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आलोक वर्मा खोलने वाले थे एक ‘बड़ा केस’, आईबी की रिपोर्ट मिलते ही हरकत में आई सरकार और कर दी छुट्टी

आलोक वर्मा ने सीबीआई मुख्यालय पहुंचते ही जिस तेजी से एक्शन लेना शुरु किया, उससे सरकार में हलचल मच गई। खुफिया विभाग ने जब यह खबर दी कि राकेश अस्थाना के खिलाफ जांच करने वाले अफसर ए के बस्सी को वापस लाया जा रहा है, तो लगने लगा कि वर्मा कोई बड़ा केस खोलने वाले हैं।

फोटो : सोशल मीडिया
फोटो : सोशल मीडिया 

आखिर वह कौन सी वजह थी कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद कार्यभार संभाले आलोक वर्मा को 36 घंटे के भीतर ही सीबीआई से हटा दिया गया? आखिर क्यों सीबीआई मुख्यालय पर एक बार फिर दिल्ली पुलिस का पहला बैठा दिया गया? आखिर वह कौन सा मामला था जिसके खुलने का डर सत्ता पक्ष और खासतौर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सता रहा था?

ये ऐसे सवाल हैं जिनके जवाब राजनीतिक भी हैं और प्रशासनिक भी।

बीते 36 घंटों के दौरान सीबीआई मुख्यालय में जो हलचल मची थी, उससे यह कयास तो लगने लगे थे कि भले ही सुप्रीम कोर्ट ने आलोक वर्मा को भले ही सीबीआई में बहाल कर दिया हो, लेकिन वे अपना कार्यकाल शायद ही पूरा कर पाएं। इन्हीं हलचलों के बीच जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली चयन समिति की बैठक बुलाई गई, तो तस्वीर कुछ-कुछ साफ होने लगी थी कि आलोक वर्मा सीबीआई में ज्यादा दिन के मेहमान नहीं रहेंगे।

सूत्रों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद जैसे ही आलोक वर्मा ने सीबीआई मुख्यालय पहुंचकर कार्यभार संभाला, उनके करीबी अफसरों की सीबीआई में आवाजाही शुरु हो गई थी। सूत्र बताते हैं कि खुफिया विभाग ने सरकार को सूचना दी कि आलोक वर्मा किसी खास मिशन के तहत बदले की भावना से कोई ‘बड़ा केस’ दर्ज कर सकते हैं।

यूं तो सुप्रीम कोर्ट ने उनकी बहाली का परवाना मंगलवार को ही जारी कर दिया था, लेकिन वे जानबूझकर उस दिन सीबीआई मुख्यालय नहीं गए। बताया जाता है कि यह एक सोची समझी रणनीति का हिस्सा थी। उसी दिन यानी मंगलवार को ही सीबीआई अधिकारी ए के बस्सी अंडमान से दिल्ली पहुंच गए। यह खबर भी खुफिया विभाग ने सरकार को पहुंचा दी। बस्सी वह अधिकारी हैं जो छुट्टी पर भेजे गए सीबीआई के स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना के खिलाफ जांच अधिकारी थे।

बस्सी के दिल्ली पहुंचने के अगले दिन यानी बुधवार को आलोक वर्मा ने कार्यभार संभाला और ए के बस्सी का तबादला अंडमान से वापस दिल्ली सीबीआई मुख्यालय कर दिया। इसके साथ ही आलोक वर्मा ने कई और अधिकारियों का तबादला इधर-उधर कर दिया। वर्मा के इस कदम से सरकारी खेमे में हलचल मच गई।

इस बीच चयन समिति की बैठक की प्रक्रिया शुरु हो गई और कयास लगाए जाने लगे कि अब आलोक वर्मा का समय सीबीआई में पूरा हो चुका है। और, हुआ भी वही। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय समिति ने 2-1 के फैसले से आलोक वर्मा को हटाने का फरमान सुना दिया। समिति में पीएम मोदी के अलावा, विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई को होना था। लेकिन चूंकि जस्टिस गोगोई ने आलोक वर्मा की बहाली का परवाना जारी किया था, इसलिए उन्होंने अपन जगह जस्टिस ए के सीकरी को इस बैठक में भेजा। बैठक में आलोक वर्मा के खिलाफ सीवीसी रिपोर्ट रखी गई, जिसपर मल्लिकार्जुन खड़गे ने एतराज़ जताया और वर्मा को सीबीआई में ही रहने देने की दलील रखी। लेकिन जस्टिस सीकरी और प्रधानमंत्री की नजर में सीवीसी की रिपोर्ट में ऐसे पर्याप्त कारण थे, जिनके आधार पर आलोक वर्मा को सीबीआई से हटाना अपरिहार्य हो गया था। आखिरकार सीबीआई से आलोक वर्मा की विदाई कर दी गई। उन्हें अब अग्निशमन विभाग के महानिदेशक का पद दिया है।

सरकारी सूत्रों का कहना है कि वर्मा को हटाए जाने के बाद नागेश्वर राव को एक बार फिर से अंतरिम डायरेक्टर बना दिया गया है, और नया डायरेक्टर तय होने तक वे सीबीआई का कामकाज देखेंगे। इसके साथ ही नए डायरेक्टर की नियुक्ति की प्रक्रिया भी शुरु हो गई है।

सीबीआई के नए डायरेक्टर की नियुक्ति में अब मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गगोई की भूमिका का महत्व बढ़ गया है। रंजन गोगोई ने जब आलोक वर्मा को बहाल किया था तो उन पर कुछ शर्तें लगाई थीं, साथ ही चयन समिति को भी निर्देश दिया था कि समिति आलोक वर्मा के बारे में फैसला ले।

सीबीआई से हटाए जाने के बाद अब आलोक वर्मा पर जांच की तलवार लटक रही है। सूत्रों का कहना है कि सरकार की नजर में आलोक वर्मा भ्रष्टाचार के कुछ मामलों में कुछ विपक्षी नेताओं की मदद कर रहे थे। आलोक वर्मा के डिप्टी स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना आरोप लगाया था कि वे रेल मंत्रालय के आईआरसीटीसी घोटाले में लालू यादव की मदद कर रहे थे। वहीं वर्मा पर मांस व्यापारी मोईन कुरैशी केस को प्रभावित करने का भी आरोप लगा था। ऐसे में अब माना जा रहा है कि जल्द ही वर्मा के खिलाफ सीबीआई एफआईआर दर्ज कर सकती है।

वर्मा और अस्थाना को सरकार ने 23 अक्टूबर को आधी रात की गई कार्रवाई में हटा दिया था। दोनों को छुट्टी पर भेजे जाने से पहले हालात ऐसे हो गए थे कि सीबीआई के दोनों आला अफसर एक-दूसरे को गिरफ्तार करने की तैयारी कर रहे थे। राकेश अस्थाना के खिलाफ तो एफआईआर तक दर्ज हो गई थी, उनके कुछ करीबी अफसर को गिरफ्तार कर भी लिया गया था।

सीबीआई में मचे वबाल से पूरा देश सकते में था कि आखिर देश की सर्वोच्च जांच एजेंसी की साख किस तरह गर्त में जा रही थी। यूं भी सीबीआई के इस घमासान के दूरगामी नतीजे होंगे। वैसे तो सीबीआई के गठन और इसके नियमों को लेकर विवाद होते रहे हैं। इसके अलावा राजनीतिक दलों पर भी राजनीतिक या चुनावी फायदे के लिए सीबीआई के इस्तेमाल के आरोप लगते रहे हैं। साथ ही सरकारें राजनीतिक प्रतिद्वंदियों से बदला लेने के लिए भी सीबीआई का इस्तेमाल करती रही हैं।

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