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खड़गे ने अपनी सहमति में जिन तीन अफसरों को सीबीआई प्रमुख के तौर पर चुना था, उनमें नहीं था आर के शुक्ला का नाम

केंद्र ने सीबीआई डायरेक्टर के पद पर एमपी काडर के आर के शुक्ला को नियुक्त करने का ऐलान किया है। लेकिन इस ऐलान के साथ चयन समिति के सदस्य मल्लिकार्जुन खड़गे का वह पत्र भी सामने आ गया है जिसमें उन्होंने तीन अफसरों को चुना था और उनमें शुक्ला का नाम नहीं था।

फोटो : सोशल मीडिया
फोटो : सोशल मीडिया ऋषि कुमार शुक्ला बनाए गए हैं नए सीबीाई डायरेक्टर

मध्य प्रदेश काडर के आईपीएस अफसर और राज्य के पूर्व डीजीपी ऋषि कुमार शुक्ला को सीबीआई का नया डायरेक्टर बनाए जाने पर विवाद शुरु हो गया है। शुक्ला को शनिवार को ही सरकार ने सीबीआई प्रमुख के पद पर तैनात किया है। लेकिन शुक्ला की नियुक्त के कुछ घंटों में ही चयन समिति के सदस्य और लोकसभा में नेता विपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का असहमति पत्र सामने आ गया है। इस पत्र में खड़गे ने कहा है कि शुक्ला की नियुक्त उन नियमों के खिलाफ है जिनके आधार पर सीबीआई डायरेक्टर के पद पर किसी अफसर की नियुक्त की जानी चाहिए।

खड़गे ने शुक्रवार की बैठक के बाद जो असहमति पत्र भेजा था उनमें अनुभव, कार्यकाल और सीबीआई में काम करने के तजुर्बे के आधार पर तीन अफसरों के नाम दिए थे। इनमें 1984 के यूपी बैच के आईपीएस जावीद अहमद, यूपी काडर के ही 1983 बैच के राजीव राय भटनागर और तमिलनाडू काडर के 1984 बैच के सुदीप लखटकिया के नाम थे।

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खड़गे के इस पत्र पर प्रतिक्रिया में प्रधानमंत्री कार्यालय के मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि खड़गे जी जो कुछ कह रहे हैं वह तथ्यों पर आधारित नहीं है। सीबीआई डायरेक्टर की नियुक्ति में सभी नियमों का पालन किया गया है।

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इससे पहले शनिवार शाम को मोदी सरकार ने सीबीआई के नए डायरेक्टर के रूप में ऋषि कुमार शुक्ला के नाम का ऐलान कर दिया।

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शुक्ला को तीन दिन पहले ही मध्य प्रदेश के डीजीपी पद से हटाया गया था। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ राज्य की कानून व्यवस्था से बेहद खफा थे और ऋषि कुमार शुक्ला के हाथों में इसकी कमान थी। तीन दिन पहले इसी नाराज़गी के चलते उन्हें डीजीपी के पद से हटाकर पुलिस हाउसिंग कार्पोरेशन में भेज दिया गया था। लेकिन, उनके लिए तो एक बहुत बड़ा ईनाम इंतज़ार कर रहा था, क्योंकि केंद्र सरकार उन्हें देश की सर्वोच्च जांच एजेंसी के मुखिया के पद पर बिठाने का मन बना चुकी थी।

शुक्ला को दक्षिणपंथी मिज़ाज के साथ ही कई बीजेपी नेताओं का नज़दीकी माना जाता है। इनमें मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का नाम भी है। संभवत: यही कारण था कि शुक्ला के नाम की सरगोशियां काफी पहले से हो रही थीं, क्योंकि बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का भी उन्हें करीबी माना जाता रहा है।

शुक्ला की नियुक्ति पर सिर्फ इसलिए ही उंगलियां नहीं उठ रही हैं कि वह बीजेपी नेताओं के करीबी हैं। दूसरा कारण यह है कि उन्हें सीबीआई में काम करने का कोई अनुभव नहीं है। जब आलोक वर्मा को 2016 में सीबीआई का डायरेक्टर नियुक्त किया गया था तो भी इसी बात की आलोचना हुई थी कि उन्हें भी सीबीआई में काम करने का कोई अनुभव नहीं था। सीबीआई के कार्यशैली से वाकिफ न होने को भी उनके और स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना के बीच की कलह का एक कारण माना गया था।

बहरहाल शुक्ला को सीबीआई का बॉस बनाकर केंद्र सरकार ने उत्तर प्रदेश काडर के आईपीएस और सीबीआई में 13 साल के अनुभव वाले जावीद अहमद और बीएसएफ के डायरेक्टर जनरल और सीबीआई में 6 साल काम कर चुके रजनीकांत मिश्रा को नजरंदाज़ किया है।

इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने नियम बनाया था कि सीबीआई डायरेक्टर की नियुक्ति एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति करेगी ताकि सीबीआई की स्वायत्ता बरकरार रहे। लेकिन ऋषि कुमार शुक्ला की नियुक्ति साबित करती है कि केंद्र सरकार अपनी मर्जी के अफसर को सीबीआई की कमान देने में कामयाब रही है।

वैसे सीबीआई के नवनियुक्त डायरेक्टर ऋषि कुमार शुक्ला पिछले साल उस वक्त सुर्खियों में थे जब उन्होंने खुलेआम न्यायपालिका की आलोचना करते हुए कहा था कि जज अपनी मनमर्जी कानून की परिभाषा तय करने लगे हैं। उन्होंने कहा था, “जज आजकल अपनी इच्छानुसार कानून की व्याख्या करने लगे हैं। हमें पढ़ाया गया था कि कानून अंधा होता है और जजों को निष्पक्ष तरीके से व्यवहार करना चाहिए, लेकिन आजकल जजों का पूर्वाग्रह सामने आता रहता है और कानूनी प्रक्रिया में इसका असर दिखा देता है। यह बहुत ही चुनौतीपूर्ण वक्त है।”

लेकिन अब वे देश की सर्वोच्च जांच एजेंसी के मुखिया हैं, तो क्या वे निष्पक्षता और स्वतंत्रता के साथ अपनी जिम्मेदारियां निभाएंगे, देखना दिलचस्प होगा।

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