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मोदी राज में गंगा को बचाने के लिए स्वामी सानंद की राह पर एक और संत

गंगा से केवल आस्था ही नहीं करोड़ों लोगों के अस्तित्व का भी सवाल जुड़ा है। लेकिन मोदी सरकार ने गंगा के हितों की लगातार अनदेखी की है। हद तो ये कि जब इस सरकार की तंद्रा तोड़ने का बीड़ा साधु-संतों ने उठाया तो मोदी सरकार ने उनकी ओर देखने की भी जहमत नहीं उठाई।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

गंगा सेहतमंद रहे, अविरल रहे यह करोड़ों लोगों के अस्तित्व का सवाल है। लेकिन फौरी फायदे के लिए मोदी सरकार ने गंगा के हितों की अनदेखी की है। वह बातें तो बड़ी-बड़ी करती है। गंगा के प्रति श्रद्धा जताने के लिए कुंभ के आयोजन को भव्य बनाने का दावा करती है, लेकिन वैसा कुछ नहीं करती जिससे गंगा की सांसें चलती रहें। और तो और, जब सरकारी तंद्रा तोड़ने का बीड़ा साधु-संतों ने उठाया तो उनकी ओर देखने की जहमत तक नहीं उठाई।

उस शख्स का नाम है आत्मबोधानंद। कुंभ में जमे हुए हैं। उन्हें आमरण अनशन करते 106 दिन हो चुके हैं। वह चाहते हैं कि गंगा को बचाने के लिए कानून बने। लेकिन सरकार पर अब तक कोई असर नहीं है। ठीक वैसे ही जैसे स्वामी सानंद के साथ हुआ था। 111 दिन के अनशन के बाद करीब चार माह पहले ही उनकी सांसें थमी थीं। आत्मबोधानंद कहते हैं कि साफ गंगा-अविरल गंगा आस्था के साथ-साथ हमारे अस्तित्व से जुड़ा सवाल है। हम तो अपने आश्रम ‘मातृ-सदन’ और स्वामी सानंद के अधूरे काम को आगे बढ़ा रहे हैं और मरते दम तक करते रहेंगे।

आईआईटी कानपुर के पूर्व प्रोफेसर जीडी अग्रवाल यानी स्वामी सानंद गंगा रक्षा के लिए कानून बनाने की मांग को लेकर 22 जून 2018 को हरिद्वार में अनशन पर बैठे थे। अनशन पर बैठने से पहले और उसके बाद भी उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस बात की जानकारी देते हुए कई पत्र लिखे, लेकिन कोई जवाब नहीं आया। आखिर, 112 दिन के अनशन के बाद पिछले साल 11 अक्टूबर को उनकी मौत हो गई। स्वामी सानंद 'मातृ सदन' आश्रम से जुड़े थे। हरिद्वार की यह संस्था गंगा को बचाने के लिए लंबे समय से आंदोलन कर रही है और इन दिनों आंदोलन की कमान ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद के हाथ में है।

स्वामी सानंद की मौत के दस दिन बाद ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर चेताया था कि जिन मांगों के लिए लड़ते हुए स्वामी सानंद शहीद हो गए, उन मांगों को पूरा नहीं किया गया है। इसलिए अब वह अनशन करने जा रहे हैं। लेकिन उस पत्र का जवाब भी प्रधानमंत्री ने नहीं दिया। आत्मबोधानंद को सिर्फ इतना बताया गया कि उनका पत्र उत्तराखंड सरकार को भेज दिया गया है। लेकिन अब तक उत्तराखंड सरकार से भी उनके पास कोई नहीं आया है। पत्र लिखने के बाद 24 अक्टूबर को आत्मबोधानंद ने अनशन शुरू कर दिया था। वह भी स्वामी सानंद की तरह भोजन का पूर्णतः त्याग कर केवल नींबू-पानी लेते हैं।

इसी बीच, 23 जनवरी को आत्मबोधानंद अपने साथियों के साथ आकर इलाहबाद में चल रहे कुंभ में अनशन पर बैठ गए। इसका कारण पूछने पर उन्होंने बताया कि गंगा की चिंता की बात कुंभ में हो तो इससे अच्छा क्या हो सकता है। यहां मां गंगा के करोड़ों भक्त आ रहे हैं। उन्हें भी तो पता चले कि सरकार गंगा के स्वास्थ्य के लिए कितनी गंभीर है।

वह कहते हैं, “पहली बात यह है कि स्वामी सानंद जी का देहांत नहीं हुआ था, बल्कि हत्या हुई थी और दिसंबर में मुझे भी मारने की पूरी तैयारी थी, लेकिन मेरे साथियों के कारण उन्हें सफलता नहीं मिली। हम सिर्फ इतना चाहते हैं कि गंगा और उसकी धाराओं- अलकनंदा, भागीरथी, मंदाकिनी, नंदाकिनी, पिंडर और धौली गंगा पर सभी प्रस्तावित और निर्माणाधीन बांधों का काम रोक दिया जाए। गंगा के आसपास खनन पर प्रतिबंधत हो, गंगा के आसपास जंगलों के काटने पर भी रोक लगाई जाए। इसके साथ, स्वामी सानंद जी ने गंगा एक्ट का जो ड्राफ्ट तैयार किया था, वह अविलंब लागू हो। हम गंगा एक्ट लागू करवाने के लिए कई सालों से लड़ाई लड़ रहे हैं, लेकिन अब तक सरकार का कोई नुमाइंदा हमारे पास नहीं आया है।”

मातृ-सदन ने गंगा को बचाने का संकल्प ले रखा है। संस्था के कई संत इसके लिए अन्न त्याग चुके हैं। याद कीजिए 2014 के लोकसभा चुनाव को। उस समय नरेंद्र मोदी बीजेपी के स्वघोषित गंगापुत्र थे। चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने गंगा को साफ करने के बड़े-बड़े वादे किए थे। इतना ही नहीं, जल संसाधन मंत्री उमा भारती ने तो सार्वजनिक रूप से यह घोषणा की थी कि अगर गंगा साफ नहीं हुई तो वह जान दे देंगी।

बहरहाल, आज गंगा की हालत दयनीय है। मूल कारण अवैध रेत खनन, बड़े-बड़े बांध बनाने और गंदे पानी की निकासी का अवैज्ञानिक तरीका है। गंगा को मुद्दा बनाकर सत्ता पाने वाली बीजेपी में गंगा को बचाने के लिए कोई संवेदना नहीं दिखाई दे रही है। अगर होती, तो गंगा के लिए आंदोलन कर रहे मातृ-सदन के संतों के साथ ऐसा बर्ताव नहीं करती।

मातृ-सदन के ब्रह्मचारी दयानंद कहते हैं, “हम गंगा के हितों से कोई समझौता नहीं कर सकते। इसी कारण हमारे संतों को जान भी देनी पड़ रही है। बड़े ठेकेदारों के दबाव में मातृ-सदन के संतों पर कई बार जानलेवा हमले हुए हैं। आप ही बताएं, ठेकेदारों और नेताओं के बीच इस गठजोड़ के कारण हमारी उचित मांगों की ओर भी सरकार का ध्यान नहीं देना क्या सही है? आखिर हम करें क्या? सरकार चाहे तो सब संभव है। उसे स्वायत्त गंगा परिषद बनानी चाहिए, जो सिर्फ गंगा जी के हित के काम करे।”

दयानंद कुंभ के भव्य आयोजन के मामले पर कहते हैं, “ऐसे आयोजनों से क्या गंगा बच जाएगी? सरकार को वैसे कदम उठाने चाहिए जिनका वास्तव में असर हो। बीते 4 दिसंबर को हमारे सदन के संत गोपालदास को एम्स दिल्ली से गायब कर दिया गया। वे सोचते हैं कि मरने के डर से अंततः हम पीछे हट जाएंगे। ऐसा नहीं होगा। हम अपने कर्तव्य का पालन कर रहे हैं और आखिरी सांस तक पीछे नहीं हटेगें।”

सरकार की ऐसी बेरुखी गंगा के लिए जान हथेली पर लेने वाले साधुओं की मौत का कारण बनती रही है। इन संतों की मांगों पर ध्यान दिए बगैर गंगा में डुबकी लगाने वाली सरकार को यह समझना चाहिए कि गंगा और मातृ-सदन के संतों की अनदेखी प्रकृति और संस्कृति दोनों के लिए खतरनाक है।

(नवजीवन के लिए मनदीप सिंह की रिपोर्ट)

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