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महाराष्ट्र: जाएगी या रहेगी फडणविस सरकार, कौन बनेगा मुख्यमंत्री, सुप्रीम कोर्ट कल सुबह 10.30 बजे सुनाएगा फैसला

महाराष्ट्र में किसकी बनेगी सरकार? क्या देवेंद्र फडणविस को तुरंत करना होगा बहुमत साबित? क्या महाराष्ट्र के राज्यपाल द्वारा देवेंद्र फडणविस को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाना सही था? इन सब सवालों पर सुप्रीम कोर्ट कल (मंगलवार को) सुबह 10.30 बजे फैसला सुनाएगा।

फोटो : सोशल मीडिया
फोटो : सोशल मीडिया 

महाराष्ट्र का राजनीतिक संग्राम सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को भी जारी रहा। सभी पक्षों की जबरदस्त दलीलों के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने धैर्य से सबकी बात सुनी और तय किया कि अब मंगलवाल को सुबह 10.30 बजे इस मामले में फैसला सुनाया जाएगा। जस्टिस एन वी रमन्ना ने कहा कि ‘मैं कल सुबह 10.30 बजे इस पर आदेश जारी करूंगा।‘

Published: 25 Nov 2019, 12:52 PM IST

सोमवार को हुई सुनवाई में सालिसिटर जनरल ने राज्यपाल को मिले पत्रों को पेश किया। इसके साथ ही दोनों पक्षों के वकीलों ने अपना-अपना पक्ष रखा। कपिल सिब्बल, अभिषेक मनुसिंघवी ने शिवसेना-एनसीपी की पैरवी की जबकि अजित पवार की तरफ से एडवोकेट मनिंदर सिंह पेश हुए। वहीं मुकुल रोहतगी ने देवेंद्र फडणविस की तरफ से दलीले रखीं। जस्टिस एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ में जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस संजीव खन्ना भी शामिल हैं।

सुनवाई के दौरान सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि राज्यापल का फैसला दिखाने से पहले वह केस की पृष्ठभूमि के बारे में बताना चाहेंगे। उन्होंने कोर्ट में राज्यपाल की तरफ से देवेंद्र फडअविस को सरकार बनाने के लिए दिए गए न्योते की कॉपी कोर्ट में रखी। इसके साथ ही उन्होंने 22 नवंबर को अजित पवार द्वारा राज्यपाल को भेजे गए समर्थन के पत्र को रखा।

Published: 25 Nov 2019, 12:52 PM IST

इस दौरान कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना की तरफ से अदालत में पेश हुए वकीलों ने जहां आज ही अदालत से बहुमत परीक्षण कराने की मांग की। वहीं सत्तापक्ष के वकील ने कहा कि बहुमत परीक्षण तो होना ही है, लेकिन उन्हें और समय दिया जाना चाहिए। इसी दौरान यह खुलासा भी हुआ कि राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने फडणवीस सरकार को बहुमत साबित करने के लिए 14 दिनों का समय दिया है। जबकि, पहले कहा जा रहा था 30 नवंबर तक सरकार को बहुमत साबित करना है।

यह बात फडणविस के वकील रोहतगी ने कोर्ट को बताई। उन्होंने कहा कि विधानसभा की कुछ परंपराए होती हैं। स्पीकर के चुनाव के बाद ही बहुमत परीक्षण हो सकता है। वहीं तुषार मेहता ने कहा कि कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना एक वकील पर भी सहमत नहीं हुए और उनके द्वारा पेश की गई सूची में भी गड़बड़ी है, इसलिए इस मामले में देवेंद्र फडणविस के पक्ष में फैसला दिया जाना चाहिए। इस पर अदालत ने कहा कि ‘हम क्या आदेश देंगे। यह हमपर छोड़ दिया जाए। हमें पता है कि क्या आदेश देना है।‘

बहस के दौरान अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि बहुमत परीक्षण से पता चलेगा जब आप औंधे मुंह गिरेंगे। अदालत को 48 नहीं बल्कि 24 घंटे में बहुमत परीक्षण कराने की समयसीमा तय किए जाने का आदेश देना चाहिए। उन्होंने कहा कि, “मैं इन बातों पर जोर नहीं देना चाहता, मगर ये बातें अपने आप में आधार हैं। आज ही बहुमत परीक्षण होना चाहिए।“ सिंघवी ने कहा कि दोनों पक्ष बहुमत परीक्षण को सही बता रहे हैं तो फिर इसमें देरी क्यों? इसके अलावा कपिल सिब्बल ने कहा कि ‘रात में सब तय हुआ। बहुमत परीक्षण दिन के उजाले में हो।‘

Published: 25 Nov 2019, 12:52 PM IST

इस दौरान अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि फौरन प्रोटेम स्पीकर की नियुक्ति हो। मेरे पास एनसीपी के 48 विधायकों का समर्थन है। सदन में जल्दी शक्ति परीक्षण होना चाहिए क्योंकि दोनों पक्ष बहुमत परीक्षण के लिए तैयार हैं।

बहस के दौरान कपिल सिब्बल ने गंभीर सवाल उठाए। उन्होंने पूछा कि आखिर राज्यपाल ने किसके कहने पर राष्ट्रपति शासन हटाया? बहुमत परीक्षण से आपत्ति क्यों? कैबिनेट ने कब राष्ट्रपति शासन हटाने की मंजूरी दी? उन्होंने भी सदन में तुरंत बहुमत परीक्षण कराया जाने की मांग उठाई। शिवसेना की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने पूछा कि ‘ऐसा क्या राष्ट्रीय आपातकाल था कि राष्ट्रपति शासन को सुबह 5.17 पर निरस्त करके सुबह 8 बजे शपथ दिलाई गई? राष्ट्रपति शासन को सुबह 5.17 बजे हटाया गया जिसका मतलब है कि 5.17 से पहले सब कुछ हुआ।

अजित पवार के वकील मनिंदर सिंह ने कहा कि ‘यदि बाद में कोई स्थिति बनी है तो इसे राज्यपाल देखेंगे। इसे उनके ऊपर छोड़ा जाए। अदालत इसमें दखल क्यों दे।‘ मनिंदर सिंहने कहा कि जो चिट्ठी राज्यपाल को दी गई है वो कानूनी तौर पर सही है। फिर विवाद क्यों?

लेकिन तुषार मेहता ने दलील दी कि ‘इन्हें चिंता है कि विधायक भाग जाएंगे। इन्होंने अभी किसी तरह उन्हें पकड़ा हुआ है। विधानसभा की कार्रवाई कैसे चलेगी? अदालत को इसमें हस्तक्षेप करने से बचना चाहिए। उन्होंने कहा कि, “राज्यपाल को बहुमत परीक्षण के लिए समयसीमा तय करने को नहीं कहा जा सकता। यह राज्यपाल का विवेकाधिकार है। उनके कदम को दुर्भावना से प्रेरित नहीं कहा जा सकता।“ इसके साथ ही मुकुल रोहतगी ने भी कहा कि बहुमत परीक्षण कब होगा इसे तय करने का अधिकार राज्यपाल के पास है। उन्होंने पाछा कि , “क्या अदालत विधानसभा के एजेंडे को तय कर सकती है?”

Published: 25 Nov 2019, 12:52 PM IST

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Published: 25 Nov 2019, 12:52 PM IST