केंद्र के अध्यादेश के खिलाफ विपक्षी दलों को साथ लाने की आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल की मुहिम अब एक कदम और आगे बढ़ गई है। बुधवार को उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने भी दिल्ली सरकार का साथ देने का एलान कर दिया। इससे पहले, पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी, बिहार के सीएम नीतीश कुमार और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव इस अध्यादेश का राज्यसभा में विरोध करने का एलान कर चुके हैं।
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उद्धव ठाकरे की शिवसेना का समर्थन हासिल करने के लिए बुधवार को केजरीवाल ने मुम्बई में उनसे मुलाकात की। मुलाकात के दौरान अरविंद केजरीवाल ने कहा कि दिल्ली के लोगों को शिवसेना और उद्धव ठाकरे का भी साथ मिल गया है। हम सभी मिलकर जन विरोधी और दिल्ली विरोधी कानून को राज्यसभा में पास नहीं होने देंगे। वहीं, उद्धव ठाकरे ने कहा कि दिल्ली के अधिकारों को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिया गया फैसला लोकतंत्र के लिए बहुत जरूरी था, लेकिन केंद्र ने अध्यादेश लाकर इसे पलट दिया। लोकतंत्र विरोधी लोगों से देश के संविधान को बचाने के लिए हम सभी साथ हैं।
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आप के राष्ट्रीय संयोजक एवं दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे का धन्यवाद करते हुए कहा कि सभी जानते हैं कि दिल्ली के लोगों ने अपने अधिकारों के लिए बहुत लंबी लड़ाई लड़ी। 2015 में जैसे ही दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार बनी, वैसे ही केंद्र सरकार ने एक अधिसूचना पारित कर हमारी सारी शक्तियां छीन ली। हमारी फरवरी 2015 में सरकार बनी और मई में (तीन महीने के अंदर) मोदी सरकार ने अधिसूचना जारी कर हमारी शक्तियां हमसे छीन ली। इसके बाद दिल्ली के लोगों ने 8 साल तक सुप्रीम कोर्ट में अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ी।
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मुख्यमंत्री केजरीवाल का कहना है कि इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली की चुनी हुई सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया। आठ साल की लंबी लड़ाई के बाद जिस दिन सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया, उसके मात्र 8 दिन के अंदर ही केंद्र सरकार ने अध्यादेश लाकर दोबारा हमसे हमारी सारी शक्तियां छीन ली। जनतंत्र में तो चुनी हुई सरकार के पास शक्तियां होनी चाहिए, ताकि वो जनता के हित में कार्य कर सके। क्योंकि जनतंत्र में चुनी हुई सरकार ही जनता के प्रति जवाबदेह होती है। मगर केंद्र सरकार ने हमने सारी शक्तियां छीन ली। ये लोग साफ कह रहे हैं कि हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले को नहीं मानते हैं।
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केजरीवाल ने कहा कि पिछले कुछ महीनों में हमने यह भी देखा कि कैसे इनके मंत्रियों और नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट के दूसरे न्यायाधीशों को अपशब्द कहे हैं। देश की न्यायपालिका और न्यायाधीशों के खिलाफ सोशल मीडिया पर अभियान चलाते हैं। इनके लोग सेवानिवृत न्यायाधीशों को देशद्रोही बोलते हैं। यानी इनका देश की न्यायपालिका को नहीं मानते। अब अध्यादेश लाकर इन्होंने ये साफ कर दिया कि सुप्रीम कोर्ट चाहे जो मर्जी फैसले ले, हम उसे नहीं मानते हैं। हम कभी भी अध्यादेश लाकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट देंगे। इस प्रकार तो देश नहीं चल पाएगा। ये लोग देश के लोकतंत्र को भी नहीं मानते। इसकी शिवसेना सबसे बड़ी भुक्तभोगी है। महाराष्ट्र में जनता द्वारा बहुमत से चुनी हुई सरकार को इन्होंने ईडी-सीबीआई और पैसे के बल पर विधायकों को तोड़कर गिरा दी। यह सबने देखा है।
आईएएनएस के इनपुट के साथ
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