नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार की डबल इंजन वाली सरकार बिहार में दलित अत्याचार के मुद्दे पर घिर गई। मोदी-नीतीश को ये समझ नहीं आ रहा कि इससे बाहर कैसे निकले, चाहे सीजेआई पर जूता हो या हरियाणा में एक आईपीएस अफसर का सुसाइड कर लेना, या फिर रायबरेली में एक दलित हरिओम वाल्मीकि को बाबा के गुंडों द्वारा पीट-पीट कर मार डाला जाना, सवाल ये है कि क्या बिहार के दलितों को यह सब दिख रहा है। क्या उन्हें समझ आ रहा है कि अमृतकाल में दलितों की हालत क्या है? और क्या हिंदुत्ववादी सत्ता में उन्हें न्याय मिल रहा है। दरअसल दलित अत्याचार के मुद्दे पर कांग्रेस बेहद आक्रामक है। और ये पहली बार है जब बिहार के चुनाव में कांग्रेस नीतीश कुमार पर भी खुलकर हमलावर है। उनके बीस साल के शासन को विनाशकाल कह रही है। पार्टी की चुनावी सफलता से परे सवाल ये है कि क्या कांग्रेस बिहार के दलितों को यह समझा पाएगी कि वह जमीनी हकीकत को पहचाने और हिंदुत्व के जाल से परे अपनी स्थिति को समझें, क्योंकि जो खेल मुसलमानों के साथ शुरू हुआ था। वह दलितों के साथ वीभत्स तौर पर सामने आया है। न चीफ जस्टिस सेफ हैं, ना हरिओम वाल्मिकी। इसी मुद्दे पर आज नवजीवन की चर्चा -
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