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लिंचिग के आंकड़े तो हैं, फिर क्यों केंद्र सरकार उनसे कर रही है इनकार

पिछले चार सालों में मुसलमानों के खिलाफ 250 से अधिक हिंसा की घटनाएं हुई हैं। और पिछले महज एक साल में लिंचिग की घटनाओं में 30 लोगों की जान गयी है। 

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया केंद्र सरकार ने एक बार फिर संसद में बताया है कि सरकार के पास लिंचिंग के आंकड़े नहीं हैं

ससंद में राज्य गृह मंत्री हंसराज अहीर ने कहा था कि केंद्र सरकार के पास लिंचिंग (भीड़ द्वारा पीट-पीटकर हत्या) के आंकड़े नहीं हैं, लेकिन यह सच नहीं है। डिसमैंटलिंग इंडिया (विखंडित भारत ) रिपोर्ट, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चार साल का लेखा-जोखा पेश किया गया है, उसमें मुसलमानों-आदिवासियों-दलितों और ईसाइयों के खिलाफ की गई हिंसा का सिलसिलेवार-तारीखवार ब्यौरा मौजूद है। इसमें मौजूद आंकड़ों के अनुसार देश में मुसलमानों के खिलाफ नफरत और हिंसा की करीब 371 वारदातें हुईं, जिनमें से 228 मामलों में मुसलमानों के साथ हिंसा की गई, पिटाई, हत्या आदि की गई। ये आंकड़े सिर्फ 3 जुलाई 2018 तक के हैं। इसके बाद भी तमाम वारदातें हुईं और लगातार हो रही हैं। राजस्थान में हुई लिंचिंग पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई है कि राज्य सरकार ने देश की सर्वोच्च अदालत की अवमानना की है।

पिछले एक साल के दौरान 9 राज्यों में लिंचिंग के करीब 30 मामले हुए हैं। न्याय किसी भी मामले में अभी तक नहीं मिला है, उल्टे 30 फीसदी से अधिक मामलों में मारे गए व्यक्ति के परिवार वालों पर ही उल्टे केस लगा दिये गये हैं। जबकि 5 फीसदी मामलों में तो हमला करने वालों के खिलाफ कोई मामला ही नहीं दर्ज हुआ। ये सारे आंकड़े मौजूद हैं, अगर केंद्र सरकार चाहे तो एक चुटकी में तमाम मामलों और उसमें की गई कार्रवाई को सदन में पेश कर सकती है, लेकिन ऐसा करने से वह बच रही है। इसके उलट केंद्रीय मंत्री से लेकर तमाम सासंद इन लिचिंग की घटनाओं को भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ की जा रही साजिश से जोड़ कर देख रहे हैं और बयान दे रहे हैं। इससे पहले भी, 27 दिसंबर 2017 को, सदन में मॉब लिंचिंग के बारे में पूछे गए सवाल के जवाब में केंद्रीय गृह मंत्री ने सदन में कहा था कि 2017 में सिर्फ दो ही लिंचिंग की वारदात हुई है, एक महाराष्ट्र में और एक राजस्थान में।

जबकि इंडिया स्पेंड वेबसाइट के अनुसार 2017 के शुरुआती 6 महीनों में सिर्फ गो-हत्या की अफवाह फैला कर 18 हमले हुए। 2017 इस तरह की हिंसा के लिए अब तक का सबसे खराब साल रहा। इंडिया स्पेंड के अनुसार पिछले चार साल में (2014 से 20 जुलाई 2018 तक) गोरक्षा से संबंधित 85 घटनाएं हुई हैं, जिनमें 34 लोगों की जान चली गई और 285 लोग घायल हुए।

अल्वर में रकबर की हत्या राजस्थान में 2015 से शुरू हुई पांचवी घटना है। इससे पहले 30 मई 2015 को नागौर जिले में अब्दुल गफार कुरैशी, 1 अप्रैल 2017 को अलवर के बहरोर थाना इलाके में पहलू खान, 16 जून 2017 को प्रतापगढ़ में जफर खान और 10 सितंबर 2017 को सीकर के नीम का थाना क्षेत्र में भगतराम मीणा को भीड़ ने पीट-पीट कर मार दिया था।

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इन सभी घटनाओं का एक ही पैटर्न है। इस बारे में पीयूसीएल की कविता श्रीवास्तव ने बताया कि चूंकि राजस्थान-मेवात की पूरी पट्टी में मुसलमान बड़ी तादाद में दूध का कारोबार करते हैं, गाय पालते हैं, इसलिए यहां गाय के नाम पर उनसे वसूली का बड़ा रैकेट चलता है। एक खौफ का माहौल विकसित करने में बीजेपी की सरकार और पुलिस-प्रशासन कामयाब हुआ है। उन्होंने कहा, “इससे बड़ी विडंबना और क्या हो सकती है कि 1 अप्रैल 2017 को लिंचिग में मारे गये पहलू खान पर हमला करने वाले (जिनमें से कई का नाम पहलू ने मरने से पहले अपने बयान में लिया था) सारे आरोपी छूट गये। और लिंचिंग करने वाली भीड़ के पक्ष में केंद्रीय मंत्री तक बयान दे रहे हैं।”

राजस्थान के अलवर में हुई लिंचिंग की घटना और उसमें पुलिस-प्रशासन और बीजेपी नेताओं की भूमिका के खिलाफ आवाजें उठने लगी हैं। लिंचिंग की घटनाओं को लेकर केंद्र की बीजेपी सरकार के खिलाफ माहौल बनना शुरू हो गया है। एनडीए की सहयोगी दल शिरोमणी अकाली दल ने कहा है कि लिचिंग के खिलाफ आवाज उठायेंगे, बीजेपी से गठबंधन रहे, चाहे टूटे।

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