लोकसभा चुनावों के दौरान पश्चिम बंगाल में बीजेपी का प्रमुख चेहरा रहे निभाष सरकार ने एनआरसी में नाम न आने की आशंका के चलते खुदकुशी कर ली। लोकसभा चुनावों के दौरान हनुमान के भेष में घूमने वाले निभाष सरकार की तस्वीरें सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुई थीं। लेकिन शुक्रवार (4 अक्टूबर) को निभाष सरकार ने अपने गांव हंसखाली में आत्महत्या कर ली। गौरतलब है कि हाल में कोलकाता आए बीजेपी अध्यक्ष और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि अब एनआरसी पूरे देश में लागू किया जाएगा और सभी गैरकानूनी प्रवासियों को बाहर निकाला जाएगा।
Published: 05 Oct 2019, 4:00 PM IST
ध्यान रहे कि निभाष सरकार ने रानाघाट लोकसभा सीट से बीजेपी उम्मीदवार जगन्नाथ सरकार के लिए खूब प्रचार किया था। निभाष की आत्महत्या के मामले की शुरुआती जांच के बाद पुलिस का कहना है कि निभाष ने किसी जहरीले पदार्थ का सेवन कर जान दी है। पुलिस के मुताबिक हालत बिगड़ने पर निभाष को शक्तिनगर जिला अस्पताल ले जाया गया था, लेकिन उन्होंने रास्ते में ही दम तोड़ दिया।
Published: 05 Oct 2019, 4:00 PM IST
हालांकि निभाष के परिवारवालों का कहना है कि निभाष ने एनआरसी के भय से आत्महत्या नहीं की है। नेशनल हेरल्ड ने निभाष के पड़ोसी दीपक रॉय से फोन पर बात की, जिनका कहना है कि निभाष के परिवार वाले आत्महत्या का वजह बताने में हिचक रहे हैं।
दीपक रॉय बताते हैं, “यहां बहुत सारे बांग्लादेशी शरणार्थी हैं। और उन्हें एनआरसी शब्द से खौफ आ जाता है, क्योंकि असम में तो करीब 12 लाख हिंदू भी एनआरसी से बाहर हो गए हैं। वे लोग घबराए हुए हैं, लेकिन कर भी क्या सकते हैं। उनके पास कोई दस्तावेज़ तो हैं नहीं। निभाष के साथ भी ऐसा ही था। मैं यहां पैदा हुआ हूं, बढ़ा हूं, मैं यहां सबको जानता हूं, यहां तक कि बीजेपी उम्मीदवार जगन्नाथ सरकार भी एक शरणार्थी ही है।”
Published: 05 Oct 2019, 4:00 PM IST
वहीं सीपीएम पोलित ब्यूरो सदस्य और पूर्व सांसद मोहम्मद सलीम भी दावा करते हैं कि निभाष ने अमित शाह के बयान के बाद एनआरसी के डर से खुदकुशी की है। इसके अलावा सीपीएम के जिला सचिव सुमित डे का कहना है कि, “हमारे सूत्र बताते हैं कि वह एनआरसी से बहुत ज्यादा भयभीत था। हमने इस मामले में जांच की मांग की है ताकि उसकी आत्महत्या का असली कारण सामने आ सके।” निभाष के एक और पड़ोसी ने बताया कि, “निभाष के बड़े भाई भले ही कहते रहे कि उसे नशे की लत थी, लेकिन हमें पता है कि ऐसा कुछ नहीं है। ये लोग खाते-पीते लोग हैं, यहां का घर उन्होंने किराए पर उठा रखा है। निभाष राजस्थान के उदयपुर में काम करता था। दरअसल असम में एनआरसी आने के बाद से ही यहां के तमाम आप्रवासियों में भय है।”
Published: 05 Oct 2019, 4:00 PM IST
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Published: 05 Oct 2019, 4:00 PM IST