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'अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी राजधानी थी', पवन खेड़ा ने ज्योतिरादित्य पर साधा निशाना

पवन खेड़ा ने आगे कहा, “आज फिर सुभद्रा कुमारी चौहान की यह पंक्तियां आपको याद दिला दूँ: 'अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी राजधानी थी। बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी। खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।'”

पवन खेड़ा ने ज्योतिरादित्य पर साधा निशाना
पवन खेड़ा ने ज्योतिरादित्य पर साधा निशाना ians

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पवन खेड़ा ने मंगलवार को अपने सोशल मीडिया एक्स हैंडल पर पोस्ट कर बीजेपी नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया पर निशाना साधा। कांग्रेस नेता ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के संदर्भ में कहा कि इतिहास आपकी ओर अंगुली उठाकर रोता है।

उन्होंने कहा, “अगर संविधान का 26वां संशोधन न हुआ होता तो आज भी भारत सरकार की तरफ से ग्वालियर राजघराने को करोड़ों रुपए टैक्स फ्री दिए जा रहे होते (सन 1950 में 25,00,000) भारत में विलय की यह कीमत लेते रहे आप सन 71 तक। राजघरानों की गद्दारी और उनका अंग्रेज़ों से प्रेम आप शायद भूल गए, हम सब नहीं भूल पाते।”

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उन्होंने कहा, “इतिहास गवाह है कि एक राजघराने की पिस्तौल का इस्तेमाल राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या में हुआ था। अनेक राजघरानों के कुकर्मों की सूची को चंद राजाओं की नेकी से नहीं ढका जा सकता। नेहरू और पटेल द्वारा राजे-रजवाड़ों पर दबाव बना कर लोकतंत्र की लगाम आम नागरिकों को सौंपे जाने की टीस अब तक कुछ राजपरिवारों में बाकी है।”

उन्होंने आगे कहा, “पंडित जवाहरलाल नेहरू ने संविधान सभा में 22 जनवरी 1947 को दिए अपने भाषण में कहा था किकिसी भी व्यक्ति, चाहे उसका दर्जा कितना भी बड़ा क्यों न हो, यह कहना कि ईश्वरदत्त विशेषाधिकार से मैं मनुष्य पर शासन करने आया हूं, नितान्त जघन्य है। यह परिकल्पना असह्य है और उसे यह सभा कभी भी मंज़ूर नहीं करेगी। अगर सभा के सामने यह बात पेश की गई तो यह भी इसका तीव्र विरोध करेगी।"

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कांग्रेस नेता ने कहा, “पंडित नेहरू आगे कहते हैं: 'हमने राजाओं के दैवी अधिकार के सम्बन्ध में बहुत कुछ सुना है। हमने इतिहासों में इसके सम्बन्ध में पढ़ा था और यह समझा था कि अब दैवी अधिकार की कल्पना समाप्त हो गई। वह आज मुद्दत पहले दफना दी गई। अगर आज हिंदुस्तान में या और भी कहीं कोई व्यक्ति इस दैवी अधिकार की चर्चा करता है तो उसकी यह चर्चा भारत की वर्तमान अवस्था से बिल्कुल असंगत है। इसलिये मैं तो ऐसे व्यक्तियों को गंभीरतापूर्वक यह सुझाव दूंगा कि यदि आप सम्मान पाना चाहते हैं, दोस्ताना सलूक चाहते हैं, तो उस बात को कहना तो दूर रहा, आप उसकी ओर इशारा भी न कीजिये। इस प्रश्न पर कोई समझौता न होगा।'”

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उन्होंने आगे कहा, “आज फिर सुभद्रा कुमारी चौहान की यह पंक्तियां आपको याद दिला दूँ: 'अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी रजधानी थी। बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी। ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।'”

आईएएनएस के इनपुट के साथ

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