निशिकांत दुबे और धनखड़ के खिलाफ अवमानना का मामला दायर करने के लिए 'हमारी इजाजत की जरूरत नहीं': सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि बीजेपी सांसद के खिलाफ अवमानना याचिका के लिए 'हमारी इजाजत की जरूरत नहीं है।' कोर्ट ने यह टिप्पणी एक वकील की याचिका पर की जिसने सुप्रीम कोर्ट और चीफ जस्टिस के बारे में दुबे द्वारा अपमानजनक टिप्पणी करने का मुद्दा उठाया था।

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नवजीवन डेस्क

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे द्वारा सर्वोच्च न्यायालय और चीफ जस्टिस के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणी किए जाने के खिलाफ अवमानना की याचिका दायर करने के लिए सुप्रीम कोर्ट की इजाजत की जरूरत नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस जॉर्ज मसीह की बेंच ने कहा कि याचिकाकर्ता को इसके लिए अटॉर्नी जनरल से इजाजत लेनी होगी।

सुप्रीम कोर्ट के सामने याचिकाकर्ता के वकील ने कहा हाल की उन मीडिया रिपोर्ट का हवाला दिया जिसमें बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने सुप्रीम कोर्ट और चीफ जस्टिस के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणियां की थीं।  इस पर जस्टिस बी आर गवई ने कहा कि, “आप फाइल कीजिए, इसके लिए हमारी इजाजत की जरूरत नहीं है...।” 

बता दें कि बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने मीडिया से बातचीत मे कहा था कि “सुप्रीम कोर्ट ने देश को अराजकता में झोंक दिया है और देश में जारी गृह युद्धों के लिए चीफ जस्टिस संजीव खन्ना जिम्मेदार हैं....।“ इस बयान के खिलाफ कई वकीलों ने अटॉर्नी जनलर को पत्र लिखकर दुबे के खिलाफ अवमानना का मामला दर्ज कराए जाने की मांग उठाई है। जिन वकीलों ने अटॉर्नी जनरल को पत्र लिखा है उनमें वकील अनस तनवीर, शिव कुमार त्रिपाठी और अन्य शामिल हैं। पत्र में कहा गया है कि निशिकांत दुबे के शब्द बेहद आपत्तिजनक हैं जिनसे न्यायपालिका और सुप्रीम कोर्ट की गरिमा को ठेस पहुंची है।

एक अन्य वकील सुभाष ठीकदन ने उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के खिलाफ भी अवमानना का मामला दर्ज करने की मांग की है। जगदीप धनखड़ ने भी हाल ही में एक कार्यक्रम में सुप्रीम कोर्ट की आलोचना की थी। वकील ने कहा कि उपराष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट के अधिकारों पर सीधा हमला किया है।


गौरतलब है कि न्यायालय की अवमानना कानून 1971 के प्रावधानों के मुताबिक किसी व्यक्ति द्वारा अदालत की अवमानना का मामला सुप्रीम कोर्ट मे अटॉर्नी जनरल की सहमति के बाद ही दायक किया जा सकता है।

पिछले सप्ताह उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने न्यायपालिका पर सवाल उठाते हुए कहा कि अगर अदालतें यह समयसीमा तय करने लगेंगी कि किसी बिल पर राष्ट्रपति कितने समय में अपनी सहमति या असहमति दें, तो यह सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुपर संसद की तरह काम करने वाली बात होगी। उन्होंने कहा था कि, “सुप्रीम कोर्ट लोकतांत्रिक शक्तियों (संसद) पर न्यूक्लियर मिसाइल नहीं दाग सकता।”

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