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नवजीवन एक्सक्लूसिव: बीजेपी सांसद का मोदी सरकार के खिलाफ मोर्चा, कहा, ‘संविधान बचाने के लिए आगे आए बहुजन समाज’

3 महीने पहले बहराइच से सांसद सावित्री बाई फूले ने एससी-एसटी को सरकारी नौकरियों के प्रमोशन में आरक्षण को लेकर आंदोलन शुरू किया था। वे अपनी मांग को लेकर पश्चिमी यूपी के कई जिलों में रैली कर चुकी हैं।

फोटो: सोशल मीडिया 
फोटो: सोशल मीडिया  बहराइच की बीजेपी सांसद सावित्री बाई फूले 

उत्तर प्रदेश के बहराइच से बीजेपी सांसद सावित्री बाई फुले ने अपनी ही सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। उन्होंने केंद्र सरकार की एससी/एसटी नीतियों के खिलाफ 1 अप्रैल को लखनऊ में रैली करने की घोषणा की है। नमो बुद्धाय जनसेवा समिति के माध्यम से इस रैली का आयोजन किया जाएगा।

Published: 28 Mar 2018, 1:53 PM IST

3 महीने पहले बहराइच से सावित्री बाई फूले ने एससी/एसटी को सरकारी नौकरियों के प्रमोशन में आरक्षण की मांग को लेकर आंदोलन शुरू किया था। इसके तहत उन्होंने लखनऊ, बिजनौर, कन्नौज और कानपुर समेत पश्चिमी यूपी के जिलों में रैलियां भी की।

नवजीवन से खास बातचीत करते हुए फूले ने कहा, “कभी यह कहा जाता है कि हम संविधान बदलने के लिए सत्ता में आए हैं, कभी कहा जाता है कि हमारी सरकार आरक्षण खत्म कर देगी या सविंधान द्वारा दिए गए आरक्षण के अधिकार को इतना कमजोर कर देगी कि इसका कोई उपयोग न बचे। अगर आरक्षण और संविधान सुरक्षित नहीं है तो बहुजन का अधिकार कैसे सुरक्षित रहेगा।”

उन्होंने आगे कहा, “सिर्फ मैं ही नहीं, बल्कि उमा भारती, उदित राज, अनुप्रिया पटेल, आरएलएसपी नेता उपेंद्र कुशवाहा समेत कई और लोगों ने एससी-एसटी कानून को कमजोर करने को लेकर अपनी चिंता जताई है। मुझे लगता है कि बहुजन समाज के सारे लोगों संविधान को बचाने के लिए आगे आना चाहिए।”

यह पूछे जाने पर कि क्या उनकी पार्टी एससी-एसटी कानून पर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले की समीक्षा के लिए याचिका देगी, उन्होंने कहा, “संवैधानिक नियमों के तहत एससी-एसटी समुदायों का कई अधिकार दिए गए हैं और हम उन अधिकारों को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। हम किसी और का अधिकार नहीं ले रहे हैं। हमारा अधिकार क्यों छीना जा रहा है? हम जिसके पास भी जाते हैं हमें निराशा मिलती है। कोई हमें नहीं सुनता है।”

क्या उन्होंने अपनी पार्टी के साथ यह सारे मुद्दे साझा किए हैं? उन्होंने जवाब में कहा, “मैंने कई बार इन मुद्दों को लोकसभा में उठाया है। पार्टी मेरी राय जानती है। एससी-एसटी को इतना अत्याचार झेलना पड़ता है और उन्हें अभी तक समान दर्जा नहीं मिला है। उन्हें सरकारी नौकरियों, प्रमोशन और विश्वविद्यालयों में आरक्षण से वंचित किया जाता है।”

जब उनसे पूछा गया कि पार्टी के खिलाफ बोलने पर अगर बीजेपी उन पर कार्रवाई कर सकती है, उन्होंने कहा, “हमारे लिए, मेरे अधिकार के लिए कौन लड़ेगा, अगर मैं उनके लिए नहीं संघर्ष नहीं करूंगी। क्या अपने अधिकारों के लिए लड़ना अपराध है? क्या आरक्षण के अपने अधिकार के लिए लड़ने पर मुझ पर प्रतिबंध लगा दिया जाएगा? लोकतंत्र में हम अपने अधिकार के लिए लड़ सकते हैं। मेरे खिलाफ की गई कोई भी कार्रवाई संविधान के खिलाफ कार्रवाई होगी।”

उन्होंने आरक्षण के मुद्दे पर इससे पहले कहा था, “मैं सिर्फ शोषित, दलित, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों को उनका अधिकार दिलाना चाहती हूं। मैंने सदन में भी आवाज उठाई थी, लेकिन आरक्षण के खिलाफ साजिश रची जा रही है। उसे बचाने के लिए मैंने आंदोलन की शुरुआत की है।”

सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च को अपने फैसले में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अधिनियम के तहत होने वाली तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगा दी है। महाराष्ट्र की एक याचिका पर फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने कहा कि इस अधिनियम का गलत इस्तेमाल हो रहा है। इसे फैसले के बाद बीजेपी में विरोध के सुर भी उठे हैं।

बीजेपी के उत्तर पश्चिम-दिल्ली से लोकसभा सांसद और ऑल इंडिया कंफेडरेशन फॉर एससी-एसटी के अध्यक्ष उदित राज एससी-एसटी कानून पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से चिंतित हैं। कुछ दिनों पहले नवजीवन के साथ बातचीत में उन्होंने कहा था कि केंद्र सरकार को इस संबंध में तत्काल एक पुनरीक्षण याचिका दाखिल करनी चाहिए या फिर संसद में इस संबंध में एक बिल लाना चाहिए।

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बीजेपी के एसटी मोर्चा के अध्यक्ष अरविंद नेताम ने भी सरकार से मांग की थी कि वह सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले के खिलाफ एक समीक्षा याचिका दायर करें। केन्द्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने भी जल्द ही याचिका दायर करने के लिए केंद्र से अनुरोध किया था। उन्होंने इस फैसले के आने के बाद कहा था, “सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से अनुसूचित जाति और जनजातियों में बहुत अधिक नाराजगी है और सरकार को जल्द पुनर्विचार याचिका दायर करनी चाहिए।”

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पिछले साल की नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक, 2016 में अनुसूचित जाति के खिलाफ अपराधिक मामलों में 2015 के मुकाबले 5.5 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। 2016 में कुल 40,801 मामले दर्ज हुए हैं, जबकि 2015 में ये आंकड़ा 38,670 तक ही था।

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(विश्वदीपक के इनपुट के साथ)

Published: 28 Mar 2018, 1:53 PM IST

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Published: 28 Mar 2018, 1:53 PM IST