केंद्र सरकार द्वारा नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) लागू किये जाने के विरोध में ‘ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन’ (आसू) ने बुधवार को राज्यभर में 'सत्याग्राह' का आह्वान किया है।
पिछले दो दिन से राज्य में कांग्रेस सहित कई विपक्षी दल और विभिन्न संगठनों ने सीएए के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन किया है।
छात्र संगठन के एक नेता ने कहा, ‘आसू दिन में राज्य के सभी जिला मुख्यालयों में 'सत्याग्रह' करेगा।’’ छात्र संगठन ने मंगलवार शाम राज्य के कई हिस्सों में मशाल जुलूस भी निकाला था।
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वहीं, मंगलवार को उसका एक प्रतिनिधिमंडल उच्चतम न्यायालय में सीएए के खिलाफ याचिका दायर करने के लिए नई दिल्ली गया था, वहीं असम विधानसभा में विपक्ष के नेता देबब्रत सैकिया ने उच्चतम न्यायालय में सीएए पर रोक लगाने के लिए अंतरिम आवेदन दायर किया।
असम में विपक्षी राजनीतिक दलों के साथ-साथ कई छात्र और गैर-राजनीतिक संगठन सीएए के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। उन्होंने दावा किया है कि यह कानून 1985 के असम समझौते के प्रावधान का उल्लंघन करता है।
असम समझौता 1985 के तहत, 24 मार्च 1971 के बाद बांग्लादेश से असम में आने वाले लोगों का पता लगाने और उन्हें कानून के अनुसार देश से निष्काषित करने पर सहमति जताई गई थी।
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केंद्र सरकार द्वारा सीएए के अधिसूचित नियमों के तहत बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से प्रताड़ित होकर 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आये हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों को भारत की नागरिकता दी जाएगी।
कांग्रेस, रायजोर दल, असम जातीयताबादी युवा छात्र परिषद (एजेवाईसीपी), वामपंथी दलों और अन्य ने यह घोषणा की है कि वे सीएए के खिलाफ शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक तरीके से अपना विरोध जारी रखेंगे।
16-सदस्यीय ‘यूनाइटेड अपोजिशन फोरम, असम’ (यूओएफए) ने मंगलवार को सीएए के खिलाफ विरोध जताने के लिए 12 घंटे की हड़ताल का आह्वान किया था, लेकिन इसका ज्यादा असर देखने को नहीं मिला।
वहीं,असम पुलिस ने विपक्षी दलों को नोटिस जारी कर सीएए लागू होने के खिलाफ हड़ताल वापस लेने को कहा था। इसी के साथ उन्हें यह चेतावनी भी दी गई थी कि यदि वे निर्देश का पालन नहीं करते हैं तो उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
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