचाव में गड़करी द्वारा कही गई बातों में कोई खास दम नहीं था, अब नागपुर में बीजेपी कार्यकर्ताओं ने यह शोर मचाना शुरू कर दिया है – क्या अमित शाह से भी उसी तरह पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा मांगा जाएगा जैसे गडकरी को मजबूर किया गया था इससे पहले की वे पार्टी अध्यक्ष के रूप में अपना दूसरा कार्यकाल शुरू करते? पार्टी के संविधान को खास तौर पर गडकरी के लिए संशोधित किया गया था जिसकी वजह से अमित शाह को साफ तौर पर फायदा हुआ और उन्हें दूसरा कार्यकाल मिला।

“अमित शाह को भी इस्तीफा देना चाहिए जैसे गडकरी ने दिया था जब तक वे जांच में सही साबित नहीं हो जाते,” यह बात गडकरी के गृहनगर में फैल रही है और ऐसा लगता है कि यह मांग अभी और बढ़ेगी।

गडकरी आरएसएस के पसंदीदा नेता हैं और यह अभियान पहले से तय लग रहा है। कुछ लोगों को भरोसा है कि बीजेपी के भीतर की ताकतों ने अमित शाह को निशाने पर लेकर मोदी को एक धक्का दिया है, क्योंकि अमित शाह प्रधानमंत्री के तौर पर मोदी की निरंतर मौजूदगी में काफी अहम किरदार निभाते हैं – मोदी काफी कमजोर हो जाएंगे अगर अमित शाह को इस्तीफा देने पर मजबूर किया जाता है। लेकिन अमित शाह अपने पद पर बने रहते हैं तो सिर्फ बीजेपी ही नहीं, बल्कि मोदी भी अपना नैतिक आधार खो देंगे। मोदी जानते हैं कि यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें उन्हें किनारे धकेल दिया गया है।

यह सिर्फ मोदी और बीजेपी में उनके आलोचकों के बीच के मतभेद नहीं हैं जो 2019 लोकसभा चुनावों के लगभग 18 महीने पहले सतह पर आ गए हैं। संघ परिवार के कई धरे एक-दूसरे के खिलाफ काम करते हुए नजर आ रहे हैं। अभिनव भारत संघ के पंकज फड़नीस ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है और जोर देकर कहा है कि वे मुबंई शाखा से ताल्लुक रखते हैं और उसकी कोई भागीदारी मालेगांव धमाकों से नहीं थी (पुणे शाखा की थी) और उन्हें आतंकवादी संगठनों से नहीं जोड़ा जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने इन दावों की जांच के लिए न्यायमित्र भी नियुक्त कर दिया है।

फड़नीस आश्वस्त हैं कि महात्मा गांधी की हत्या एक ब्रिटिश साजिश थी (फोर्स 136 द्वारा) और इसकी जांच की जानी चाहिए कि नाथुराम गोडसे को बेरेट्टा बंदूक किसने दी। उनका कहना है कि उस वक्त नई दिल्ली के बिड़ला हाउस में मिली चौथी गोली की जांच इस बात को स्थापित करेगी कि वहां कोई और हत्यारा भी मौजूद था जिसकी गोली ने असल में महात्मा गांधी को मारा।

फड़नीस ने इस पत्रकार को बताया, “मुझे इस बात का बहुत दुख है कि मेरी याचिका का राजनीतिक रंग दे दिया गया। मेरा एकमात्र सरोकार पुलिस जांच से है। वहां चौथी गोली थी जो महात्मा गांधी की सहयोगी मनुबेन की शॉल में मिली और उसे ध्यान में रखा जाना चाहिए।”

महात्मा गांधी के परपोते और ‘लेट्स किल गांधी’ नामक किताब के लेखक तुषार गांधी इस दावे को खोखला बताते हैं और कहते हैं कि शॉल में मिली गोली तीसरी थी, एक महात्मा गांधी के शरीर में लगी और दूसरी बिड़ला हाउस के फुलदान में मिली। “सिर्फ तीन गोलियां चली थीं और वहां मौजूद सभी ने उनकी आवाज सुनी थी। बापु के शरीर से दो गोली निकल कर गई थी। गोडसे ने ही गांधी को मारा था।

बॉम्बे हाई कोर्ट में चले गोपाल गोडसे से जुड़े मामले में सरकारी वकील जी एन वैद्य की सहयोगी उषा भौमिक के बेटे और बॉम्बे हाई कोर्ट में वरिष्ठ वकील अमित भौमिक का कहना है कि इस मामले से जुड़े उनकी मां के दस्तावेजों को पढ़ने से पता चलता है कि महात्मा गांधी की हत्या की साजिश अंग्रेजों ने नहीं, बल्कि गोडसे और उसके साथियों ने मिलकर कल्याण रेलवे स्टेशन पर बनाई थी। उनमें से एक मदनलाल पहवा था जिसे महात्मा गांधी की हत्या के कुछ दिनों पहले उनके बिल्कुल पास गोली चलाने के लिए दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया था।

“15 जनवरी की तारीख तय की गई थी लेकिन चीजें गलत दिशा में चली गईं। जब पहवा को गिरफ्तार किया गया तो बॉम्बे में किताब दुकान चलाने वाले जे सी जैन को लगा कि यह गंभीर मामला है। पहवा उनके दुकान में ही काम करता था और उन्होंने पहवा को यह कहते सुना था कि वह और उसके साथी किसी बड़े नेता को मारने की योजना बना रहे हैं। उन्होंने बॉम्बे (राज्य) के तत्कालीन मुख्यमंत्री बी जी खेर और उप-मुख्यमंत्री मोरारजी देसाई को इस साजिश की सूचना दी लेकिन उन दोनों ने जे सी जैन की बातों को कोई महत्व नहीं दिया। वे दोनों उस वक्त भयभीत हो गए जब कुछ दिनों बाद गांधीजी की हत्या कर दी गई और उन्हें लगा कि वे नेहरू और पटेल को इसके बारे में आगाह कर महात्मा गांधी की जान बचा सकते थे।” इसलिए अगर कोई बात है भी तो सिर्फ यह कि सब चुप रहे और किसी को यह महसूस नहीं हुआ कि क्या होने वाला है।

लेकिन अब हिंदू महासभा (उत्तर भारतीय शाखा जो नाथुराम गोडसे के नाम पर एक मंदिर बनाने वाली है) इस बात से खफा है कि अभिनव भारत और आरएसएस-बीजेपी महात्मा गांधी की हत्या का श्रेय उनसे छीन रही है। “गोडसे ने गांधी को मारा और इसके बारे में कोई शक नहीं होना चाहिए। राहुल गांधी ने सही कहा कि आरएसएस की विचारधारा ने गांधी को मारा था,” हिन्दु महासभा का खुले तौर पर यह कहना है। जब फड़नीस से इस बारे में पूछा गया तो शांत भाव से उन्होंने कहा कि उनका हिंदू महासभा से कुछ लेना-देना नहीं है और उन्हें इस बारे में कुछ बोलना भी नहीं है। मेरा गोडसे से नहीं, बल्कि साजिश से सरोकार है। अगर मैं गलत साबित हो जाता हूं तो मैं मामला वापस ले लूंगा।

तुषार गांधी, राहुल गांधी और हिंदू महासभा इस बात को लेकर एक राय हैं कि गांधी को किसने मारा। अब संघ परिवार को यह फैसला लेना है कि क्या गांधी के हत्यारे को लेकर वे एक-दूसरे के साथ टकराव की स्थिति में हैं।

वे सच में एक-दूसरे के साथ लड़ रहे हैं – एक-दूसरे को लेकर।

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