पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सोमवार को जम्मू और कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के लिए प्रत्यक्ष रूप से सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि राज्यों का परिषद होने के नाते राज्यसभा को 'सरकार द्वारा उचित सम्मान' दिया जाना चाहिए और राज्य को केंद्र शासित प्रदेशों में तब्दील करने और इसकी सीमाओं को दोबारा सीमांकन करने के 'कठोर कदम' उठाने के समय राज्यसभा से संपर्क करना चाहिए था। संसद के शीतकालीन सत्र के पहले दिन राज्यसभा में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने कहा कि राज्यसभा की तरफ से यह सुनिश्चित करना काफी महत्वपूर्ण कर्तव्य है कि भावना के ज्वार में कोई कानून पारित नहीं किया जाए। उन्होंने इस बयान के साथ एकबार फिर संसद द्वारा जम्मू एवं कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को हटाने और इसे जम्मू एवं कश्मीर और लद्दाख के रूप में दो केंद्रशासित राज्य बनाने के पांच अगस्त के कदम का जिक्र किया।
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सिंह ने राज्यसभा को ज्यादा प्रभावी बनाने के लिए कई सुझाव दिए। उन्होंने यह भी कहा कि संसद को इस परंपरा का पालन करना चाहिए कि सभी विधेयक उच्च सदन में लाए जाएं। लेकिन अनुच्छेद 110 लोकसभा को धन विधेयक में प्रधानता प्रदान करता है।
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पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा, "हमने राज्यसभा में बिना किसी चर्चा के धन विधेयक का दुरुपयोग होते देखा है। संसद को यह सुनिश्चित करना चाहिए इस तरह की घटनाएं न हों, क्योंकि इससे संस्थान की गरिमा कम होती है।"
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उन्होंने कहा कि राज्यसभा के सदस्यों की संख्या लोकसभा के सदस्यों की कुल संख्या की आधी है, लेकिन राज्यसभा के सदस्यों को अपनी बात रखने के लिए पर्याप्त समय नहीं मिल पाता है।
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मनमोहन सिंह ने कहा कि राज्यसभा के सदस्यों को अपना भाषण देने के लिए अधिक समय देना चाहिए। उन्होंने कहा कि 14वीं व 15वीं लोकसभा की तुलना में 16वीं लोकसभा में सिर्फ 25 फीसदी ही बिल कमेटियों को दिए गए। इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी राज्यसभा को संबोधित करते कहा कि लोकसभा भंग होती है लेकिन राज्यसभा न कभी भंग होती है और ना कभी होना है।
आईएएनएस के इनपुट के साथ
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