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सीबीआई चीफ पर फैसले में चंद घंटे बाकी, सीजेआई खुद करेंगे वर्मा मामले की सुनवाई, भूषण की याचिका भी सुनेंगे

राफेल सौदे की तपिश और सीबीआई बॉस को हटाने का विवाद सरकार के गले का फंदा बनेगा, इस पर शायद ही मोदी शासन में किसी ने ठंडे दिमाग से सोचा होगा। अब सारी नजरें सुप्रीम कोर्ट पर लगी हैं, जहां आलोक वर्मा के भाग्य का फैसला होने में कुछ घंटे बचे हैं। 

फोटो : सोशल मीडिया
फोटो : सोशल मीडिया 

सीबीआई प्रमुख आलोक वर्मा के भाग्य का फैसला होने में कुछ ही घंटे बाकी बचे हैं। अगले कुछ घंटो में अदालत के भीतर और बाहर दाव पेंचों को अंतिम रूप दिया जा चुका है। कांग्रेस ने दिल्ली समेत पूरे देश में धरने प्रर्दशन करने की योजना को अंतिम रूप दे दिया है, तो दूसरी ओर सरकार की ओर से डैमेज कंट्रोल और मरहम पट्टी के सभी फार्मूलों के अपनाने पर पूरी मशीनरी झोंक दी गई है।

बीजेपी और मोदी सरकार की तरफ से कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के उन आरोपों का कोई सटीक जवाब नहीं दिया गया है जो उन्होंने राफेल सौदे में भ्रष्टाचार के मामले में सीधे प्रधानमंत्री मोदी पर लगाए हैं। सर्वोच्च न्यायपालिका ही नहीं मोदी सरकार पर राहुल गांधी का हमला एक तरह से एक बड़ा मनौवैज्ञानिक दबाव माना जा रहा है।

इधर मोदी सरकार के लिए सीबीआई बॉस आलोक वर्मा की वापसी की संभावना कई तरह के जोखिमों से घिरी हुई है। वजह यह भी है कि वर्मा को जिस तरह के हथकंडों और टोटकों का इस्तेमाल करके अपमानित किया गया, उसके चलते वह अब किसी भी सूरत में मोदी सरकार के दबाव में नहीं आने वाले। चाहे मामला राफेल जांच का हो या और कोई बड़े से बड़ा मसला।

मंगलवार रात को सीबीआई बॉस को हटाकर उनकी जगह अंतरिम डायरेक्टर नियुक्त करने के मोदी सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अगुवाई वाली पीठ खुद करेगी। उनके इस फैसले से इन बातों पर अटकलें खत्म हो गईं कि मुमकिन है कि प्रधान न्यायाधीश रोस्टर मास्टर होने के कारण सुनवाई अपने अधीनस्थ जजों को सौंप सकते हैं। सभी पक्षों के तर्कों को सुनने के बाद ही सर्वोच्च कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ याचिकाओं को स्वीकार करने के बाद फैसला कर सकेगी। चीफ जस्टिस चूंकि सीबीआई प्रमुख की नियुक्ति के मामले में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय समिति के सदस्य भी हैं, ऐसी सूरत में कुछ कानूनी विशेषज्ञ उनकी मौजूदगी वाली जजों की वैधानिकता पर सवाल भी उठा रहे हैं।

प्रशांत भूषण की याचिका पर भी सुनवाई करेंगे चीफ जस्टिस

इसके अलावा एक अहम घटनाक्रम के तहत सुप्रीम कोर्ट ने जाने माने वकील प्रशांत भूषण की याचिका पर भी शुक्रवार को सीबीआई प्रमुख आलोक वर्मा की याचिका के साथ ही सुनवाई करने का फैसला किया है। प्रशांत भूषण ने अपने एनजीओ कॉमन कॉज़ के बैनर तले सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया है कि सीबीआई चीफ वर्मा को छुट्टी पर भेजने का आदेश रद्द किया जाए। स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना पर लगे आरोपों की कोर्ट निगरानी में एसआईटी से जांच हो। और साथ ही मौजूदा अंतरिम सीबीआई डायरेक्टर नागेश्वर राव पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण उन्हें फौरन हटाया जाए। साथ ही सीबीआई बॉस को हटाने और स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना के खिलाफ लगाए गए भष्टाचार के आरापों पर भी भूषण ने कोर्ट का ध्यान खींचा है। चीफ जस्टिस गोगोई के साथ जस्टिस संजय किशन कौल व के एम जोसफ सुनवाई में साथ होंगे।

गौरतलब है कि प्रशांत भूषण ने पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी के साथ सुप्रीम कोर्ट में राफेल घोटाले की जांच के लिए एक अलग याचिका दायर कर रखी है।

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क्या सुप्रीम कोर्ट के कदम से पहले मोदी सरकार हरकत में आ सकती है?

सीबीआई बॉस आलोक वर्मा को कुर्सी से हटाए जाने के दिन से ही सरकार की ओर से दावा किया जा रहा है कि उन्हें हटाया नहीं गया बल्कि विवादों से बचने के लिए छुट्टी पर भेजा गया है। केंद्र सरकार की ओर से वरिष्ठ मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने वित्त मंत्री अरुण जेटली के बाद सरकार की ओर से यह सफाई दी है। ऐसा लगता है कि शुक्रवार को सरकार की ओर से कोर्ट में भी यही दलील जोरदार ढंग से रखने की कोशिश होंगी। कोर्ट इस पर क्या संज्ञान लेता है इस पर शुक्रवार को ही पता लग सकेगा। लेकिन मोदी सरकार में उच्च स्तर पर जिस तरह का तनाव देखा जा रहा है, उससे लगता है कि सरकार अपनी साख बचाने के सारे विकल्पों को पूरे दिन-रात खंगालने में जुटी है।

सरकार में बैठकों का दौर, डोवाल के हाथ में कमान

ऐसी खबरें भी लुटियन जोन में दिन भर उड़ती रही हैं कि प्रधानमंत्री आवास ही नहीं उनका दफ्तर साउथ ब्लॉक में भी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह भी बैठकों के दौर में व्यस्त रहे। बैठकों और रणनीतियों के दौर के बीच राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल ने नेशनल मीडिया सेंटर में सरदार पटेल पर एक व्याख्यान दिया और मोदी सरकार को और 10 साल सत्ता में रहने की जरूरत का बखान कर गए।

यहां ध्यान देना जरूरीहै कि सीबीआई में सारी उथलपुथल की असली कमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से डोवाल ही संभाले हुए हैं। सीवीसी को सीबीआई बॉस वर्मा के खिलाफ मामला बनाने की सारी रणनीति की पटकथा लिखवाने के पीछे भी डोवाल का दिमाग बताया जाता है। पूर्व आईपीएस और खुफिया ब्यूरो के पूर्व प्रमुख होने के नाते डोवाल सीबीआई में तख्ता पलट जैसे कई तरह के आपरेशनों में माहिर खिलाड़ी माने जाते हैं।

अगर ठिकाने लगा दिए गए दस्तावेज़ तो फिर जांच कैसे होगी?

सीबीआई प्रमुख वर्मा जिन्हें बुधवार को कार्यालय में घुसने से रोकने के लिए घर पर बिठा दिया गया, उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अपनी याचिका में यह आरोप लगाकर मोदी सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया है कि जो अहम संवेदनशील मामले एजेंसी के विचाराधीन थे, उन्हें उनके कार्यालय से उठा लिया गया है। असली सवाल यह है कि यदि वे सारी फाईलें या कागजात गायब कर दिए गए हैं, नष्ट कर दिए गए हैं उन्हें वापस कहां से और कैसे लाया जा सकेगा। यह सवाल भी जांच एजेंसियों के हलकों में पूछे जा रहे हैं कि मंगलवार की रात को जो दस्तावेज आलोक वर्मा के कार्यालय से अगर कथित तौर पर ठिकाने लगा दिए गए हैं वे वापस कैसे वापस आ सकेंगे।

सुप्रीम कोर्ट का कदम मोदी सरकार की माफिक नहीं हुआ तो इसे लेकर देश में एक बड़ा सियासी बंवडर खड़ा होने से इनकार नहीं किया जा सकता। सरकार के भीतर बाहर मोदी-अमित शाह की जोड़ी कई तरह के हमले झेल रही है। सबसे ज्यादा नुकसान का डर बीजेपी को पांच प्रदेश के चुनावों को लेकर अभी से डरा रहा है। बीजेपी में कोई भी मोदी-शाह की जोड़ी पर टिप्पणी करके मुंह खोलने को तैयार नहीं है। कुछ वरिष्ठ मंत्रियों के इर्द-गिर्द बेचैनी की सुगबुगाहट साफ देखी जा रही है। एक वरिष्ठ मंत्री ने अपने कुछ करीबी लोगों के साथ दो दिन पहले चाय- पानी के बीच अपनी सरकार के समक्ष खड़ी चिंताओं को खुलकर प्रकट करने में परहेज नहीं किया।

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