बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) ने आज सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई पर हमला करने का प्रयास करने वाले वकील राकेश किशोर की प्रैक्टिस निलंबित कर दी है। काउंसिल ने किशोर के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही भी शुरू कर दी है। कांग्रेस संसदीय दल की प्रमुख सोनिया गांधी ने प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई पर हमले पर चिंता जताते हुए कहा कि यह हमला सिर्फ उन पर नहीं, बल्कि संविधान पर भी हमला है। इस बीच सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री द्वारा प्रधान न्यायाधीश की ओर जूता फेंकने के आरोपी वकील पर कोई आरोप नहीं लगाए जान और न ही उसके खिलाफ मामला दर्ज कराए जाने पर पुलिस ने उसे रिहा कर दिया है। साथ ही वकील को उसका जूता भी लौटा दिया गया है।
बीसीआई ने सोमवार को खुली अदालत में सीजेआई बीआर गवई पर हमला करने की कोशिश करने वाले वकील राकेश किशोर को तत्काल प्रभाव से वकालत से निलंबित कर दिया है। बीसीआई द्वारा पारित एक अंतरिम आदेश के अनुसार, दिल्ली बार काउंसिल में पंजीकृत किशोर ने अदालती कार्यवाही के दौरान कथित तौर पर अपने स्पोर्ट्स शूज़ उतारकर सीजेआई गवई की ओर फेंकने की कोशिश की, जिसके बाद सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें हिरासत में ले लिया और अदालत कक्ष से बाहर निकाल दिया।
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बीसीआई द्वारा अधिवक्ता अधिनियम, 1961 और बार काउंसिल ऑफ इंडिया के व्यावसायिक आचरण एवं शिष्टाचार मानकों संबंधी नियमों के तहत जारी अंतरिम निलंबन आदेश पर बीसीआई के अध्यक्ष और वरिष्ठ अधिवक्ता मनन कुमार मिश्रा ने हस्ताक्षर किए। निलंबन की अवधि के दौरान, किशोर भारत में किसी भी न्यायालय, न्यायाधिकरण या प्राधिकरण के समक्ष उपस्थित होने, कार्य करने, पैरवी करने या वकालत करने से वंचित रहेंगे।
दिल्ली बार काउंसिल को निर्देश दिया गया है कि वह किशोर की स्थिति को अपने रोल में अद्यतन करके और अपने अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली सभी अदालतों और न्यायाधिकरणों को सूचित करके तत्काल अनुपालन सुनिश्चित करे। सर्वोच्च न्यायालय, सभी उच्च न्यायालयों और जिला न्यायालयों की रजिस्ट्री को निर्देश दिया गया है कि वे इस आदेश को दाखिल और उपस्थिति काउंटरों और सर्वोच्च न्यायालय बार एसोसिएशन सहित सभी संबंधित बार एसोसिएशनों को प्रसारित करें।
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चीफ जस्टिस पर हमले ने देश को स्तब्ध कर दिया है। कांग्रेस संसदीय दल की प्रमुख सोनिया गांधी ने प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई पर हमले पर चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि यह हमला सिर्फ उनपर नहीं, बल्कि संविधान पर भी हमला है। सोनिया गांधी ने एक बयान में कहा, ‘‘उच्चतम न्यायालय में भारत के माननीय प्रधान न्यायाधीश पर हुए हमले की निंदा करने के लिए कोई भी शब्द पर्याप्त नहीं हैं। यह न केवल उनपर (सीजेआई पर), बल्कि हमारे संविधान पर भी हमला है।’’ कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष ने कहा, ‘‘प्रधान न्यायाधीश गवई बहुत सहृदय हैं, लेकिन राष्ट्र को गहरी पीड़ा और आक्रोश के साथ एकजुट होकर उनके साथ खड़ा होना चाहिए।’’
वहीं सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन’ ने सोमवार को सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें अदालती कार्यवाही के दौरान एक वकील द्वारा सीजेआई बी आर गवई की ओर कथित तौर पर जूता फेंकने के प्रयास की घटना की कड़ी निंदा की गई। विपिन नायर की अध्यक्षता वाली एसोसिएशन ने इस घटना को एक वकील द्वारा किया गया ‘अपमानजनक और असंयमित कृत्य’ बताया।
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अपने सचिव निखिल जैन द्वारा जारी एक बयान में एसोसिएशन ने शीर्ष अदालत से अनुरोध किया कि वह उक्त आचरण का स्वतः संज्ञान ले और अदालत की अवमानना के लिए उपयुक्त कार्यवाही शुरू करे, क्योंकि यह कृत्य माननीय उच्च्चतम न्यायालय के प्राधिकार को बदनाम करने और जनता की नजरों में उसकी गरिमा को कमतर करने की एक सोची-समझी चाल है।’ इसने कहा कि इस तरह की कार्रवाई से यह संदेश जाएगा कि अभिव्यक्ति की आजादी में संयम का कर्तव्य भी शामिल है, खासकर कानूनी पेशे के उन सदस्यों के लिए जो अदालत के अधिकारी हैं।
उच्चतम न्यायालय में यह घटना सोमवार सुबह मामलों के उल्लेख के दौरान हुई। अदालत में मौजूद सूत्रों के अनुसार, आरोपी वकील किशोर मंच के पास गया और अपना जूता निकालकर न्यायाधीश पर फेंकने का प्रयास किया। हालांकि, अदालत में मौजूद सुरक्षाकर्मियों ने समय रहते हस्तक्षेप किया और वकील को बाहर निकाल दिया। बाहर जाते समय, वकील को यह कहते हुए सुना गया, "सनातन का अपमान नहीं सहेंगे।" घटना के बाद सीजीआई ने अपना संयम बनाए रखा और अदालत कक्ष में उपस्थित वकीलों से अपनी दलीलें जारी रखने का आग्रह किया। बाद में वकील की पहचान मयूर विहार निवासी राकेश किशोर (71) के रूप में की गई।
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यह घटना संभवतः खजुराहो में भगवान विष्णु की सात फुट ऊँची सिर कटी मूर्ति की पुनर्स्थापना से जुड़े एक पिछले मामले में मुख्य न्यायाधीश गवई की टिप्पणियों से शुरू हुई थी। उस मामले को खारिज करते हुए उन्होंने कहा था, “जाओ और भगवान से ही कुछ करने के लिए कहो। तुम कहते हो कि तुम भगवान विष्णु के कट्टर भक्त हो। तो जाओ और अभी प्रार्थना करो। यह एक पुरातात्विक स्थल है और एएसआई को अनुमति वगैरह देनी होगी।” इस टिप्पणी से सोशल मीडिया पर हंगामा मच गया था। दो दिन बाद खुली अदालत में इस विवाद को संबोधित करते हुए मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि उनका कोई अनादर करने का इरादा नहीं था। उन्होंने कहा, "मैं सभी धर्मों का सम्मान करता हूँ...यह सोशल मीडिया पर हुआ।"
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