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पश्चिम बंगाल : दुर्गा पूजा के लिए ‘नया दानव’ है जीएसटी

जीएसटी व्यवस्था लागू होने के चलते आम कारोबार बुरी तरह प्रभावित हुआ है, जिससे दुर्गा उत्सव में विज्ञापन देने वाली कंपनियों ने इस साल हाथ खींच लिया है। नतीजतन आयोजकों के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया है

फोटो : Getty Images
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दुर्गा पूजा पश्चिम बंगाल का सबसे बड़ा त्योहार है। पूरे राज्य में इस पर्व में को मनाने के लिए बड़े पैमाने पर तैयारियां होती हैं, भव्य पंडाल बनाए जाते हैं। इस सबमें काफी पैसा भी खर्च होता है। दुर्गा उत्सव समितियां अपने खर्च को पूजा पंडालों में कंपनियों के विज्ञापन लगाकर पूरा करती रही हैं। लेकिन इस बार सभी समितियों और आयोजकों के भयंकर आर्थिक संकट से दो चार होना पड़ रहा है। वजह है, वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी। जीएसटी लागू होने के बाद कंपनियों ने विज्ञापन देने से या तो इनकार कर दिया है या काफी कम कर दिया है। जीएसटी से नाराज दुर्गा पूजा के आयोजकों और मूर्ति निमार्ताओं का कहना है कि इस व्यवस्था ने उन्हें नुकसान पहुंचाया है, क्योंकि इससे उनका विज्ञापन राजस्व और मुनाफा कम हो गया है।

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पैसे की कमी के चलते कोलकाता में सामुदायिक पूजा समितियों ने अपना बजट घटाना शुरू कर दिया है। इस साल देश के पूर्वी हिस्से का सबसे बड़ा वार्षिक त्योहार पांच दिवसीय दुर्गा पूजा उत्सव 26 से 30 सितंबर तक आयोजित किया जा रहा है। पूजा आयोजकों ने जीएसटी को 'नया दानव' कहा है, क्योंकि इससे उन्हें बड़ी आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। बड़े पैमाने पर होने वाला पूजा आयोजन प्रायोजकों, विज्ञापनदाताओं और दान पर निर्भर होता है, क्योंकि सदस्यता शुल्क कुल बजट का 10 प्रतिशत भी नहीं होता है।

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कोलकाता नगर निगम के पार्षद असीम कुमार 14 पूजा समितियों में शामिल रहते हैं। उन्होंने आईएएनएस को बताया, "दुर्भाग्यपूर्ण है कि विज्ञापनों से मिलने वाला राजस्व बंद हो गया है और पूजा समितियों ने बजट में 15 से 20 फीसदी की कटौती की है।" वहीं फोरम फॉर दुर्गोत्सव के अध्यक्ष पार्थ घोष बताते हैं कि वास्तव में आयोजकों के लिए नई टैक्स प्रणाली 'अस्पष्ट' है। उनका कहना है कि जीएसटी लागू होने के बाद कंज्यूमर गुड्स सेक्टर बुरी तरह प्रभावित हुआ है और इस सेक्टर से मिलने वाला विज्ञापन लगभग न के बराबर हो गया है। घोष ने कहा:

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उपभोक्ता वस्तुओं का क्षेत्र जो वर्षों से आयोजकों के लिए राजस्व का प्रमुख स्रोत रहा है, इस वर्ष आगे नहीं रहा है। उन्होंने अपनी अक्षमता और झिझक जताईी है। नतीजतन, राजस्व में पिछले वर्ष की तुलना में 20 प्रतिशत की गिरावट दर्ज हुई है, लेकिन कई मामलों में यह गिरावट 30 प्रतिशत से अधिक है।

इसके अलावा तेजी से बढ़ती उपभोक्ता वस्तुओं यानी एफएमसीजी की कंपनियों में से कई ने जीएसटी के कारण राजस्व में गिरावट दर्ज की है। घोष ने कहा कि कारोबार संक्रमण के दौर से गुजर रहा है और जब तक यह नई कर व्यवस्था में ठीक तरह से घुलमिल नहीं जाता, तब तक ये निराशाजनक हालात अक्टूबर माह में पड़ने वाले लक्ष्मी पूजा और काली पूजा जैसे त्योहारों को भी प्रभावित करेंगे। घोष ने जीएसटी लागू होने के समय पर नाराजगी जताते हुए कहा, "अगर जीएसटी 1 जुलाई से कुछ महीने पहले लागू किया गया होता, तो हमें बेहतर प्रतिक्रिया मिलती, क्योंकि तब तक व्यापारिक प्रतिष्ठानों के पास खुद को इसके अनुसार ढालने करने का समय मिल जाता।" आयोजक अब उम्मीद कर रहे हैं कि अगले साल उन्हें इस तरह के मुश्किल हालात का सामना नहीं करना पड़ेगा।

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आयोजकों की तरह मूर्ति निर्माता भी जीएसटी लागू किए जाने के समय की तरफ उंगली उठा रहे हैं, क्योंकि उन्हें ऐसे में लागत से कम में मूर्तियां बेचने का दबाव झेलना पड़ रहा है। एक मूर्तिकार प्रद्युत पाल ने बताया, "रथ यात्रा समारोहों के लिए ज्यादातर मूर्तियों को पहले ही बुक कर लिया गया था, जो जीएसटी लागू होने से पहले की बात है। लेकिन जीएसटी लागू होने के बाद हमने पाया कि कई वस्तुओं की कीमतें बढ़ गई हैं, जिससे लागत में लगभग 20 प्रतिशत अधिक खर्च आ रहा था। हम खरीदार से अतिरिक्त कीमत नहीं ले सकते थे, क्योंकि कीमतें पहले से तय हो चुकी थीं।"

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पाल ने इस साल पांच मूर्तियां विदेश भेजी हैं। बाहर जाने वाली मूर्तियों की कीमत 2.5 लाख से सात लाख रुपये के बीच होती है। पाल ने कहा, "अगर आप जीएसटी के बाद अपने खर्च के मुताबिक कीमतों को बढ़ा देते, तो हमें इतने कम मुनाफे की हालत का सामना नहीं करना पड़ता। जीएसटी के कारण ट्रांसपोर्ट लागत में उछाल आयाी, जिसने हमें मिलने वाला पूरा मुनाफा निगल लिया।"

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जीएसटी ने लागत को कैसे प्रभावित किया, इस पर बात करते हुए पाल ने कहा कि मूर्तियों के कपड़े तैयार करने और सजावट में इस्तेमाल होने वाली जरूरी चीजें जड़ी और कपड़ों पर 12 फीसदी और 5 फीसदी जीएसटी लग रहा है, जबकि पहले यह कर काफी कम था। पाल के अनुसार, "जीएसटी के बाद मूर्तिकारों को मूर्तियों के हाथों में लगने वाले हथियार बनाने में इस्तेमाल टीन की लागत पर 3.5 प्रतिशत अधिक खर्च करना पड़ रहा है।"

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