आम तौर पर नवरात्रि में जहां मां दुर्गा (शक्ति) की पूजा बड़े-बड़े पंडाल में मूर्ति स्थापित कर होती है। वहीं, वैशाली जिला में एक ऐसा स्थान भी है, जहां शक्ति के रूप में वृक्ष की पूजा बड़े ही धूमधाम से होती है। यहां नवरात्रि के मौके पर हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। नवरात्रि के अंतिम तीन दिन मेला भी लगता है, जिसमें आसपास के लोग पहुंचते है।
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हाजीपुर-मुजफ्फरपुर रेलखंड में भगवानपुर रतनपुरा गांव में यह मंदिर स्थित है। इस मंदिर में किसी भगवान की प्रतिमा नहीं है, बल्कि एक वृक्ष की पूजा होती है। स्थानीय लोगों का दावा है कि पहले इस अनोखे वृक्ष की टहनी या पत्ती तोड़ने से रक्त की तरह लाल रंग निकलता था। कहा तो यहां तक जाता है कि वनस्पति वैज्ञानिकों द्वारा भी आज तक यह पता नहीं चल पाया है कि यह वृक्ष किस प्रजाति का है।
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रतनपुरा पंचायत के मुखिया गौरीशंकर पांडेय भी इस वृक्ष की मान्यता के संबंध में कहते हैं कि यहां नवरात्रि के समय तीन दिनों तक मेला भी लगता है, जिसमें हजारों की संख्या में भक्तों की भीड़ उमड़ती है। यहां लोग अपनी मन्नत मांगते हैं और पूरा होता है। इस कारण यह स्थान आसपास के इलाकों में आस्था के केंद्र के रूप में स्थापित हो गया।
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दूर-दूर से देवी के भक्त अपनी-अपनी मन्नत एवं मनोकामना के लिए कागज की मौरी, मड़ुआ का पिंड तथा मिठाई चढ़ाते हैं। यहां पर कुश्ती प्रतियोगिता भी होती है, जिसमें दूर-दूर से पहलवान आकर दंगल में हिस्सा लेते हैं। इस पूरे क्षेत्र में यहां की पूजा अर्चना के बाद ही मां दुर्गा का पट खुलता है।
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इलाके का कोई भी व्यक्ति शादी ब्याह या कोई अन्य शुभ काम की शुरुआत करने से पहले यहां की पूजा करना नहीं भूलता। जनश्रुतियों की मानें तो सैकड़ो वर्ष पहले एक महिला पशुचारा लाने इस स्थान पर पहुंची थी, उसी समय असमाजिक तत्वों में उसकी अस्मत लूटने का प्रयास किया था।
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इस दौरान महिला धरती माता का आह्वान कर धरती में समा गई और वहीं शक्ति के रूप में वृक्ष बन प्रकट हुई है। इसके बाद स्थानीय लोगों को स्वप्न में पूजा करने का आदेश दिया गया। कहा जाता है कि तभी से इस वृक्ष की शक्ति के रूप में पूजा हो रही है।
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