लद्दाख को राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर अनशन कर रहे सोनम वांगचुक के समर्थन में आज लेह में सड़कों पर उतरे छात्रों की पुलिस से हुई भिड़ंत में चार लोगों की मौत हो गई और कई अन्य घायल हो गए। हिंसा और आगजनी को देखते हुए वांगचुक ने लद्दाख को राज्य का दर्जा देने और छठी अनुसूची के विस्तार की मांग को लेकर 15 दिन से जारी अपनी भूख हड़ताल वापस ले ली है।
अधिकारियों ने बताया कि लद्दाख के लेह शहर में बुधवार को लेह एपेक्स बॉडी (एलएबी) द्वारा प्रायोजित बंद के दौरान प्रदर्शनकारियों और सुरक्षाकर्मियों के बीच झड़प में चार लोगों की मौत हो गई और 30 अन्य घायल हो गए। उन्होंने बताया कि लद्दाख को राज्य का दर्जा देने और छठी अनुसूची के विस्तार की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे प्रदर्शनकारियों ने हिंसा की और बीजेपी कार्यालय और कई वाहनों पर हमला किया, जिसके बाद स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए पुलिस को गोलीबारी करनी पड़ी। प्रदर्शनकारियों ने दावा किया कि पुलिस की गोलीबारी में चार लोग मारे गए।
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वांगचुक ने आंदोलन स्थल पर बड़ी संख्या में एकत्र अपने समर्थकों से कहा, ‘‘मैं लद्दाख के युवाओं से हिंसा तुरंत रोकने का अनुरोध करता हूं क्योंकि इससे हमारे उद्देश्य को नुकसान पहुंचता है और स्थिति और बिगड़ती है। हम लद्दाख और देश में अस्थिरता नहीं चाहते।’’ जैसे ही झड़पें तेज हुईं, वांगचुक ने अपने ‘एक्स’ हैंडल पर एक वीडियो संदेश भी जारी किया, जिसमें उन्होंने युवाओं से शांति का माहौल बनाये रखने और हिंसा रोकने की अपील की।
सोनम वांगचुक ने कहा कि लद्दाख को राज्य का दर्जा देने की मांग पर केंद्र के साथ बैठक प्रस्तावित 6 अक्टूबर से पहले होनी चाहिए। उन्होंने कहा, "लोग नाराज़ हैं। 16 दिनों तक लोगों को भूखा रखने के बाद बैठक बुलाई गई। लोग 6 अक्टूबर से पहले बैठक की मांग कर रहे हैं।" सोनम वांगचुक ने लद्दाख में अपने विरोध प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसा के बाद आज अपनी भूख हड़ताल वापस ले ली।
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इससे पहले लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा और संवैधानिक सुरक्षा की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे छात्रों और पुलिस के बीच मंगलवार को हिंसक झड़पें हुईं। यह प्रदर्शन विख्यात पर्यावरणविद और शिक्षाविद सोनम वांगचुक के समर्थन में आयोजित किया गया था। नाराज प्रदर्शनकारियों ने लेह में बीजेपी दफ्तर को भी फूंक दिया। पुलिस से टकराव के बाद गुस्साए छात्रों ने सीआरपीएफ की एक गाड़ी समेत कई गाड़ियों में आग लगा दी, जिसके बाद पुलिस ने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए बल प्रयोग किया।
लद्दाख की राजधानी में पूर्ण बंद के बीच आग की लपटें और काला धुआं देखा जा सकता है।अधिकारियों ने बताया कि प्रशासन ने पांच या इससे अधिक लोगों के एकत्र होने पर प्रतिबंध लगाने के लिए भारतीय न्याय संहिता (बीएनएसएस) की धारा 163 के तहत निषेधाज्ञा लागू कर दी है। लेह एपेक्स बॉडी (एलएबी) की युवा शाखा ने विरोध प्रदर्शन और बंद का आह्वान किया था क्योंकि 10 सितंबर से 35 दिन की भूख हड़ताल पर बैठे 15 लोगों में से दो की हालत मंगलवार शाम बिगड़ने के बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
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छात्र "लद्दाख को राज्य बनाओ" और "वादाखिलाफी बंद करो" जैसे नारे लगाते हुए सड़कों पर उतरे थे। उनका आरोप है कि 2019 में लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने के वक्त जो वादे किए गए थे, जैसे विशेष संवैधानिक अधिकार और स्थानीय पहचान की सुरक्षा वो आज तक पूरे नहीं हुए हैं। छात्रों का कहना है कि यदि लद्दाख को जल्द राज्य का दर्जा नहीं दिया गया, तो यहां की संस्कृति, भाषा और पर्यावरण पर गंभीर खतरा मंडराने लगेगा। वे चाहते हैं कि लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची के तहत संरक्षण मिले ताकि स्थानीय लोगों को राजनीतिक प्रतिनिधित्व और अधिकार सुनिश्चित हो सकें।
अधिकारियों ने बताया कि प्रदर्शन के आह्वान पर लेह शहर में बंद रहा और एनडीएस स्मारक मैदान में बड़ी संख्या में लोग एकत्र हुए और बाद में छठी अनुसूची और राज्य के समर्थन में नारे लगाते हुए शहर की सड़कों पर मार्च निकाला। उन्होंने बताया कि स्थिति तब और बिगड़ गई जब कुछ युवकों ने बीजेपी और हिल काउंसिल के मुख्यालय पर पथराव किया। उन्होंने बताया कि शहर भर में बड़ी संख्या में तैनात पुलिस और अर्धसैनिक बलों ने स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए आंसू गैस के गोले छोड़े।
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युवाओं के समूहों ने एक वाहन और कुछ अन्य वाहनों में आग लगा दी और बीजेपी कार्यालय को भी निशाना बनाया। उन्होंने परिसर और एक इमारत में मौजूद फर्नीचर और कागजात में आग लगा दी। स्थिति पर नजर रख रहे अधिकारियों ने बताया कि घटनास्थल पर अतिरिक्त बल भेजा गया और कई घंटों की भीषण झड़प के बाद स्थिति पर काबू पाया गया।
संविधान की छठी अनुसूची शासन, राष्ट्रपति और राज्यपाल की शक्तियों, स्थानीय निकायों के प्रकार, वैकल्पिक न्यायिक तंत्र और स्वायत्त परिषदों के माध्यम से प्रयोग की जाने वाली वित्तीय शक्तियों के संदर्भ में विशेष प्रावधान करती है। छठी अनुसूची चार पूर्वोत्तर राज्यों त्रिपुरा, मेघालय, मिजोरम और असम की जनजातीय आबादी के लिए है।
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गृह मंत्रालय और लद्दाख के प्रतिनिधियों, जिनमें एलएबी और करगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (केडीए) के सदस्य शामिल हैं, के बीच छह अक्टूबर को वार्ता का एक नया दौर निर्धारित है। दोनों संगठन पिछले चार वर्षों से अपनी मांगों के समर्थन में संयुक्त रूप से आंदोलन कर रहे हैं और अतीत में सरकार के साथ कई दौर की वार्ता भी कर चुके हैं।
लगभग चार महीने तक रुकी रही वार्ता के बाद, केंद्र ने 20 सितंबर को एलएबी और केडीए को वार्ता के लिए आमंत्रित किया था। मंगलवार को त्सेरिंग अंगचुक (72) और ताशी डोल्मा (60) की हालत बिगड़ने के बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया, जिसके बाद तनाव बढ़ गया। इससे एलएबी के घटकों में चिंता पैदा हो गई और उन्होंने केंद्र से बातचीत को आगे बढ़ाने का आग्रह किया।
पूर्व सांसद एवं एलएबी के अध्यक्ष थुपस्तान छेवांग, जिन्होंने 27 मई को अंतिम दौर की वार्ता के बाद निकाय से इस्तीफा दे दिया था, पुनः अध्यक्ष पद पर आसीन हो गये हैं और वार्ता के दौरान उनके संयुक्त प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करने की संभावना है। कांग्रेस ने एलएबी से बाहर होने का फैसला तब किया जब कुछ घटकों ने यह विचार व्यक्त किया कि अगले महीने ‘लेह हिल काउंसिल’ के चुनावों के मद्देनजर एलएबी प्रतिनिधिमंडल को गैर-राजनीतिक होना चाहिए। केडीए ने भूख हड़ताल पर बैठे लोगों के साथ एकजुटता दिखाने और वार्ता को आगे बढ़ाने के लिए दबाव बनाने के वास्ते गुरुवार को करगिल में पूर्ण बंद का आह्वान किया था।
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