एक चौंकाने वाले रहस्योद्घाटन में एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे से 23 दिन पहले तत्कालीन राष्ट्पति अशरफ गनी ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से फोन पर बात की थी। बाइडेन ने गनी से यह 'धारणा' पैदा करने के लिए कहा था कि तालिबान जीत नहीं रहा है और वह उन्हें हराने में 'सक्षम' हैं, भले 'यह सच हो या नहीं'।
मंगलवार को अमेरिकी सेना के पूरी तरह से अफगानिस्तान छोड़ने वाले दिन रॉयटर्स ने अफगान राष्ट्रपति गनी के भाग जाने से पहले बाइडेन और गनी के बीच अंतिम कॉल के अंश जारी किए। बाइडेन और गनी के बीच आखिरी फोन कॉल 23 जुलाई को हुई थी और बातचीत के इन 14 मिनटों में कई जरूरी चीजें साझा की गई थीं।
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रॉयटर्स के मुताबिक, जो बाइडेन ने अशरफ गनी से कहा था कि वह तभी सैन्य मदद देंगे, जब वह सार्वजनिक तौर पर तालिबान को रोकने का प्लान सामने रखेंगे। जो बाइडेन ने कहा था कि हमारी ओर से हवाई सपोर्ट जारी रहेगा, लेकिन हमें पता होना चाहिए कि आगे का प्लान क्या है।
बता दें कि इस फोन कॉल के कुछ दिन पहले ही अमेरिका ने अफगान आर्मी का समर्थन करते हुए तालिबान के खिलाफ एयरस्ट्राइक की थी। यह वह समय था जब तालिबान देश के विभिन्न हिस्सों में अपनी प्रगति जारी रखे हुए था और आतंकी समूह खुद को एक विजेता के रूप में पेश कर रहा था। लेकिन दोनों नेता जमीनी हकीकत से कोसों दूर थे।
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बाइडेन ने अपने समकक्ष गनी से कहा था, "मुझे आपको दुनिया भर में और अफगानिस्तान के कुछ हिस्सों में उस धारणा के बारे में बताने की जरूरत नहीं है, जो यह बनी हुई है कि तालिबान के खिलाफ लड़ाई के मामले में चीजें ठीक नहीं चल रही हैं। यह सच है या नहीं, मगर एक अलग तस्वीर पेश करने की जरूरत है।" 'लीक' हुई रिपोर्ट में कहा गया है कि बाइडेन ने गनी से यह भी पूछा कि धारणा बनाने की कवायद को कैसे आगे बढ़ाया जाए।
अमेरिकी राष्ट्रपति चाहते थे कि राष्ट्रपति अशरफ गनी द्वारा जनरल बिस्मिल्लाह खान मोहम्मदी को तालिबान से लड़ने की जिम्मेदारी दी जाए, जो उस वक्त रक्षा मंत्री थे। मोहम्मदी ने 1990 के गृह युद्ध के दौरान तालिबान विरोधी दिवंगत कमांडर अहमद शाह मसूद के नेतृत्व में लड़ाई लड़ी थी और उन्हें जून के अंतिम सप्ताह में अफगानिस्तान के राष्ट्रपति गनी द्वारा देश का नया रक्षा मंत्री नियुक्त किया गया था।
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लीक बातचीत पर गौर किया जाए तो उसके अनुसार, गनी को अपना प्लान सामने रखना था, जनरल बिस्मिल्लाह खान मोहम्मदी को कमान देनी थी और उसके बाद अमेरिका मदद बढ़ाने को तैयार था। जो बाइडेन की ओर से भरोसा दिलाया गया कि अमेरिकी सेना ने जिन तीन लाख अफगान सैनिकों को तैयार किया है, वह 70-80 हजार तालिबानियों का मुकाबला कर सकते हैं।
हालांकि, इस बातचीत का मुख्य फोकस अफगान सरकार के रवैये को लेकर था। जो बाइडेन द्वारा चिंता व्यक्त की गई कि अशरफ गनी सरकार का रवैया तालिबान के खिलाफ लड़ाई के लिए गंभीर नहीं है, जिसका दुनिया में गलत संदेश भी जा रहा है। बाइडेन ने कहा था, "आपके पास स्पष्ट रूप से सबसे अच्छी सेना है, आपके पास अच्छी तरह से लड़ने में सक्षम 300,000 ट्रेन्ड सशस्त्र बल बनाम 70-80,000 लड़ाके हैं। अगर हम जानते हैं कि योजना क्या है और हम क्या कर रहे हैं, तो हम नजदीकी हवाई सहायता प्रदान करना जारी रखेंगे।"
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बाइडेन ने गनी को अफगान सरकार और सेना के समर्थन में तालिबान विरोधी लड़ाकों के साथ कुछ बैठकें आयोजित करने के लिए भी कहा था। ऐसा इसलिए कहा था कि इससे सरकार की ढहती छवि को बल मिलता। बाइडेन ने यह भी सलाह दी थी कि अफगानिस्तान की सभी प्रमुख राजनीतिक शक्तियों को साथ आकर प्रेस कॉन्फ्रेंस करनी चाहिए और तालिबान के खिलाफ एक ठोस रणनीति का ऐलान करना चाहिए, ताकि छवि बदली जा सके। उन्होंने इस पर विश्वास व्यक्त करते हुए कहा था, "यह धारणा बदल देगा और यह मेरे विचार से बहुत कुछ बदल देगा।"
इसके अलावा रिपोर्ट के अनुसार, बाइडेन ने गनी को आश्वासन देते हुए कहा, "हम यह सुनिश्चित करने के लिए कूटनीतिक, राजनीतिक, आर्थिक रूप से कठिन लड़ाई जारी रखेंगे, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि आपकी सरकार न केवल जीवित रहे, बल्कि कायम रहे और आगे बढ़े।"
कॉल के बाद, व्हाइट हाउस ने एक बयान जारी किया, जो धन प्राप्त करने और अफगान सुरक्षा बलों का समर्थन करने के लिए बाइडेन की प्रतिबद्धता पर केंद्रित था।
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वहीं, बातचीत में गनी ने बाइडेन से शिकायत की कि कैसे पाकिस्तान तालिबान को पूरा समर्थन दे रहा है। गनी ने कहा था, "हम एक पूर्ण पैमाने पर आक्रमण का सामना कर रहे हैं, जिसमें तालिबान, पूर्ण पाकिस्तानी योजना और सैन्य समर्थन के अलावा कम से कम 10 से 15 हजार अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी, मुख्य रूप से पाकिस्तानी शामिल हैं।"
हालांकि, स्थिति को लेकर विडंबना यह है कि जब विशेषज्ञ दावा कर रहे थे कि काबुल का पतन अगले चार सप्ताह में हो सकता है, तब दोनों नेता सेना के बजाय धारणा रणनीति पर चर्चा कर रहे थे। इस बातचीत के 22 दिनों के बाद ही काबुल पर तालिबान का कब्जा हो गया और अफगान राष्ट्रपति गनी अपने लोगों और सेना को धोखा देते हुए देश छोड़कर भाग गए।
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