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झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार का सफल एक साल, पूरे राज्य में जगी उम्मीद की किरण

चाहे पत्थलगड़ी मामले में दर्ज देशद्रोह के केस वापस लेने की हो, किसानों की कर्जमाफी की या फिर आदिवासियों के लिए सरना आदिवासी धर्मकोड के प्रस्ताव की, हेमंत सोरेन सरकार के फैसलों ने उनके विरोधियों को भी चकित किया है और अखबारों की हेडलाइंस में भी छायी रही हैं।

फोटोः @HemantSorenJMM
फोटोः @HemantSorenJMM 

तारीख थी 29 दिसंबर, साल 2019, दिन रविवार। रांची में राहुल गांधी समेत कई बड़े नेताओं की मौजूदगी थी। सड़कों पर सामान्य से अधिक ट्रैफिक था। गाड़ियों की आवाजाही थी। इन्हीं गाड़ियों में से एक की ड्राइविंग सीट पर हेमंत सोरन थे। साथ थीं उनकी पत्नी कल्पना सोरेन। रांची की प्रमुख सड़कों से गुजरते हुए जब उनकी गाड़ी मोरहाबादी मैदान पहुंची, तो वहां तालियां गूंजने लगीं। ये तालियां झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रमुख और देश के कद्दावर आदिवासी नेता शिबू सोरेन के बेटे हेमंत सोरन के लिए बज रही थीं। वे दूसरी दफा झारखंड के मुख्यमंत्री बनने जा रहे थे। उनके नेतृत्व में बना झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल का गठबंधन विधानसभा चुनाव में बड़ी जीत हासिल कर चुका था। अब सरकार बनाने की बारी थी। इसका गवाह बनने के लिए वहां हजारों लोगों की भीड़ जमा थी।

तब बमुश्किल पौन घंटे तक चले शपथ ग्रहण समारोह में हेमंत सोरेन ने झारखंड के 11वें मुख्यमंत्री के तौर पर पद की शपथ ली। इसके कुछ ही देर बाद उनके नवगठित मंत्रिपरिषद की पहली बैठक हुई। उस बैठक में हेमंत सोरन और उनके मंत्रियों ने पत्थलगड़ी अभियान में शामिल लोगों पर दर्ज देशद्रोह के मुकदमे वापस लेने का फैसला किया। ये मुकदमे भारतीय जनता पार्टी की पूर्ववर्ती सरकार के कार्यकाल के दौरान दर्ज कराए गए थे। अगले दिन यह खबर सुर्खियों में थी। इसका वास्ता सीधे तौर पर गरीब आदिवासियों से था, जो पूर्ववर्ती रघुवर दास की सरकार के दौरान खुद को उपेक्षित मानते थे। उस सरकार ने करीब दस हजार आदिवासियों को देशद्रोह के मामलों में आरोपी बना दिया था।

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हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली यह सरकार अब अपनी पहली सालगिरह मना रही है। इससे महज छह दिन पहले हेमंत कैबिनेट की ग्यारहवीं बैठक हुई। इसमें किसानों का 50 हजार रुपये तक का कर्ज माफ करने का निर्णय लिया गया। यह फैसला इन दिनों सुर्खियों में है। झारखंड की मौजूदा सरकार के मुखिया और उनके मंत्रियों ने अपनी मंत्रिपरिषद की अब तक की कुल ग्यारह बैठकों में जिन 207 प्रस्तावों को मंजूरी दी है, उनमें से अधिकतर सुर्खियों में रही हैं। बात चाहे पत्थलगड़ी के कारण दर्ज देशद्रोह के मुकदमों को वापस लेने की घोषणा की हो, किसानों की कर्ज माफी की या फिर आदिवासियों के लिए सरना आदिवासी धर्मकोड के प्रस्ताव की, हेमंत सोरेन सरकार के निर्णयों ने उनके विरोधियों को भी चकित किया है और इन फैसलों ने अखबारों की हेडलाइंस चुराई हैं।

हालांकि, इन निर्णयों पर काम होना अभी बाकी है और यही हेमंत सोरेन की सबसे बड़ी चुनौती भी है। क्योंकि, सोशल मीडिया के दौर में सुर्खियां कतरनों में फंसने की बजाय मोबाइल स्क्रीन के जरिये लोगों की जेबों में रहती हैं। इसका इस्तेमाल कभी भी किया-कराया जा सकता है। विपक्ष मुख्यमंत्री को कई बार उनके ही पुराने बयानों को लेकर घेर भी चुका है।

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सरकार की उपलब्धियां

मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने और जनवरी में मंत्रिमंडल विस्तार के बाद हेमंत सोरेन की सरकार ने जैसे ही अपने कामकाज की गति बढ़ाई, उसका सामना वैश्विक महामारी कोरोना से हुआ। आपदा प्रबंधन का कोई पुराना अनुभव नहीं होने के बावजूद सरकार ने इस दौरान बेहतर प्रबंधन किया। यह इत्तेफाक ही है कि लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों की घरवापसी के लिए चली पहली ट्रेन झारखंड पहुंची। मजदूरों को हवाई जहाज से वापस लाने का निर्णय लेने वाली पहली सरकार भी हेमंत सोरेन की थी।

कोरोना संक्रमण के शुरुआती दौर में जब हर आदमी एक-दूसरे को वायरस का वाहक समझ कर घरों में बंद था, हेमंत सोरेन स्वयं स्टेशनों और एयरपोर्ट पर मजदूरों के स्वागत के लिए मौजूद रहे। ये कुछ ऐसी घटनाएं थीं, जिनकी चर्चा व्यापक स्तर पर हुई। तब सीएम हेमंत सोरेन की चारों तरफ जमकर प्रशंसा की गई और 45 साल के इस आदिवासी नेता को राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति भी मिली।

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उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक उस दौरान 600 मजदूरों को एयरलिफ्ट कराया गया और साढ़े आठ लाख मजदूर विशेष ट्रेनों से झारखंड वापस लाए गए। इस दौरान पूरे राज्य में कम्युनिटी किचेन चलाए गए। मुख्यमंत्री दीदी किचेन शुरू हुआ और पूरे राज्य में मार्च से जून तक करीब 5 करोड़ प्लेट भोजन परोसे गए। इस दौरान मनेरगा में 422.62 लाख मानव दिवस सृजित किए गए और साल 2020-21 के दौरान भी ऐसे 10 करोड़ मानव दिवस सृजन का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।

प्रवासी मजदूरों के रोजगार सृजन के लिए बिरसा हरित ग्राम योजना, नीलांबर पीतांबर जल समृद्धि योजना, पोटो हो खेल विकास योजना, मुख्यमंत्री मानव सेवा योजना, शहरी क्षेत्रों के श्रमिकों के लिए 100 दिन के रोजगार गारंटी की योजना जैसी योजनाएं लागू करने के साथ ही सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) जैसी संस्थाओं में पंजीकृत मजदूरों को भेजने जैसी उपलब्धियां भी सरकार के नाम रहीं। बीआरओ के लिए मजदूरों को लद्दाख ले जाने वाली ट्रेन को विदा करने मुख्यमंत्री स्वयं दुमका गए और अपनी निगरानी में बीआरओ से उनका करार कराया। इस दौरान कर्मचारी चयन आयोग के माध्यम से 9512 पदों पर नियुक्तियों की अनुशंसाएं कर सरकार ने सरकारी नौकरियों के लिए युवाओं में भी उम्मीद जगाई है।

सरकारी दावों के मुताबिक, कोरोना संक्रमण के दौरान राज्य का मौजूदा रिकवरी रेट (2 दिसंबर के आधार पर) राष्ट्रीय औसत 95.5 फीसदी से अधिक है। मृत्यु दर भी एक फीसदी से कम रहा है। अस्पतालों में इलाज की जरुरी सुविधाएं भी उपलब्ध हैं। कोरोना के नए स्ट्रेन को लेकर भी योजनाएं बनाई गई हैं। सरकार अब अपने मौजूदा 245 वैक्सीन स्टोर की क्षमता बढ़ाने की कवायद कर रही है, ताकि कोरोना का वैक्सीन आने के बाद जरुरतमंद लोगों को उसका लाभ आसानी से मिल सके।

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सरकार की चुनौतियां

हालांकि, ये उपलब्धियां मामूली हैं और हेमंत सोरेन की सरकार को आने वाले साल में विकास की गति काफी तेज करनी होगी। उनकी सबसे बड़ी चुनौती युवाओं को सरकारी नौकरी देना है, जिसका वादा कर उन्होंने वोट मांगे थे। तब उन्होंने पांच लाख नौकरियां देने का वादा किया था। अनुबंध पर काम कर रहे लोगों की स्थायी नौकरियों जैसी मांगें भी सरकार की सेहत के लिए ठीक नहीं हैं। हेमंत सोरेन ने विपक्ष का नेता रहते हुए उन्हें ऐसे आश्वासन दिए थे। अब ये सारे लोग अपनी मांगों को लेकर आंदोलन कर रहे हैं और विपक्ष इसे मुद्दा बना रहा है।

गुड गर्वनेंस के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर मुख्यमंत्री ने काफी वाहवाही बटोरी है, लेकिन उन मामलों का फाॉलोअप करना भी सरकार के लिए चुनौती है। इस बीच मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा है कि सरकार की पहली सालगिरह के बाद उनकी सरकार इन मुद्दों पर ज्यादा तेज गति से काम करेगी। उन्होंने कहा कि सरकार बनाते ही कोरोना संक्रमण और केंद्र सरकार द्वारा गैर भाजपायी राज्यों के साथ कथित तौर पर सौतेला व्यवहार किए जाने के कारण उनकी सरकार को काम करने में दिक्कतें हुईं। अब इन दिक्कतों को दूर किए जाने की कोशिशें की जाएंगी।

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