बिहार की विशेष पुनरीक्षण प्रक्रिया यानी एसआईआर पर सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई हुई। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि अब आधार कार्ड को 12वें दस्तावेज के रूप में स्वीकार किया जाए, जिसे मतदाता सूची में नाम जुड़वाने के लिए पहचान प्रमाण के तौर पर पेश किया जा सकता है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने यह भी साफ किया कि आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं है।
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इस पर चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को आश्वासन दिया कि आधार को पहचान पत्र के रूप में स्वीकार किया जाएगा।
आरजेडी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखा। कपिल सिब्बल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के पहले के आदेशों के बावजूद चुनाव आयोग आधार को अकेले दस्तावेज के रूप में स्वीकार नहीं कर रहे। सिब्बल ने कोर्ट में उन मतदाताओं के शपथपत्र भी दाखिल किए, जिनके आधार को स्वीकार नहीं किया गया।
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चुनाव आयोग के वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि आधार पहचान का प्रमाण हो सकता है, नागरिकता का नहीं। इसे पासपोर्ट की तरह ट्रीट नहीं किया जा सकता। चुनाव आयोग ने कहा कि हम पासपोर्ट की तरह आधार को नहीं स्वीकार कर सकते. बिहार में सभी 11 दस्तावेजों को पेश करने में सक्षम हैं। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आधार से अगर कोई आवेदन करता है और अगर आपको संदेह है तो जांच करा लें
जस्टिस कांत ने कहा कि लोगों ने हर तरह के दस्तावेज जाली बनाए हैं, लेकिन चुनाव आयोग उनकी पुष्टि कर सकता है। वहीं एडवोकेट अश्विनी कुमार उपाध्याय का कहना है कि अगर किसी के पास 11 दस्तावेज नहीं हैं, तो उसके पास आधार कार्ड कैसे आ जाएगा है?
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गौरतलब है कि आधार को 11 दस्तावेजों की लिस्ट से बाहर रखे जाने पर विपक्षी दलों ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। विपक्षी दलों का कहना है कि इस सर्वमान्य दस्तावेज को मतदाता पहचान पत्र की प्रक्रिया इसलिए बाहर रखा गया है ताकी बीजेपी और एनडीए को फायदा हो सके।
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